बुलंद हौसलों और लगन की बदौलत शिक्षकों ने प्राथमिक विद्यालयों की सूरत बदल दी

उत्तर प्रदेश गोरखपुर

सफल समाचार 
सुनीता राय 

गोरखपुर जिले के कौड़ीराम ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय अईमा और खोराबार ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय जंगल सिकरी किसी भी निजी विद्यालय से कम नहीं है। यहां के शिक्षकों बदौलत इन विद्यालयों की चर्चा जिले भर में होती रहती है।

बुलंद हौसलों और लगन की बदौलत शिक्षकों ने प्राथमिक विद्यालयों की सूरत बदल दी। पढ़ाई का माहौल बनाया। इसी का नतीजा रहा कि दाखिला लेने वाले विद्यार्थियों की संख्या बढ़ गई। कई विद्यालय ऐसे हैं, जो निजी विद्यालयों को चुनौती दे रहे हैं। जिले के कौड़ीराम ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय अईमा और खोराबार ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय जंगल सिकरी किसी भी निजी विद्यालय से कम नहीं है। यहां के शिक्षकों बदौलत इन विद्यालयों की चर्चा जिले भर में होती रहती है।

मनोरंजक तरीके से बच्चों को पढ़ाकर आकर्षित करती हैं ज्योति
कौड़ीराम ब्लाॅक के प्राथमिक विद्यालय अईमा की शिक्षिका ज्योति मिश्रा बच्चों को मनोरंजक तरीके से पढ़ाती हैं। पुस्तक के अध्याय में जो पात्र होते हैं, उन पात्रों के बारे में वह अभिनय के माध्यम से बच्चों बताती हैं। उनके पात्र भी बच्चे ही बनते हैं। इसके अलावा बच्चों के अभिभावकों को भी वह पढ़ाई से जोड़ती हैं। पढ़ाई के अलावा वह विद्यालय के योग, डांस, हैंडी क्राफ्ट सहित तमाम तरह की गतिविधि कराती हैं, जिससे बच्चें स्कूल खुशी-खुशी पहुंचते हैं।

यह विद्यालय बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में आता है, ऐसे में ज्योति मिश्रा अपने सहायक अध्यापक के साथ मिलकर विद्यालय के भवन को भी खुद के पैसों से ठीक करवाती हैं। इन कार्यों के लिए इन्हें कई बार सम्मानित भी किया जा चुका है।

वंदना ने बदली प्राथमिक विद्यालय जंगल सिकरी की तस्वीर
एक ओर जहां लोग अपने बच्चों का प्रवेश प्राथमिक विद्यालय में कराने से कतराते हैं, तो वहीं दूसरी ओर खोराबार ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय जंगल सिकरी की प्रवेश के लिए अभिभावकों को मना करना पड़ता है। यह मुमकिन हुआ है यहां की शिक्षिका वंदना यादव की बदौलत। वंदना 2010 में इस विद्यालय में आईं। इसके बाद से ही उन्होंने विद्यालय को बदलने का काम शुरू हुआ। सबसे पहले वहां शौचालय की व्यवस्था कराई।

इसके बाद पढ़ाई उबाउ न हो इसके लिए उन्होंने हर विषय के लिए अलग-अलग पीरियड और शिक्षक निर्धारित किए। वहीं हर कक्षा में बच्चों को चार वर्गों बांटकर उन्हें पढ़ाया जाने लगा। इससे वहां पढ़ाई की गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ और धीरे-धीरे बच्चों की संख्या में इजाफा होता रहा। इस प्राथमिक विद्यालय में 400 से अधिक बच्चे पढ़ते हैं। शिक्षकों ने खुद के पैसों को एकत्रित कर विद्यालय के भवन को खूब आकर्षक बनाया है।

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