सफल समाचार
सुनीता राय
पीड़ित परिवार के लोगों के दिलो-दिमाग पर गहरा जख्म देती हैं, जो लंबे समय तक नहीं भरता। प्रतिष्ठा को जो चोट पहुंचती है वो अलग।
पिछले दिनों ससुराल में या ससुराल से लौट कर हत्या-आत्महत्या के कई मामले सामने आए। इन मामलों की तह में जाने से न सिर्फ पुलिस परेशान हुई बल्कि समाज और सोच में आई इस विसंगति से समाजशास्त्री और मनोचिकित्सक भी चिंतित हैं। इनकी मानें तो मीडिया में आईं शक-ओ-शुब्हा से से जन्मीं ऐसी खबरें भले ही लोगों को सामान्य लगे लेकिन इनके दूरगामी परिणाम गंभीर होंगे।
ऐसी घटनाएं कानून-व्यवस्था बनाए रखने में पुलिस के दावे को पलीता तो लगाती हैं, पीड़ित परिवार के लोगों के दिलो-दिमाग पर गहरा जख्म देती हैं, जो लंबे समय तक नहीं भरता। प्रतिष्ठा को जो चोट पहुंचती है वो अलग। मनोचिकित्सक भी मानते हैं कि लोग शक की वजह से ऐसे कदम उठा रहे हैं। समाजशास्त्री इसे एकल परिवार का परिणाम बता रहे हैं।
समाज और सोच में बदलाव के ये मामले डराते ही नहीं, चिंतित भी करते हैं
विशेषज्ञों ने क्या कहा
वरिष्ठ मानसिक रोग विशेषज्ञ तपस कुमार ने कहा कि किसी भी बात को गहराई से सोचने पर आदमी अवसाद में जा सकता है। लंबे समय तक इस अवस्था में रहने पर वह मनोरोगी होकर कोई भी कदम उठा सकता है। समय से ऐसे मरीज का इलाज किया जाए तो वह पूरी तरह से ठीक हो जाता है। काउंसिलिंग और दवाओं की मदद से उनकी जिंदगी बचाई जा सकती हैं। अगर इलाज में देरी करते हैं तो मरीज इतने गहरे अवसाद में चला जाता है कि खुदकुशी या फिर हत्या जैसी वारदात को अंजाम दे देता है।
गोरखपुर यूनिवर्सिटी के समाजशास्त्री दीपेंद्र मोहन ने कहा कि आमतौर पर ऐसा तब होता है, जब पति-पत्नी एक-दूसरे को वक्त नहीं दे पाते। दोनों एक-दूसरे से अच्छा व्यवहार नहीं करते। ऐसे में बीच में अगर कोई तीसरा मिल गया तो जुड़ाव हो जाता है। इन परिस्थितियों में लोकलाज सहित सभी बंदिशें टूट जाती हैं। बात आगे बढ़ने पर इसके खतरनाक परिणाम सामने आते हैं। एकल परिवार भी इसकी बड़ी वजह है। कई बार छोटी बात पर कोई समझाने वाला नहीं मिलता है और फिर बात बिगड़ जाती है।