सुप्रीम कोर्ट के अभिलेखीय संग्रहालय में सहायक निदेशक की नियुक्ति सवालों के घेरे में, होईकोर्ट ने जताई नाराजगी

उत्तर प्रदेश प्रयागराज

सफल समाचार 
आकाश राय 

सुप्रीम कोर्ट के अभिलेखीय संग्रहालय में सहायक निदेशक रहे राजेश प्रसाद ने इलाहाबाद संग्रहालय के निदेशक के रूप में नवंबर 2022 में कार्यभार ग्रहण किया था। राजेश प्रसाद की नियुक्ति के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में डॉ. मनोज कुमार गौतम और डॉ. सुनील झा ने याचिका दाखिल की है।

इलाहाबाद संग्रहालय के निदेशक राजेश प्रसाद की नियुक्ति सवालों के घेरे में है। नियुक्ति की प्रक्रिया और योग्यता को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल दो याचिकाओं पर नोटिस के करीब 11 महीने बाद भी संस्कृति विभाग ने जवाब ही दाखिल नहीं दिया। नाराज कोर्ट ने संग्रहालय के अध्यक्ष और निदेशक को जवाब के लिए एक अतिरिक्त मौका दिया है। कोर्ट ने नियत तिथि तक जवाब न देने पर संस्कृति विभाग के जिम्मेदार अधिकारी को हाजिर होने का निर्देश भी दिया है।

न्यायमूर्ति एआर मसूदी और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने डॉ. मनोज कुमार गौतम की ओर से निदेशक राजेश प्रसाद की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट के अभिलेखीय संग्रहालय में सहायक निदेशक रहे राजेश प्रसाद ने इलाहाबाद संग्रहालय के निदेशक के रूप में नवंबर 2022 में कार्यभार ग्रहण किया था। राजेश प्रसाद की नियुक्ति के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय में डॉ. मनोज कुमार गौतम और डॉ. सुनील झा ने याचिका दाखिल की है। दोनों याची भी इसी पद के दावेदार थे।

दोनों प्रकरण की सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट में एकल पीठ और लखनऊ पीठ में खंडपीठ कर रही है। याचिका के मुताबिक निदेशक पद के लिए वर्ष 2021 में विज्ञापन जारी हुआ। इसके लिए 18 लोगों ने आवेदन किया। इसमें छह अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया। दलील दी गई कि राजेश प्रसाद अपेक्षित योग्यता नहीं रखते थे, बावजूद इसके उन्हें साक्षात्कार के लिए बुलाया गया। यही नहीं, साक्षात्कार का परिणाम घोषित किए बगैर ही राजेश प्रसाद को नियुक्ति पत्र जारी करके उन्हें कार्यभार ग्रहण करा दिया गया।

याचियों का कहना है कि इलाहाबाद संग्रहालय कला और सांस्कृतिक संग्रहालय है। जबकि, राजेश प्रसाद के पास कला और सांस्कृतिक संग्रहालय के कार्य और प्रशासन का अनुभव नहीं है। लिहाजा, वह पद के अनुरूप योग्यता नहीं रखते। याचियों के मुताबिक उन्हें सूचना के अधिकार के तहत नियुक्ति प्रक्रिया की जानकारी भी नहीं दी गई। इसके बाद हाईकोर्ट की शरण में आना पड़ा। कोर्ट अगली सुनवाई सितंबर में करेगा।

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