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सुनीता राय
घरों में पाले गए जर्मन शेफर्ड, राॅटबिलर और पुटबिल से ज्यादा खतरनाक गली के कुत्ते हैं। गली के कुत्तों का वैक्सीनेशन नहीं होता और ये आपके दरवाजे के इर्द-गिर्द ही मंडराते हैं। अगर काट लिए तो जान पर बन आएगी। इन्हें न तो मारिए-पीटिए और न भगाइए।
बस जरूरत है, इन्हें एंटी रैबीज वैक्सीन लगवाने की। यह काम कॉलोनी के लोग भी कर सकते हैं। लोगों का कहना है कि देसी कुत्तों को पकड़कर जंगल में छोड़ने के लिए नगर निगम भारी भरकम रकम खर्च करता है, उसी बजट से इनका वैक्सीनेशन करा दे तो हर कोई सुरक्षित रहेगा।
गली के कुत्तों के आतंक से आम से लेकर खास सभी वर्ग के लोग परेशान हैं, लेकिन इनसे बचने का इंतजाम किसी के पास नहीं है। जबकि यह मुसीबत हर दरवाजे पर खड़ी है। इसका शिकार कब कौन हो जाए, किसी को भी नहीं पता। जिला अस्पताल में हर दिन लगने वाले 150 से अधिक एंटी रेबीज इंजेक्शन भी इस बात की तस्दीक कर रहे हैं कि गली के कुत्ते किस कदर लोगों को अपना शिकार बना रहे हैं। इसमें भी 30 फीसदी बच्चे हैं। इसे लेकर कुछ शिकायतें नगर निगम तक पहुंचीं भी, लेकिन मामला गली के कुत्तों का था, तो शिकायतों को भी नजरअंदाज कर दिया गया।
हर गली, काॅलोनी में कुत्तों का झुंड रात-दिन घूम रहा है। हालात ऐसे हैं कि रात में अगर कोई काॅलोनी में पैदल या मोटरसाइकिल लेकर चला जाए तो ये कुत्ते दौड़ा लेते हैं। कई बार बाइक सवार कुत्तों से पीछा छुड़ाने के लिए स्पीड तेज करते हैं, तो वे अनियंत्रित होकर गिर जाते हैं और चोटिल हो जाते हैं। कुछ कॉलोनियां ऐसी भी हैं, जहां लोग डर के मारे अपने बच्चों को शाम के वक्त निकलने से भी मना कर देते हैं।
गली के कुत्तों का वैक्सीनेशन जरूरी