विश्वजीत राय सफल समाचार कुशीनगर मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग दे केवीके बढायेगा किसानों की आय कुशीनगर।किसानों की आय बढाने के लिए किसानों को मधुमक्खी पालन के लिए सब्जी अनुसंधान संस्थान ट्रेनिंग देगा। कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से मिलने वाले प्रशिक्षण में किसानों को जानकारी देने के साथ अनुदान आदि के बारे में बताया जायेगा। तमकुहीराज तहसील क्षेत्र के कृषि विज्ञान केन्द्र सरगटिया करनपट्टी में क्षेत्र के किसानों की आवश्यकता को देखते हुए भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान वाराणसी के निदेशक डा. टीके बेहरा के मार्गदर्शन में सब्जी बीजोत्पादन के साथ पिछले माह से मौनपालन का कार्य प्रारंम्भ किया गया है। वैज्ञानिकों के देखरेख़ में मधुमक्खी पालन अर्थात मौन पालन आरंभ किया गया है। वैज्ञानिकों ने इसकी आरंभ 10 डिब्बे से किया है। कीट वैज्ञानिक डॉ. जेपी गुप्ता ने बताया कि एक डिब्बे में 40 से 50 हजार मधुमक्खी होती हैं। एक डिब्बे से 10 से 15 किलो तक शहद प्राप्त कर सकते हैं। किसान 5 डिब्बे के कालोनी से भी मौन पालन का शुरुआत कर सकता है। इसकी लागत 20 हजार आयेगी। किसान पहले वर्ष में ही वह अपनी लागत निकाल लेगा। उसके बाद किसान हर वर्ष बिना लागत के दोगुना लाभ कमा सकता है और कालोनी को भी बढ़ा सकता है। एक वर्ष में दो से तीन बार शहद निकला जा सकता है। शहद एवं मोम के अतिरिक्त अन्य पदार्थ, जैसे गोंद (प्रोपोलिस, रायल जेली, डंक-विष) भी प्राप्त होते हैं। मधुमक्खियों से फूलों में परपरागन होने के कारण फसलों की उपज में लगभग एक चौथाई अतिरिक्त बढ़ोतरी होती है। मौन पालन ने कम लागत वाला कुटीर उद्योग का दर्जा ले लिया है। ग्रामीण, भूमिहीन, बेरोजगार व किसानों के आमदनी बढाने का एक सुलभ साधन बन गया है। केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रभारी डा. विकास सिंह ने बताया कि मौन पालन एक उद्यम के रूप में अपनाकर किसान प्रत्यक्ष रूप से मौन कालोनी, शहद और अन्य उत्पादों का बिक्री करके लाभ अर्जित कर सकते हैं और अप्रत्यक्ष रूप से फलों, फसलों एवं सब्जियों की पैदावार में वृद्धि करके अतिरिक्त लाभ कमा सकते हैं। कीट वैज्ञानिक डा. रमेश केबी एवं मौनपालन वैज्ञानिक एवं तकनीकी अधिकारी जेपी गुप्ता से संपर्क करके किसान वैज्ञानिक विधि से मौनपालन की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। मौनपालन प्रारंभ करने हेतु वर्षा ऋतु के बाद का समय अक्तूबर-नवम्बर या जनवरी-फरवरी माह उपयुक्त रहता है। मधुमक्खियों द्वारा होने वाले से परागण से सरसो, धनिया, मक्का, अरहर, सूरजमुखी, प्याज, गोभी, मूली, गाजर और फलों जैसे लीची, आम, अमरूद, केला, सेव, नाापाती और कद्दू वर्गीय सब्जियों आदि के उपज में 10 से 20 प्रतिशत का वृद्धि प्राप्त किया जा सकता है। कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रभारी डा. अशोक राय ने बताया कि किसान इसके माध्यम से लाभ कमा सकते हैं। मौन पालन किसान अपने बगीचे में भी कर सकता है। मौन पालन में सरकार किसानों को अनुदान दे रही है।

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मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग दे केवीके बढायेगा किसानों की आय

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मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग दे केवीके बढायेगा किसानों की आय

कुशीनगर।किसानों की आय बढाने के लिए किसानों को मधुमक्खी पालन के लिए सब्जी अनुसंधान संस्थान ट्रेनिंग देगा। कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से मिलने वाले प्रशिक्षण में किसानों को जानकारी देने के साथ अनुदान आदि के बारे में बताया जायेगा।
तमकुहीराज तहसील क्षेत्र के कृषि विज्ञान केन्द्र सरगटिया करनपट्टी में क्षेत्र के किसानों की आवश्यकता को देखते हुए भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान वाराणसी के निदेशक डा. टीके बेहरा के मार्गदर्शन में सब्जी बीजोत्पादन के साथ पिछले माह से मौनपालन का कार्य प्रारंम्भ किया गया है। वैज्ञानिकों के देखरेख़ में मधुमक्खी पालन अर्थात मौन पालन आरंभ किया गया है। वैज्ञानिकों ने इसकी आरंभ 10 डिब्बे से किया है। कीट वैज्ञानिक डॉ. जेपी गुप्ता ने बताया कि एक डिब्बे में 40 से 50 हजार मधुमक्खी होती हैं। एक डिब्बे से 10 से 15 किलो तक शहद प्राप्त कर सकते हैं। किसान 5 डिब्बे के कालोनी से भी मौन पालन का शुरुआत कर सकता है। इसकी लागत 20 हजार आयेगी। किसान पहले वर्ष में ही वह अपनी लागत निकाल लेगा। उसके बाद किसान हर वर्ष बिना लागत के दोगुना लाभ कमा सकता है और कालोनी को भी बढ़ा सकता है। एक वर्ष में दो से तीन बार शहद निकला जा सकता है। शहद एवं मोम के अतिरिक्त अन्य पदार्थ, जैसे गोंद (प्रोपोलिस, रायल जेली, डंक-विष) भी प्राप्त होते हैं। मधुमक्खियों से फूलों में परपरागन होने के कारण फसलों की उपज में लगभग एक चौथाई अतिरिक्त बढ़ोतरी होती है।

मौन पालन ने कम लागत वाला कुटीर उद्योग का दर्जा ले लिया है। ग्रामीण, भूमिहीन, बेरोजगार व किसानों के आमदनी बढाने का एक सुलभ साधन बन गया है। केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक

एवं प्रभारी डा. विकास सिंह ने बताया कि मौन पालन एक उद्यम के रूप में अपनाकर किसान प्रत्यक्ष रूप से मौन कालोनी, शहद और अन्य उत्पादों का बिक्री करके लाभ अर्जित कर सकते हैं और अप्रत्यक्ष रूप से फलों, फसलों एवं सब्जियों की पैदावार में वृद्धि करके अतिरिक्त लाभ कमा सकते हैं। कीट वैज्ञानिक डा. रमेश केबी एवं मौनपालन वैज्ञानिक एवं तकनीकी अधिकारी जेपी गुप्ता से संपर्क करके किसान वैज्ञानिक विधि से मौनपालन की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। मौनपालन प्रारंभ करने हेतु वर्षा ऋतु के बाद का समय अक्तूबर-नवम्बर या जनवरी-फरवरी माह उपयुक्त रहता है। मधुमक्खियों द्वारा होने वाले से परागण से सरसो, धनिया, मक्का, अरहर, सूरजमुखी, प्याज, गोभी, मूली, गाजर और फलों जैसे लीची, आम, अमरूद, केला, सेव, नाापाती और कद्दू वर्गीय सब्जियों आदि के उपज में 10 से 20 प्रतिशत का वृद्धि प्राप्त किया जा सकता है। कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रभारी डा. अशोक राय ने बताया कि किसान इसके माध्यम से लाभ कमा सकते हैं। मौन पालन किसान अपने बगीचे में भी कर सकता है। मौन पालन में सरकार किसानों को अनुदान दे रही है।

कुशीनगर।किसानों की आय बढाने के लिए किसानों को मधुमक्खी पालन के लिए सब्जी अनुसंधान संस्थान ट्रेनिंग देगा। कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से मिलने वाले प्रशिक्षण में किसानों को जानकारी देने के साथ अनुदान आदि के बारे में बताया जायेगा।

तमकुहीराज तहसील क्षेत्र के कृषि विज्ञान केन्द्र सरगटिया करनपट्टी में क्षेत्र के किसानों की आवश्यकता को देखते हुए भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान वाराणसी के निदेशक डा. टीके बेहरा के मार्गदर्शन में सब्जी बीजोत्पादन के साथ पिछले माह से मौनपालन का कार्य प्रारंम्भ किया गया है। वैज्ञानिकों के देखरेख़ में मधुमक्खी पालन अर्थात मौन पालन आरंभ किया गया है। वैज्ञानिकों ने इसकी आरंभ 10 डिब्बे से किया है। कीट वैज्ञानिक डॉ. जेपी गुप्ता ने बताया कि एक डिब्बे में 40 से 50 हजार मधुमक्खी होती हैं। एक डिब्बे से 10 से 15 किलो तक शहद प्राप्त कर सकते हैं। किसान 5 डिब्बे के कालोनी से भी मौन पालन का शुरुआत कर सकता है। इसकी लागत 20 हजार आयेगी। किसान पहले वर्ष में ही वह अपनी लागत निकाल लेगा। उसके बाद किसान हर वर्ष बिना लागत के दोगुना लाभ कमा सकता है और कालोनी को भी बढ़ा सकता है। एक वर्ष में दो से तीन बार शहद निकला जा सकता है। शहद एवं मोम के अतिरिक्त अन्य पदार्थ, जैसे गोंद (प्रोपोलिस, रायल जेली, डंक-विष) भी प्राप्त होते हैं। मधुमक्खियों से फूलों में परपरागन होने के कारण फसलों की उपज में लगभग एक चौथाई अतिरिक्त बढ़ोतरी होती है।

 

मौन पालन ने कम लागत वाला कुटीर उद्योग का दर्जा ले लिया है। ग्रामीण, भूमिहीन, बेरोजगार व किसानों के आमदनी बढाने का एक सुलभ साधन बन गया है। केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक 

 

एवं प्रभारी डा. विकास सिंह ने बताया कि मौन पालन एक उद्यम के रूप में अपनाकर किसान प्रत्यक्ष रूप से मौन कालोनी, शहद और अन्य उत्पादों का बिक्री करके लाभ अर्जित कर सकते हैं और अप्रत्यक्ष रूप से फलों, फसलों एवं सब्जियों की पैदावार में वृद्धि करके अतिरिक्त लाभ कमा सकते हैं। कीट वैज्ञानिक डा. रमेश केबी एवं मौनपालन वैज्ञानिक एवं तकनीकी अधिकारी जेपी गुप्ता से संपर्क करके किसान वैज्ञानिक विधि से मौनपालन की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। मौनपालन प्रारंभ करने हेतु वर्षा ऋतु के बाद का समय अक्तूबर-नवम्बर या जनवरी-फरवरी माह उपयुक्त रहता है। मधुमक्खियों द्वारा होने वाले से परागण से सरसो, धनिया, मक्का, अरहर, सूरजमुखी, प्याज, गोभी, मूली, गाजर और फलों जैसे लीची, आम, अमरूद, केला, सेव, नाापाती और कद्दू वर्गीय सब्जियों आदि के उपज में 10 से 20 प्रतिशत का वृद्धि प्राप्त किया जा सकता है। कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रभारी डा. अशोक राय ने बताया कि किसान इसके माध्यम से लाभ कमा सकते हैं। मौन पालन किसान अपने बगीचे में भी कर सकता है। मौन पालन में सरकार किसानों को अनुदान दे रही है।

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