चंद्रयान प्रथम की डाटा एनालिसिस टीम के सदस्य रहे प्रो. जेके पति बताते हैं कि चंद्रयान तृतीय जहां उतरा है, उसका लैटीट्यूड 70 डिग्री साउथ है

उत्तर प्रदेश प्रयागराज

सफल समाचार 
आकाश राय 

चंद्रयान तृतीय की सफल लैंडिंग के बाद अब पूरी दुनिया की नजर भारत पर टिक गई है। चंद्रयान में प्रज्ञान रोवर के साथ लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोपी (लिब्स) नाम का उपकरण भी है, जो चांद के रहस्यों को उजागर करेगा। यह उपकरण इलाहाबाद विश्वविद्यालय (इविवि) के भौतिक विज्ञान विभाग की प्रयोगशाला में भी है।

चंद्रयान प्रथम की डाटा एनालिसिस टीम के सदस्य रहे प्रो. जेके पति बताते हैं कि चंद्रयान तृतीय जहां उतरा है, उसका लैटीट्यूड 70 डिग्री साउथ है। वहां सूरज की रोशन नहीं पड़ती है। बड़े-बड़े क्रेटस यानी गड्ढे हैं, जहां मौजूद पानी न जाने कितने वर्षों से बर्फ के रूप जमा हुआ है। लिब्स के जरिये किसी भी पदार्थ पर लेजर किरणें डालते ही कुछ ही मिनटों में पता लगाया जा सकता है कि उनमें कौन से तत्व मिले हैं। इविवि के भौतिक विज्ञान विभाग के कई शोध में भी लिब्स का प्रयोग किया जाता है।

चांद के साउथ पोल में उपलब्ध बर्फ, मिट्टी, पत्थरों के बारे में लिब्स के जरिये कई महत्वपूर्ण जानकारियां मिलेंगी। प्रो. जेके पति ने बताया कि चांद में कई जगहों पर तापमान माइनस 200 डिग्री तक पहुंच जाता है तो कुछ जगहों पर तापमान इतना अधिक होता है कि पानी उबलने लगे। प्रज्ञान रोवर में एक थर्मामीटर भी लगा है, जो प्रत्येक सेंटीमीटर पर पर चांद की सतह के तापमान का पता लगा सकता है।

इसरो के वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में लगाई नई छलांग
इस अभियान के दौरान कई रेअर अर्थ एलीमेंट (जो पृथ्वी पर असानी से उपलब्ध नहीं होते) भी मिलने की उम्मीद है, जिनकी खोज से भारत बुलंदियों को छू सकता है। प्रज्ञान रोवर में अल्फा पार्टीकल सेंसर भी है, जो प्लाज्मा का अध्ययन कर कई महत्वपूर्ण जानकारियां भेजेगा। चंद्रयान पर ऐसा सेंसर भी लगा हुआ है जो यह जानकारी भेजेगा कि सॉफ्ट लैंडिंग के दौरान चांद की सतह पर कंपन की क्या स्थिति थी।

इविवि के भौतिक विज्ञान के प्रो. केएन उत्तम का कहना है कि इसरो के वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष विज्ञान में नई छलांग लगाई है। दुनिया भर में भारत की यह सबसे बड़ी उपलब्धि है। आने वाले समय में चांद पर अंतरिक्ष कारखाने (स्पेस मिल) की स्थापना और कॉलोनी बसाने की दिशा में भी काम हो सकेगा। चांद के दक्षिणी ध्रुव में हाइड्रोजन के आइसाेटॉप मिलते हैं, जो हवा में तैरते रहते हैं। इनसे न्यूक्लियर रिएक्टर बन सकते हैं, जिससे बिजली का उत्पादन किया जा सकता है। माइक्रो तरंगों के माध्यम से इन्हें पृथ्वी तक लाने का प्रयास भी होगा।

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