सफल समाचार
विश्वजीत राय
एक आभूषण अलग-अलग कारखानों में तैयार होता है। केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर बोर्ड ने गोल्ड ज्वैलरी के मूवमेंट पर ई वे बिल लागू करने का नोटिफिकेशन जारी किया है। इससे व्यापारियों में भय है और ई वे बिल लागू करने का विरोध कर रहे हैं।
सोने-चांदी के गहनों और बुलियन पर ई वे बिल लागू करने के फरमान के बाद नई मुश्किलें सामने आने लगी हैं। सबसे बड़ी मुसीबत 90 फीसदी छोटे सराफा व्यापारियों को उठानी पड़ेगी, जिन्हें एक ही गहना बनवाने के लिए कई-कई बार ई वे बिल बनवाना होगा। क्योंकि एक आभूषण कई चरणों में अलग-अलग कारखानों में तैयार होता है। कारखाने से जितनी बार गहना बाहर निकलेगा, उतनी बार ई वे बिल जनरेट करना होगा। वाहन सुरक्षा के साथ-साथ ऑपरेटरों के खर्च भी बढ़ जाएंगे। इससे आभूषण की बनवाई (मेकिंग चार्ज) महंगी होगी। इसका असर ग्राहकों पर पड़ेगा। सराफा व्यापारियों ने इस नियम का विरोध कर दिया है।
केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर बोर्ड ने सभी राज्य सरकारों को अपने-अपने राज्यों के भीतर स्वैच्छिक रूप से दो लाख से अधिक की गोल्ड ज्वैलरी के मूवमेंट पर ई वे बिल लागू करने का नोटिफिकेशन जारी किया है। ये राज्य सरकार पर है कि इसे किस तारीख से लागू किया जाए। ऑल इंडिया ज्वैलर्स एंड गोल्डस्मिथ फेडरेशन ने कहा है कि इससे मध्यम व छोटे सराफा कारोबारियों में भय का माहौल है। ऑल इंडिया जेम्स एंड ज्वैलरी एसोसिएशन ने बदलाव की मांग की है तो ऑल इंडिया ज्वैलर्स एंड गोल्डस्मिथ फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंकज अरोड़ा के नेतृत्व में बारह राज्यों के सराफा व्यापारियों की बैठक में तय हुआ कि फेडरेशन के सभी प्रदेश अध्यक्ष अपने-अपने राज्य के वित्तमंत्री से मुलाकात करेंगे। बैठक में इस फरमान से पैदा होने वाली मुसीबतों पर चर्चा की गई।
कारोबारियों ने कहा कि एक आभूषण को तैयार करने में विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजरना होता है। इसके कारीगर व कारखाने अलग-अलग होते हैं। जैसे- कास्टिंग कराना, पालिश /डल कराना, छिलाई/सेटिंग कराना, फिर हॉलमार्किंग करना आदि। ऐसे में एक आभूषण का कई बार ई वे बिल बनाना पड़ेगा और एक ही आभूषण के लिए छोटे दुकानदारों को कई बार कंप्यूटर कैफे जाना पड़ेगा।
इसी तरह कई बार आभूषणों में तत्काल संशोधन कराना पड़ता है। जैसे- नग बदलना, नाप छोटा करना या रोडियम करना आदि। ऐसे में दिक्कत यह आएगी कि जिस कारीगर या कारखाने के नाम से ई वे बिल बना है, वहां पहुंचने पर अगर उसने काम करने से इन्कार कर दिया तो फिर वापस लाकर अन्य कारीगर या कारखाने के नाम से पुनः ई वे बिल बनवाना पड़ेगा।
जानमाल के लिए खतरा, होंगी ये समस्याएं
90 फीसदी छोटे व मध्यम व्यापारियों और स्वर्णकारों को आज भी कंप्यूटर का अल्प ज्ञान है। विभिन्न कार्यों के लिए वे इंटरनेट कैफे पर आश्रित हैं। ऐसे में ई वे बिल के लिए भी उन्हें कैफे जाना होगा। जहां अपरिचित कंप्यूटर ऑपरेटर और उपस्थित अन्य लोगों के सामने उसकी पहचान उजागर होगी, जो व्यापारी के जानमाल के लिए खतरा बना रहेगा।
प्रदेश में लगभग 15 फीसदी ज्वैलर्स ने कामकाज लिए पार्टटाइम कंप्यूटर ऑपरेटर रखे हैं। ये ऑपरेटर कई अन्य फर्मों का काम भी साथ में करते हैं। इनसे भी ई वे बिल का काम लेने पर गोपनीयता भंग होने का खतरा रहेगा।
सभी सराफा बाजारों में गहनों की तौल के लिए मान्यताप्राप्त धर्मकांटों की पर्ची होना अनिवार्य है। सभी माल स्थानांतरण से पहले धर्मकांटे पर माल भेज कर वजन चेक करते हैं। तब माल की शुद्धता जांच के लिए हॉलमार्किंग सेंटर भी भेजना होता है। इसमें ई वे बिल से दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा।
नेकलेस की बिक्री के समय उसमें डोरी लगवाना, पेच सेट कराना, नग-नगीने आदि बदलने में भी बार-बार कारीगर के यहां भेजा जाता है। ई वे बिल से इसमें भी दिक्कतें आएंगी।