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मनमोहन राय
सुभासपा हो या निषाद पार्टी, दोनों दल अपनी-अपनी जाति के हक से जुड़े मुद्दे उठाकर सियासत मजबूत करने में जुट गए हैं। एनडीए में शामिल होने के बाद से जहां सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर हर फोरम पर राजभर जाति को एसटी का दर्जा दिलाने की मांग उठा रहे हैं, वहीं निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने भी अपनी जाति के आरक्षण का मुद्दा उठाना शुरू कर दिया है।
माना जा रहा है कि इसके पीछे दोनों दल के नेताओं की चिंता इन मुद्दों के जरिये अपनी जाति पर पकड़ बनाए रखने की है। लोकसभा चुनाव में अपनी जातियों के वोटबैंक में हिस्सेदारी को लेकर दोनों नेताओं की अग्निपरीक्षा भी है। मौजूदा सियासत पिछड़ों और दलित वोट बैंक के इर्द-गिर्द घूम रही है। यही वजह है कि भाजपा-कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दलों के अलावा सपा-बसपा में भी जातीय आधार वाली छोटी पार्टियों को अपने पाले में करने की होड़ मची है। छोटे दल भी अपनी अहमियत बढ़ाने के लिए ऐसे दलों का साथ पसंद कर रहे हैं।
मौका मिला तो परिवार को दी तरजीह
यह बात अलग है कि जब भी मौका मिला तो दोनों नेताओं ने अपने परिवार को ही तरजीह दी। संजय को मौका मिला तो उन्होंने खुद के सिंबल के बजाय भाजपा के सिंबल पर एक बेटे को सांसद तो दूसरे को विधायक बनवा लिया। इसी तरह 2017 में एनडीए के साथ रहे ओमप्रकाश राजभर भी सरकार में खुद मंत्री बने और बड़े बेटे को एक निगम का चेयरमैन बनवा लिया। अब लोकसभा चुनाव में भी दोनों दलों के कोटे की सीटों पर इनके बेटों के ही लड़ने की चर्चा है।