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विश्वजीत राय
कुशीनगर स्थित भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली में पुरातात्त्विक महत्व की जिन धरोहरों व बौद्ध कालीन अवशेषों को दिखाने के लिए वृहद स्तर पर कोशिश चल रही है। बौद्ध राष्ट्रों के सैलानियों के लिए अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट तक बनाया गया है, लेकिन यहां की पुरातात्विक धरोहरों के संरक्षण के लिए कोई पहल नहीं हो रही है।
ये पुरातात्विक स्थल चार महीने बारिश के पानी में डूबे रहते हैं। यदि समय रहते इन धरोहरों व अवशेषों को बचाने का उचित इंतजाम नहीं तो सभी इंतजाम बेमतलब साबित हो जाएंगे।
बौद्ध तीर्थ यात्रियों व धर्मावलंबियों के लिए पवित्र, पूजनीय और दर्शनीय स्थलों में मुख्य महापरिनिर्वाण मंदिर, रामाभार स्तूप व माथा कुंवर मंदिर प्रमुख है। इन्हीं स्थलों पर खुदाई के बाद निकले बौद्ध कालीन पुरातात्विक महत्व के अवशेषों व धरोहरों को देखने के लिए हर साल हजारों की संख्या में विभिन्न राष्ट्रों के बौद्ध अनुयायी व पर्यटक आते हैं।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के कुप्रबंधन के कारण उत्खनित अवशेष, धरोहर व अन्य संरचनाएं बरसात में जलभराव से करीब चार महीने तक पानी में डूबी रहती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी लंबी अवधि तक पानी में लगातार डूबे रहने से ढाई हजार साल पुराने ये अवशेष धीरे-धीरे नष्ट हो जाएंगे। इसलिए इन्हें बचाएंगे नहीं तो दिखाएंगे क्या?
कुशीनगर को जोड़ने के लिए बना अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट
कुशीनगर को दुनिया के देशों से जोड़ने और यहां भगवान बुद्ध से जुड़ीं वस्तुओं को दिखाने के लिए करोड़ों रुपये की लागत से अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट बनाया गया है। इसका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 अक्तूबर 2021 को लोकार्पण किया था। एयरपोर्ट के लोकार्पण में श्रीलंका के एक विशिष्ट प्रतिनिधिमंडल ने भी शिरकत की थी।
हालांकि, अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट से अभी घरेलू उड़ानें ही जारी हैं, लेकिन संभावना व्यक्त की जा रही है कि इस वर्ष के अंत तक अंतरराष्ट्रीय उड़ानें भी आरंभ हो सकती हैं। एयरपोर्ट को अत्याधुनिक तकनीक व सुविधाओं से लैस करने का काम तेजी से चल रहा है।
ढा़ई हजार साल पुराने जिन खास स्थलों को दिखाने के लिए यह सारी कवायद चल रही है। वे स्थल ही खतरे में हैं। बारिश शुरू होते ही मुख्य मंदिर के उत्तर तरफ स्थित छोटे-छोटे प्राचीन स्तूपों के अवशेष पानी में डूब जाते हैं। इसके अलावा दूसरे सबसे महत्वपूर्ण स्थान रामाभार स्तूप के बगल में ही पानी भरने के चलते कई अवशेष डूबे रहते हैं।
कोट
मौजूदा समय में उत्खनित अवशेषों को जलभराव से बचाने के लिए कोई ठोस प्रबंध नहीं हो पाया है। पानी भरने पर पंपिंग सेट से बारिश का पानी बाहर निकाला जाता है। फिलहाल, इस समस्या से विभागीय उच्चाधिकारी अवगत हैं। कोशिश चल रही है। कुछ अड़चनों के कारण धरातल पर नहीं उतर पा रहा। उत्खनित धरोहरों व अवशेषों को जलभराव से बचाने का मुद्दा विभाग का आंतरिक मामला है। उसे बताया नहीं जा सकता। उपाय होगा तो वह खुद दिखेगा। उत्खनित अवशेषों में जलभराव होने की प्रमुख वजह सड़क की ऊंचाई है।
– अविनाश मोहंती, अधीक्षक पुरातत्व, सारनाथ मंडल, वाराणसी
कोट
कुशीनगर पर्यटन व बौद्ध धर्मावलंबियों के लिहाज से महत्वपूर्ण स्थल है। यहां के उत्खनित अवशेषों को बरसात में जलभराव से बचाने के लिए भारत सरकार के स्वदेश दर्शन योजना में शामिल किया गया था। लेकिन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) की अनुमति नहीं मिलने के चलते परियोजना मूर्त रूप नहीं ले सकी। पर्यटन और पुरातात्विक दोनों दृष्टिकोण से इन्हें जलभराव से बचाकर संरक्षित और सुरक्षित रखना जरूरी है।
रविंद्र कुमार, क्षेत्रीय पर्यटक अधिकारी, गोरखपुर
ये हैं संक्षिप्त महत्व
मुख्य महापरिनिर्वाण मंदिर दुनिया के पवित्र बौद्ध मंदिरों में से एक है। मंदिर में भगवान बुद्ध की 6.1 मीटर लेटी प्रतिमा है। यह प्रतिमा लाल बलुआ पत्थर से बनी है। इस मंदिर में हर साल पर्यटक और बौद्ध तीर्थ यात्री काफी संख्या में आते हैं।
मांथा कुंवर मंदिर में भगवान बुद्ध की भू-स्पर्श मुद्रा में प्रतिमा है। मंदिर के सम्मुख उत्खनित धरोहर व अवशेष खुले में पड़े हैं। इनकी बौद्ध भिक्षु व उपासक व उपासिकाएं पूजा-अर्चना करती हैं।
रामाभार स्तूप पवित्र बौद्ध स्थल है। बौद्ध धर्म के अनुयायी परिक्रमा करते हैं। कैंडल आदि जलाकर बौद्ध परंपरा के अनुसार विशेष पूजा-अर्चना भी करते हैं। ध्यान भी करते हैं।