पढ़ाई के लिए नहीं थीं किताबें तो गरीब बच्चों के लिए शुरू किया अभियान 

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सफल समाचार अजीत सिंह 

पढ़ाई के लिए नहीं थीं किताबें तो गरीब बच्चों के लिए शुरू किया अभियान 

कापी-किताब के साथ अजीत बांट रहे हैं ज्ञान और संस्कार

सोनभद्र। “मैंने महसूस किया कि गरीब बच्चों के लिए भी कुछ करना है। एक कलमकार होने के नाते यह परम दायित्व बनता है कि समाज में व्याप्त दुर्व्यवस्थाएं दूर करने के साथ ही साथ एक नजर ऐसे लोगों पर भी डाली जाए जो बुनियादी सुविधाएं, शिक्षा से वंचित होते आ रहे हैं। बस फिर क्या था अपने खर्चे में से कुछ कटौती कर इनके लिए भी काफी-किताब, पेन-पेंसिल की व्यवस्था कर वितरण किया करता हूं। इससे आत्मविश्वास बढ़ने के साथ ही का फी सकून भी मिलता है।” यह कहना है अजीत कुमार सिंह का जो गरीब दलित आदिवासी वनवासी व वंचित समुदायों के बच्चों को निरंतर काफी-किताब, पेन-पेंसिल वितरण करते हुए उन्हें शिक्षा के महत्व को बताने व खेल कूद के साथ पढ़ाई पर ज़ोर देने की प्रेरणा दे रहे हैं। पेशे से पत्रकार अजीत कुमार सिंह ओबरा कस्बे के निवासी हैं। वह पिछले कई महीनों से गरीब बस्तियों में रहने वाले परिवार के बच्चों को काफी-किताब, पेन-पेंसिल के साथ ही साथ टाफी-बिस्कुट इत्यादि वितरित कर उनके दुःख-सुख में भी सहभागी होते आ रहे हैं। पत्रकार अजीत कुमार सिंह बताते हैं कि आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चों के पास किताबें और दूसरे सामान खरीदने के लिए रुपए नहीं होते हैं। इस स्थिति ने उन्हें काफी परेशानियों के साथ उपेक्षित भी होना पड़ जाता है। ऐसी पीड़ा को करीब से देखा है जो पूरे अन्तर्मन को झकझोर कर दिया था। बस फिर तो उन्होंने ऐसे बच्चों के लिए कापी-किताबें उपलब्ध कराने की शुरुआत की। वह बताते हैं कि एक बार रिपोर्टिंग के दौरान उनकी नजर ओबरा के झोपड़पट्टी में रहने वाले बच्चों पर पड़ी तो यहां उन्होंने देखा कि गरीबी की वजह से मासूम स्कूल नहीं जा पाते हैं। यह देखकर काफी दुःख हुआ। फिर उन्होंने ठान लिया कि वह इन बच्चों के जीवन में शिक्षा का दिया जलाएंगे। बस यह कारवां चल पड़ा और आज भी जो खर्च से बन पाता है उसी से इनकी मदद करता आया हूं ताकि यह बच्चे शिक्षा से वंचित न होने पाएं। अजीत कुमार सिंह के साथी शुभम कुशवाहा, श्याम नारायण सिंह गौड़ इस पहल को अन्य लोगों तक भी पहुंचाना चा रहे हैं, ताकि वह अन्य गरीब बच्चों की पढ़ाई में सहयोग करने आगे आएं। मंगलवार को उनके द्वारा घर-घर जाकर 200 सौ किताबें, गरीब बच्चे को आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को दिया गया। वह कहते हैं अच्छे पत्रकार सिर्फ अपनी ड्यूटी ही नहीं करते, बल्कि अभिभावक, गुरु और सामाजिक सरोकार से भी जुड़कर समाज का हित साधते हैं। अजीत ने बताया कि जब उन्होंने बच्चों से बात की तो पता चला उनकी बस्ती के अधिकतर बच्चे स्कूल नहीं जाते। उन्होंने बच्चों के माता-पिता से बात की तो पता चला कि कई बच्चों के आधार कार्ड व अन्य दस्तावेज न होने से उनका स्कूल में दाखिला नहीं हो पा रहा है। पढ़ाई के लिए नहीं थीं किताबें तो गरीब बच्चों के लिए शुरू कर दिया घर घर जाकर अभियान और आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को किताब पेंसिल रबर दे कर शिक्षा के महत्व को समझा रहे हैं।

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