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विश्वजीत राय
119.20 किलोमीटर की लंबाई में जनपद के अंदर दस ब्लॉकों में होगा इन सड़कों का निर्माण
जापान और नीदरलैंड की मशीनों का उपयोग हो रहा इन सड़कों के निर्माण में
मिट्टी-गिट्टी और सीमेंट के साथ केमिकल डालकर तैयार की जा रहीं ये सड़कें
कुशीनगर/पकवाइनार। जिले में पहली बार एफडीआर तकनीक से 17 सड़कों का निर्माण शुरू हुआ है। माना जा रहा है कि मिट्टी-गिट्टी और सीमेंट के साथ केमिकल डालकर तैयार की जा रही ये सड़कें करीब दस साल टिकाऊ रहेंगी। 119.20 किलोमीटर लंबाई में इन सड़कों का निर्माण कराया जा रहा है, जिस पर 1.09 करोड़ रुपये खर्च होंगे। तारकोल से बनी सड़कों की अपेक्षा इसमें लागत कम आएगी और टिकाऊ भी होगी।
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना से जिले में स्वीकृत 17 सड़कों का निर्माण पहली बार इस तकनीक से किया जा रहा हैै। इन सड़कों को (एफडीआर फुल डेप्थ रिक्लेमेशन) तकनीक से बनाने में जापान व नीदरलैंड की मशीनों का प्रयोग किया जा रहा है।
ऐसे होता है काम
इस तकनीक के तहत पुरानी सड़क को मशीनों से उखाड़कर उसकी मिट्टी व गिट्टी को छोटे टुकड़ों में करके मिला दिया जाता है। इसके बाद उसमें मानक के मुताबिक 43 ग्रेड का सामान्य पोर्टलैंड सीमेंट व केमिकल को मिलाकर सड़क को समतल किया जाता है। तीन चरण में बनाई जाने वाली सड़क का दो बार लैब टेस्ट कराया जाना हैै।
आरईडी पीआईयू है कार्यदायी संस्था
शासन से बीते वित्तीय वर्ष में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 17 सड़कों की स्वीकृति मिलने के बाद कार्यदायी संस्था आरईडी पीआईयू ने काम शुरू करा दिया है। कार्यदायी संस्था के अनुसार एफडीआर तकनीक से बनने वाली सड़क कम से कम 10 साल टिकाऊ होगी। काम कराने वाली फर्म को पांच साल तक गारंटी देनी होगी। इस बीच सड़क में खामी आने पर फर्म को सड़क की मरम्मत करानी पड़ेगी।
कोट-
जिले में एफडीआर तकनीक से 17 सड़कों का निर्माण कार्य आरंभ हो गया है। निर्माण के लिए शासन से जारी दिशा-निर्देश का पालन करते हुए काम चल रहा है। इस तकनीक में निर्माण से पहले लैब जांच व रिपोर्ट के बाद ही सड़कें बनाई जानी हैं, इसलिए समय लग रहा है। तीन सड़कें नवंबर तक बनकर तैयार हो जाएंगी। शेष 14 में ट्रायल पैच, जेएमएफ व कोर कटिंग की कार्रवाई चल रही है।
कुंवर सुरेंद्र प्रताप, अधिशासी अभियंता, पीएमजीएसवाई, कुशीनगर
एफडीआर तकनीक से इन सड़कों का हो रहा निर्माण
क्रमांक- मार्ग का नाम- दूरी (किलोमीटर में)
1:- खड्डा से पनियहवा-7.10
2:- पिपरा से बलकुड़िया- 6.10
3:- पकड़ियार से कौवासार- 5.50
4:- करमैनी से बरवां राजापाकड़- 5.80
5:- बलकुड़िया पिपरा मार्ग से सिसवा
गोइती वायां नोनिया पट्टी गंभीर छपरा- 5.00
6:- मनसा छापर से सूरजनगर- 8.75
7:- अहिरौली बोदरवार से बोदरवार सड़क- 6.60
8:- एनएच-28 से जौरा सोनबरसा- 9.90
9:- सोनिया से बनकटा- 6.00
10:- हेतिमपुर-गोबरहीं पिच रोड- 10.37
11:- रामकोला नौरंगिया से इमिलिया- 5.00
12:- पटहेरवा बसडीला महंथ से दर्जिया- 10.08
13:- बीटीसी रोड से चंदरपुर वाया बरवां भोकरिया बरियारपुर- 6.00
14:- बसडीला से डोमनछपरा तक- 9.50
15:-अहिरौली दान लखनहां घाट से बाकखास गांधी प्रधान के घर तक- 5.20
16:-मठिया से कोपजंगल- 7.00
17:- धुरिया इमिलिया से सपहीं टड़वा से पगरा पड़री तक- 6.00
कुल लंबाई – 119.20
09.044 करोड़ रुपये की लागत से बनकर तैयार होंगी सड़कें
विभाग के मुताबिक, जिले की एफडीआर तकनीक से बनाई जा रहीं इन 17 सड़कों के निर्माण पर 109.044 करोड़ रुपये खर्च होंगे। इसमें इन सड़कों की चौड़ाई बढ़ाई जाएगी, जिससे नवनिर्मित सड़कों की कुल चौड़ाई नौ मीटर हो जाएगी। इसमें साढ़े पांच मीटर चौड़ाई में रास्ता होगा। सड़क के दोनों तरफ 1.75 व 1.75 मीटर चौड़ा शोेल्डर होगी, जबकि इन सड़कों की चौड़ाई मौजूदा समय में 3.75 मीटर ही है। ये सड़कें करीब 13 वर्ष पूर्व 2010 में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत बनाई गई थीं। इनके निर्माण पर करीब 45 करोड़ रुपये खर्च हुए थे।
जिले की 14 में से मात्र 10 ब्लॉकों की ही स्वीकृत हैं सड़कें
पहली बार एफडीआर तकनीक से बनाई जा रहीं इन 17 सड़कों का निर्माण कार्य 10 ब्लॉकों में ही स्वीकृत है। इनमें खड्डा, विशुनपुरा व तमकुही की तीन-तीन, रामकोला की दो और सुकरौली, फाजिलनगर, मोतीचक, हाटा एवं सेवरही की एक-एक सड़क शामिल है।
रिसाइकिलिंग पद्धति है एफडीआर तकनीक
अवर अभियंता अजय कुमार गोंड ने बताया कि एफडीआर तकनीक एक रिसाइकिलिंग पद्धति है। यह पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल है। दरअसल, इसके निर्माण में तारकोल का प्रयोग नहीं होता है। साथ ही पुरानी सड़क की गिट्टी समेत अन्य चीजों का इस्तेमाल दोबारा सड़क बनाने में किया जाता है। ऐसे में ट्रांसपोर्टेशन पर खर्च नहीं होता है। इस तकनीक से बनी सड़क की लाइफ दस साल होती है, जबकि सामान्य तरीके से बनी सड़क की पांच साल होती है।
निर्माण से पूर्व लैब में होती है जांच
इस तकनीक से सड़क निर्माण से पहले टेक्निकल टीम जगह-जगह का नमूना लेकर जांच के लिए लैब भेजती है। जांच रिपोर्ट के मुताबिक फिर जेएमएफ (जॉब मिक्स फार्मूला) के लिए एक किलोमीटर में मशीन से सड़क को उखाड़कर दो जगहों का सैंपल लेकर गुणवत्ता की मौजूदा हालात जानने के लिए नमूना भेजा जाता है। रिपोर्ट के मुताबिक फिर उस सड़क पर 100 मीटर लंबाई में ट्राॅयल पैच किया जाता है। ट्रायल पैच के 28 दिन बाद कोर कटिंग कर जांच के लिए आईआईटी रुड़की भेज दिया जाता है। फिर उसकी रिपोर्ट के आधार पर सड़क का निर्माण कराया जाना आरंभ होता है।
जलभराव वाले स्थलों पर जगह होने पर नाली निर्माण होगा
इन सड़कों के निर्माण में जहां जलभराव की स्थिति होगी, वहां पर नाली का निर्माण कराया जाएगा, जहां जमीन होगी। अथवा उन स्थलों पर सीसी रोड बना दिया जाएगा। ताकि जलभराव से सड़क में न तो गड्ढे बने और न ही आवागमन में कोई दिक्कत हो।