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विश्वजीत राय
कुशीनगर स्थित भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली में पुरातात्त्विक महत्व की जिन धरोहरों व बौद्ध कालीन अवशेषों को दिखाने के लिए वृहद स्तर पर कोशिश चल रही है। बौद्ध राष्ट्रों के सैलानियों के लिए अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट तक बनाया गया है, लेकिन यहां की पुरातात्विक धरोहरों के संरक्षण के लिए कोई पहल नहीं हो रही है।
ये पुरातात्विक स्थल चार महीने बारिश के पानी में डूबे रहते हैं। यदि समय रहते इन धरोहरों व अवशेषों को बचाने का उचित इंतजाम नहीं तो सभी इंतजाम बेमतलब साबित हो जाएंगे।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के कुप्रबंधन के कारण उत्खनित अवशेष, धरोहर व अन्य संरचनाएं बरसात में जलभराव से करीब चार महीने तक पानी में डूबी रहती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इतनी लंबी अवधि तक पानी में लगातार डूबे रहने से ढाई हजार साल पुराने ये अवशेष धीरे-धीरे नष्ट हो जाएंगे। इसलिए इन्हें बचाएंगे नहीं तो दिखाएंगे क्या?