एक मगरमच्छ भटककर इस पोखरे में पहुंच गया। शनिवार को उसे देखकर लोगों में दहशत फैल गई

उत्तर प्रदेश कुशीनगर

सफल समाचार 
विश्वजीत राय 

सिसवा गोपाल गांव में रिहायशी इलाके में स्थित पोखरे में पहुंच गया था

खड्डा। क्षेत्र की ग्रामसभा सिसवा गोपाल के रिहायशी इलाके के बीच स्थित पोखरे में शनिवार को एक मगरमच्छ पहुंच गया। यह देखकर लोगों में दहशत फैल गई। सूचना पर पहुुंची वन विभाग की टीम ने काफी प्रयास के बाद उसे रेस्क्यू कर गंडक नदी में सुरक्षित छोड़ दिया। इसके बाद लोगों ने राहत की सांस ली।
सिसवा गोपाल निवासी हरिओम जायसवाल ने गांव में पोखरा खोदवाया है। बरसात के समय नदी-नाले में पानी भरने से एक मगरमच्छ भटककर इस पोखरे में पहुंच गया। शनिवार को उसे देखकर लोगों में दहशत फैल गई। सूचना पर पहुंचे वन विभाग के डिप्टी रेंजर और अन्य वन कर्मचारियों ने मछुआरों की बड़ी जाल से उसे पकड़ने का प्रयास किया, लेकिन वह जाल फाड़ कर निकल जा रहा था।

करीब पांच घंटे तक कड़ी मशक्कत के बाद उसे पकड़कर गंडक नदी में सुरक्षित छोड़ दिया गया। इस संबंध में डिप्टी रेंजर अमित तिवारी ने कहा कि मगरमच्छ को पकड़कर नदी में छोड़वा दिया गया है।
नदियों से निकलकर रिहायशी इलाकाें में पहुंच जाते हैं मगरमच्छ

खड्डा। गंडक नदी से निकलकर मगरमच्छ रिहायशी इलाकों में पहुंच जाते हैं। यहां ये लोगों के लिए खतरा बन जाते हैं। पूर्व में कई बार मगरमच्छ आबादी में पहुंच चुके हैं। वे नहरों और नालों के रास्ते गांव तक पहुंच जाते हैं।

बीते दो अगस्त को मदनपुर सुकरौली गांव के पास मुख्य पश्चिमी गंडक नहर में एक युवक को मगरमच्छ के खींच ले जाने व उसे मार देने की बात सामने आई थी। वर्ष 2021 में गंडक नदी पार के बसंतपुर गांव के पास नाले में विशालकाय मगरमच्छ पहुंच गया था। इसी वर्ष मलहिया गांव के एक स्कूल के कमरे में डेरा जमा लिया था। वन विभाग ने नदी में छोड़ा था।

वर्ष 2020 में गंगवा छपरा गांव के सरेह में केले के खेत में मगरमच्छ पहुंच गया था। इसी वर्ष हनुमानगंज गांव में एक मगरमच्छ पहुंच गया था। इसके अलावा सिसवा गोपाल गांव के एक पोखरे में तीन मगरमच्छ पाए गए थे। वर्ष 2019 में गुलहरिया गांव में मगरमच्छ पाया गया था। उस साल बरवा रतनपुर गांव में भी दो मगरमच्छ पाए गए थे। उसी वर्ष बिहार सीमा में लौकरिया थाना क्षेत्र में मछली पकड़ने गए किशोर को मगरमच्छ ने मार डाला था।

गंडक नदी में पाए जाते हैं मगरमच्छ और घड़ियाल
गंडक नदी में घड़ियाल व मगरमच्छ दोनों पाए जाते हैं। घड़ियाल की संख्या बढ़ाने के लिए वाल्मीकि टाइगर रिजर्व बड़े पैमाने पर पुनर्वास योजना चला रहा है। घड़ियाल से मनुष्यों को कोई खतरा नहीं होता है। वे मीठे व साफ पानी में रहते हैं। साथ ही छोटी मछलियों व सड़े-गले मांस खाकर नदी को स्वच्छ रखने में मदद करते हैं।

वहीं, मगरमच्छ खतरनाक होते हैं। ये मनुष्य, जानवर सब कुछ खा जाने की शक्ति रखते हैं। बरसात के दिनों में नदी से निकलकर रिहायशी इलाके में आ जाते हैं। पानी व जमीन दोनों जगह आसानी से रह लेते हैं। इनके अंदर गजब की शक्ति होती है। ये पानी के अंदर 40 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से तैरते हैं। इनकी पाचन शक्ति इतनी मजबूत होती है कि लोहे, कील, पत्थर, जानवरों के मांस, हड्डी सब कुछ पचा लेते हैं।

बरसात के इस मौसम में यह मादा से मिलन करता है। मादा एक बार में 10 से 30 तक अंडे देती है। उसे पानी के बाहर जमीन में ढक देती है। बाद में जब बच्चे निकलते हैं तो उन्हें सावधानी से पानी में छोड़ देती है। मगरमच्छ की औसत आयु 40 से 60 वर्ष बताई जाती है।

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