बलिया के कुछ नक्सली नेताओं के तार जिले से जुड़े होने को लेकर खुफिया विभाग जानकारी जुटा रहा है

उत्तर प्रदेश देवरिया

सफल समाचार 
शेर मोहम्मद 

देवरिया। बिहार और बलिया के कुछ नक्सली नेताओं के तार जिले से जुड़े होने को लेकर खुफिया विभाग जानकारी जुटा रहा है। पिछले दिनों एटीएस और एनआईए ने दो नेताओं को गिरफ्तार किया था। इनके पड़ोसी जनपद बलिया निवासी होने और जिले की सीमा बिहार से सटी होने से खुफिया विभाग को आशंका है कि यहां भी उनका आना जाना होता रहा होगा, क्योंकि दोनों ही नेता आजमगढ़ के खिरिया बाग के आंदोलन से जुड़े हुए हैं। इतना नहीं नया संगठन खड़ा करने का भी प्रयास किया जा रहा है।

पुलिस सूत्रों के अनुसार राजेश चौहान के घर छापे की कार्रवाई भी लोकल खुफिया विभाग के इनपुट पर हुई है। एनआईए और एटीएस ने बिहार से चार नक्सलियों को गिरफ्तार किया था और पड़ोसी जिले बलिया से भी पांच गिरफ्तार हुए थे। इनसे मिले इनपुट से जांच एजेंसियों को अहम सुराग मिले हैं। चंदौली और अन्य जगहों से रिश्ता रखने वाले लोगों पर खास निगाह रखी जा रही है। बिहार में पकड़े गए प्रमोद मिश्र ने अपने सहयोगियों और अपने करीबियों के माध्यम से पूर्वांचल के कई जनपदों में नए तरीके से नेटवर्क खड़ा करने का प्रयास किया है। शहर के उमानगर मोहल्ला निवासी राजेश चौहान खिरिया बाग आंदोलन के प्रमुख नेता हैं। इस जगह पर प्रमोद और अनिल का भी आना जाना हुआ है। इसके कारण एनआईए का शक गहरा गया। बरामद साहित्य और मोबाइल हैंडसेट के जरिए जांच एजेंसियां जांच का दायरा आगे बढ़ा रही हैं। स्थानीय खुफिया विभाग को भनक लगी है कि बिहार, बलिया, मऊ, आजमगढ़ से जिला सटा होने के कारण यहां के लोग भी उनके संपर्क में हो सकते हैं। नक्सली संगठनों पर रोक लगने के बाद गोपनीय तरीके से एक विचारधारा का प्रचार-प्रसार करने के लिए विभिन्न तरह के संगठन खड़े किए जा रहे हैं। जिनके तार माओवादियों से जुड़े होने की आशंका है। इसी को लेकर स्थानीय खुफिया विभाग और पुलिस भी सतर्क है।

गांव के माथे पर नक्सल का दाग, विकास की विशेष योजना भी नहीं उतरी धरातल पर
देवरिया। सपा शासनकाल में जिले के 24 गांवों को नक्सल प्रभावित घोषित कर विकास की विशेष कार्ययोजना बनाई गई थी। इन गांवों में सरकारी योजनाओं को त्वरित गति से लागू कर सभी सुविधाओं को उपलब्ध कराने का खाका तैयार किया गया था। पर हालत यह है कि ये गांव अब भी पिछड़ेपन के शिकार हैं। इतना जरूर है कि गांवों में नक्सली गतिविधियां पहले होती थीं, लेकिन इस समय इसके प्रमाण नहीं मिल पा रहे हैं।
नक्सल प्रभावित गांव के रूप में चिह्नित राजपुर बिहार बार्डर पर स्थित है। राजपुर निवासी जटाशंकर सिंह ने बताया कि बीस साल पहले नक्सली सक्रिय थे। पर स्थिति अब सामान्य है। विकास के लिए नक्सल प्रभावित के नाम पर धन तो मिला पर गांव का विकास नहीं हुआ। सड़कें जर्जर हैं। हीरालाल यादव, चंद्रबली ने बताया कि गांव में कोई भी विकास कार्य नहीं हुआ है। ऊपर से नक्सल प्रभावित गांव होने का कलंक भी लगा हुआ है। एक बार यह दावा किया गया था कि विशेष तरीके से नक्सल प्रभावित गांवों का विकास होगा, लेकिन वह धरातल पर नहीं उतरा। कटहेरिया के हरिकिशुन कुशवाहा ने बताया कि गांव की सड़कें उसी दशा में हैं जैसे बीस साल पहले थीं। नक्सली प्रभावित गांवों के विकास का दावा तो किया गया, लेकिन वह खोखला साबित हुआ। गतिविधियां अब नहीं हैं।

बलुअन खास गांव निवासी अच्छेलाल ने बताया कि गांव में जाने के लिए न सड़क अच्छी है और न ही सुरक्षा का कोई इंतजाम है। पुलिस गश्त भी नहीं करती है। बाहर से कौन आ रहा है और कौन जा रहा है इसकी भी जानकारी नहीं ली जाती है। इसी गांव के सुरेश राजभर और नथुनी शर्मा ने बताया कि कुछ नक्सली बिहार की तरफ से अभी भी यदाकदा लोगों के घर आते-जाते हैं। पर यहां के लोगों से कोई मतलब नहीं है। भोपतपुरा के विवेक कुमार मिश्रा ने बताया कि गांव में पहले नक्सली आते थे। बैकवर्ड और फारर्वड जाति के नाम पर लोगों को उकसाते थे, लेकिन अब ऐसी बात नहीं है। सभी लोग अपने कामकाज में लगे हैं। सरौरा गांव के छोटेलाल, रविंद्र पांडेय ने बताया कि गांव में जिस तरह का विकास होना चाहिए, उस तरह का हुआ नहीं। आज भी विकास से काफी पिछड़ा हुआ इलाका है। बरैठा के प्रधान राजू ठाकुर ने बताया कि नक्सल प्रभावित गांव के लिए योजनाएं तो बनाई गई, लेकिन सब कागजी ही रह गया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *