दहेज उत्पीड़न के पिछले साल 2022 में 67 केस दर्ज किए गए थे, जिसमें सिर्फ पुलिस ने पति, सास व ससुर जैसे करीबियों को ही आरोपी बनाया

उत्तर प्रदेश गोरखपुर

सफल समाचार 
सुनीता राय 

आपसी विवाद में एससीएसटी हो या फिर दहेज उत्पीड़न के मामलों में दूर के रिश्तेदार को फंसाए जाने का मामला जिले में बहुत है। आपसी विवाद में वादी एक अनुसूचित जाति को बनाया जाता है और फिर एससीएसटी का केस दर्ज करा दिया जाता है। बाद में रुपये मांगे जाते हैं, नहीं तो पीड़ित को फंसाए जाने की धमकी दी जाती है। लेकिन, पुलिस की जांच और खुद की साक्ष्यों के दम पर पैरवी में कईयों को इंसाफ भी मिला है।

दहेज उत्पीड़न के पिछले साल 2022 में 67 केस दर्ज किए गए थे, जिसमें सिर्फ पुलिस ने पति, सास व ससुर जैसे करीबियों को ही आरोपी बनाया, दूर के रिश्तेदारों को जांच व लोकेशन के आधार पर केस से बाहर किया गया। कुछ यही हाल एससीएसटी केस का भी है। 24 मुकदमों में 22 बरी किए गए।

सामाजिक क्षति तो हुई ही, मानसिक यातना भी झेलनी पड़ी
चौरीचौरा इलाके के निवासी व क्षेत्र पंचायत सदस्य आकाश उपाध्याय बताते हैं, चुनावी रंजिश में उनके खिलाफ चोरी व एससीएसटी का केस दर्ज करा दिया गया। सबको मालूम था कि मैंने ऐसा नहीं किया है, लेकिन फिर भी विरोधियों ने इसे हवा दिया। सोशल मीडिया पर खूब वायरल किया। मेरी जितनी भी सामाजिक क्षति हो सकती थी, सब हुआ। इन सब के बीच सबसे ज्यादा तकलीफ मुझे खुद में होता था। मैं जानता था कि सही हूं। लेकिन, जब भी किसी अफसर या अन्य के पास मदद को जाता था तो एक बार जरूर पूछ लेते थे, कहीं सही में तो जातिसूचक गाली तो नहीं दे दिए थे। खुद ही साक्ष्यों को जुटाया और फिर मानसिक यातना को झेलने की आदत सी डाल ली। पैरवी किया और फिर जांच में एक-एक बिंदु पर पुलिस ने पुलिस ने निर्दोष पाया। यह भी सही है कि इस दौरान कई बार मामले को रफा-दफा करने के लिए मांग भी की गई। लेकिन, मैंने सोच लिया था कि कुछ भी हो जाए, जब मैं सही हूं तो लड़ूंगा और फिर जो होगा देखा जाएगा। दोस्तों और घरवालों ने भी साथ दिया और पुलिस की जांच में भी यह बात साबित हो गई कि जिस दिन घटना को बताया गया था, उस दिन कुछ हुआ ही नहीं था। घटना फर्जी साबित हुई थी।

रिश्तेदारी में विवाहिता ने कर ली खुदकुशी, हम बन गए थे मुल्जिम

खोराबार के धर्मेंद्र कुमार बताते हैं, उनकी रिश्तेदारी में एक महिला ने फंदे से लटककर खुदकुशी कर ली थी। उन्हें भी मुल्जिम बना दिया गया। बताते हैं, उनका दोष सिर्फ इतना था कि रिश्तेदारी में होने की वजह से घर में विवाद होने पर बड़े बुजर्गों के बीच हुए पंचायत में वह भी शामिल होने के लिए चले गए थे। करीब एक साल मुझे केस झेलना पड़ा। कुशीनगर में केस होने की वजह से पुलिस जांच के नाम पर दो दिन में बुलाया जाता था। सब काम छोड़कर वहां पर जाना पड़ता था।

विवेचक (जांच अधिकारी) भी कहते थे कि मुझे मालूम है, आप नहीं थे, लेकिन इसे साबित करना पड़ेगा। बाद में मेरे मोबाइल का लोकेशन निकाला गया। उसके बाद मेरे हाथ एक सीसी टीवी फुटेज लग गया, जिसमें मैं घटना के समय एक दुकान पर मौजूद दिख रहा था और दर्ज केस में यह बताया गया था कि मैंने ही पति के साथ मिलकर गला दबाया है। तब जाकर एक साल बाद इस केस से छूटकारा मिल सका। सभी लोग यही कहते थे, झूठे आप गए। घरवाले भी एक समय के बाद साथ छोड़ने लगे थे। खुद को सही साबित करने तक सामाजिक, आर्थिक और सबसे ज्यादा मानसिक उत्पीड़न बहुत सहना पड़ा।

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