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सुनीता राय
सीएमओ डॉ. आशुतोष दुबे ने कहा कि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों के लिए पहले से ही जेनरिक दवाएं लिखने का नियम है। दूसरा नियम दवाओं का फार्मूला साफ-साफ लिखने का आया है। इसका भी पालन किया जाएगा। सरकार का पूरा ध्यान जेनरिक दवाओं के प्रचार-प्रसार पर है।
अब डॉक्टरों को मरीजों के इलाज के लिए लिखी गईं दवाएं पर्चे पर साफ-साफ लिखनी होंगी, वह भी बड़े अच्छरों में। उनकी लिखावट ऐसी होगी कि आम लोग भी आसानी से पढ़ सकेंगे। यही नहीं, उन्हें जेनरिक दवाएं ही लिखनी होंगी। इसे लेकर नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) ने नई गाइडलाइन जारी की है।
गाइडलाइन में साफ तौर पर कहा गया है कि ये नियम सभी आरएमपी (रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टीशनर) पर लागू होंगे। सरकार से मान्यता प्राप्त चिकित्सा शिक्षा संस्थानों से डिग्री प्राप्त करने के पश्चात भारत सरकार के नेशनल मेडिकल कमीशन में पंजीकृत होने वाले डॉक्टर इस श्रेणी में आते हैं। इन डॉक्टरों के पर्चा का नमूना भी जारी किया गया है। इस पर डॉक्टर का नाम, पंजीकरण संख्या, आपातकालीन नंबर, रोगी का नाम, उम्र, श्रेणी, भार आदि का भी जिक्र करना है।
दरअसल, अधिकतर डॉक्टर अपने पर्चों पर दवाइयों का नाम स्पष्ट नहीं लिखते हैं। इनमें से कई नाम तो ऐसे होते हैं, जो पढ़ने में ही नहीं आते, लेकिन मेडिकल स्टोर संचालक पर्चा देखते ही इसे समझ जाते हैं। कई बार मरीजों को किसी खास दवा के लिए घंटों तक दुकान-दुुकान भटकना पड़ता है। लेकिन अब एनएमसी की नई गाइडलाइन में स्पष्ट किया गया है कि डॉक्टर पर्चे पर दवाओं का नाम स्पष्ट रूप से बड़े अक्षरों में लिखें। संभव हो तो नाम टाइप करा दें। इससे मरीज व तीमारदार गलत दवाइयां लेने से बच सकेंगे।