जिला कृषि रक्षा अधिकारी सोनभद्र ने किसान भाइयों को कृषि कीट/रोग रक्षा हेतु दी गई जानकारी

उत्तर प्रदेश सोनभद्र

सफल समाचार अजीत सिंह
       
जिला कृषि रक्षा अधिकारी सोनभद्र ने जानकारी देते हुए बताया कि किसान भाइयो को रबी की प्रमुख फसलों में गेहूॅ, राई/सरसों, मटर एवं आलू में लगने वाले कीट/रोग एवं खरपतवारों से बचाव हेतु नियमित निगरानी करें।
कीट, रोग के के लक्षण परिलक्षित होने पर तत्काल निम्नलिखित सुझाव एवं संस्तुतियों को अपनाकर फसल को बचा सकते है। उन्होंने बताया कि गेहूॅः- गेहूॅ में चैड़ी एवं संकरी पत्ती वाले खरपातवारों जैसे गुल्ली डंडा, चटरी-मटरी, बथुआ, कृष्णनील आदि की समस्या देखी जाती है। संकरी पत्ती वाले खरपतवारों यथा-गेहॅूसा एवं जंगली जई के नियंत्रण हेतु सल्फोसल्यूराॅंन 75 प्रतिशत डब्लू0जी0 33 ग्राम (2.5 यूनिट) मात्रा प्रति हेक्टयर की दर से लगभग 300 लीटर पानी में घोलकर प्रथम सिंचाई के बार 25-30 दिन की अवस्था पर छिड़काव करें। चैड़ी पत्ती वाले खरपतवारों हेतु मेटसल्फ्यूरान मिथाइल 20 प्रतिशत डब्लू0पी0 20 ग्राम मात्रा को लगभग 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टयर की दर से फ्लैट फैन नाजिल से प्रथम सिंचाई के बाद 25-30 दिन की अवस्था पर छिड़काव करें। संकरी एवं चैड़ी पत्ती दोनो खरपतवारो के नियंत्रण हेतु सल्फोसल्यूराॅंन 75 प्रतिशत $ मेटसल्फ्यूरान मिथाइल 5 प्रतिशत डब्लू0जी0 40 ग्राम (2.5 यूनिट) अथवा मेट्रीब्यूजिन 70 प्रतिशत डब्लू0पी0 की 250-300 ग्राम मात्रा को लगभग 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टयर की दर से फ्लैट फैन नाजिल से प्रथम सिंचाई के बाद 25-30 दिन की अवस्था पर छिड़काव करें। गेहूॅ की फसल मे मकोय नामक खरपतवार के निय़त्रंण हेतु का कारफेन्ट्राजोन-इथाइल 40 प्रतिशत डी0एफ0 की 50 ग्राम की मात्रा को लगभग 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टयर की दर से छिड़कावा करना चाहिए। राई/सरसोः- मौसम के तापमान में गिरावट होने पर राई/सरसों की फसल माहू कीट के प्रकोप होने की सम्भावना होती है। यदि कीट का प्रकोप आर्थिक क्षति पर (5 प्रतिशत प्रभावित पौधे) से अधिक हो तो निम्नलिखित रसायनों मे से किसी एक को प्रति हेक्यर की दर से लगभग 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें-एजाडिरेक्टिन 0.15 प्रतिशत ई0सी0 2.50 लीटर। डाईमेथोएट 30 प्रतिशत ई0सी0 1.0 लीटर। आक्सीडिमेटान मिथाइल 25 प्रतिशत ई0सी0 1.0 लीटर । मटर का बुकनी रोग (पाउडरी मिल्ड्यू)ः- इस रोग में पत्तीयों, तनों एवं फलीयों पर सफेद चूर्ण दिखाई देते है जिससे बाद में पत्तीया सूख कर गिर जाती है। इस रोग के नियत्रण हेतु निम्नलिखित रसायनों मे से किसी एक को प्रति हेक्यर की दर से लगभग 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। घुलनशील गंधक 80 प्रतिशत डब्लू0पी0-2 किलोग्राम । ट्राइडेमेफान 25 प्रतिशत डब्लू0पी0-250 ग्राम । डिनोकैप 48 प्रतिशत ई0सी0 200 मिली0 लीटर। कार्बेण्डाजिंम 50 प्रतिशत डब्लू0पी0- 250 ग्राम। आलूः- आलू की फसल में अगेती/पछेती झुलसा रोग का प्रकोप होने पर पत्तीयों पर भूरे एवं काले रंगके धब्बे बनते है तथा तिव्र प्रकोप होने पर सम्पूर्ण पौधा झुलस जाता है रोग के प्रकोप की स्थिति में निम्नलिखित रसायनों मे से किसी एक को प्रति हेक्यर की दर से लगभग 600-800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। कापरआक्सी क्लोराइड 50 प्रतिशत डब्लू0पी0- 2.5 किलोग्राम । मैंकोजेब 75 प्रतिशत डब्लू0पी0- 2.0 किलोग्राम। मेटालैक्सिल 8 प्रतिशत $ मैंकोजेब 64 प्रतिशत डब्लू0पी0- 2.0 किलोग्राम। साइमोक्सनिल 8 प्रतिशत $ मैंकोजेब 64 प्रतिशत डब्लू0पी0- 2.0 किलोग्राम। फेनामिडोन 8 प्रतिशत $मैंकोजेब 50 प्रतिशत डब्लू0पी0- 2.0 किलोग्राम निर्धारित मानक को फसलों पर छिड़काव कर फसल को बचाया जा सकता है।

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