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मनमोहन राय
लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियों के मद्देनजर बसपा सुप्रीमो मायावती के युवाओं को जोड़ने के निर्देश के बावजूद नए लोग पार्टी से नहीं जुड़ पा रहे हैं। दरअसल, नए लोगों के पार्टी में शामिल नहीं होने से टीम उस तरह से उत्साहित नहीं है जैसा पिछले चुनावों में रही है। हालांकि टीम को मजबूती देने के लिए मायावती पहले तीन माह लखनऊ फिर दिल्ली में बैठकें कर रही हैं। उधर मुस्लिमों को जोड़ने के लिए पूर्व विधायक इमरान मसूद को शामिल कर इसी क्रम को आगे बढ़ाने की तैयारी है।
विधानसभा चुनाव में दलित मुस्लिम समीकरण पर दांव लगाने के बावजूद बसपा चारों खाने चित हो गई थी। बावजूद इसके पार्टी के रणनीतिकारों का अब भी यही मानना है कि दलित मुस्लिम समीकरण बसपा का सबसे अच्छा हथियार है। लोकसभा चुनाव में भी यही फार्मूला नैया पार लगाएगा। कुछ सीटों पर सोशल इंजीनियरिंग को ध्यान में रखते हुए मायावती ने सभी कोऑर्डिनेटरो से कहा कि नए लोगों को पार्टी में शामिल करें और ऐसी सीटों पर पिछड़े वर्ग के लोगों को प्राथमिकता दें।
गठबंधन पर निगाह: भले ही मायावती यह कहती हों कि बसपा अपने दम पर चुनाव लडे़गी, लेकिन रणनीतिकार गठबंधन के विकल्पों पर भी विचार कर रहे हैं। देखना यह है कि बसपा की कांग्रेस के साथ बात बनती है या फिर छोटे दलों को जोड़कर आगे बढ़ती है। पार्टी की निगाह ऐसे दलों पर भी है जो दूसरे दलों में बागी तेवर दिखा रहे हैं।
वोट प्रतिशत के साथ समीकरण जरूरी: बसपा ने बूथ कमेटियों को एक्टिव किया है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा और रालोद के साथ बसपा ने 19.4 प्रतिशत मतों के साथ दस सीटें जीतीं थीं। 2014 में तो बसपा का खाता भी नहीं खुला था। ऐसे में यदि माकूल समीकरण नहीं बनें तो पार्टी को इस बार भी मुश्किल हो सकती है।