सफल समाचार
विश्वजीत राय
पकवा इनार। कुशीनगर म्यांमार बुद्ध विहार मंदिर में श्रावण पूर्णिमा के मौके पर बुधवार को उपासक-उपासिकाओं ने बौद्ध भिक्षुओं को पिंड पात्र दान किया। बौद्धों के लिए प्रत्येक पूर्णिमा महत्वपूर्ण तिथि है।
बैसाख पूर्णिमा को सिद्धार्थ का जन्म नेपाल के लुंबिनी में हुआ था। बोधगया में ज्ञान प्राप्ति और कुशीनगर में बुद्ध का निर्वाण बैसाख पूर्णिमा को ही हुआ था। श्रावण पूर्णिमा का भी विशेष महत्व है। कुशीनगर भिक्षु संघ के अध्यक्ष एबी ज्ञानेश्वर ने कहा कि श्रावण पूर्णिमा को भगवान बुद्ध ने श्रावस्ती में अपने चमत्कारिक शक्ति से डकैत अंगुलिमाल का हृदय परिवर्तन किया था। उसे बौद्ध धर्म की दीक्षा भी दी थी।
इसी दिन बुद्ध के निर्वाण के तीन माह बाद राजगिरि में 500 भिक्षुओं ने अजातशत्रु के शासनकाल में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन किया था। उन्होंने कहा कि बौद्ध धर्मावंलिबयों का वर्षा वास भी श्रावणी पूर्णिमा से प्रारंभ होता है। यह तीन माह तक चलता है। इसके पूर्व भिक्षुओं ने मैत्री सूत्र का पाठ किया। अंत में महापरिनिर्वाण बुद्ध मंदिर में तथागत की लेटी प्रतिमा पर चीवर चढ़ाकर विश्व की शांति के लिए प्रार्थना की।
इस दैरान अचान सोंगक्रान, भिक्षुणी धम्म नैना, भंते नंदका भंते अशोक, भंते यसीदा, टीके राय आदि मौजूद रहे।