आज भी पूजी जाती है महारानी विक्टोरिया

उत्तर प्रदेश सोनभद्र

सफल समाचार गणेश कुमार 

आज भी पूजी जाती है महारानी विक्टोरिया

-आजादी के बाद भी परंपरा जारीदीपक कुमार केसरवानी

-चांदी के सिक्कों को मां लक्ष्मी का प्रतीक मानकर पूजते है।

-घरों में महारानी विक्टोरिया, एडवर्ड सप्तम, जॉर्ज पंचम के चित्र वाले सिक्के संग्रहित है।

-दीपावली के अवसर पर इन सिक्कों की होती है पूजा।

-ब्रिटिश काल में जारी चांदी के सिक्के आज भी शुद्ध माने जाते हैं।

सोनभद्र।भारत के बाजारों में अंग्रेजी सिक्का कायम है।आज भी उत्तर प्रदेश के अंतिम छोर पर अवस्थित सोनभद्र जनपद सहित देश के प्रत्येक भागों में धनतेरस के शुभ अवसर पर करोड़ों रुपए के महारानी विक्टोरिया के राज्यकाल में जारी चांदी के सिक्के की लोग जमकर खरीदते है।आचार्य पंडित संतोष धर द्विवेदी के अनुसार-” चांदी के सिक्कों को धन की देवी मां लक्ष्मी स्वरूप मानकर धनतेरस के दिन इसे क्रय किया जाता है। दीपावली के दिन पूजन- अर्चन कर सुख- समृद्धि की मंगल कामना की जाती है।साहित्यकार प्रतिभा देवी के अनुसार-“हमारी भारतीय सनातन संस्कृति में धन की देवी के रूप में मां लक्ष्मी की मान्यता है। पंच दिवसीय पर्व का शुभारंभ आयुर्वेद के जनक धनवंतरी के अवतरण दिवस धनतेरस से आरंभ हो जाता है। इसी दिन चांदी के सिक्के, पीतल के बर्तन आदि की खरीदारी शुरू हो जाती है। अमावस्या के दिन पड़ने वाले प्रकाश पर्व दीपावली के अवसर पर पूजन- अर्चन में चांदी के सिक्के को मां लक्ष्मी का स्वरूप मानकर पूजा जाता है।

  फोटो -दीपक केसरवानी

वाणिज्य की प्राध्यापक कुमारी तृप्ति केसरवानी का मानना है कि-“बैंको के लाकरो, व्यवसायियों के तिजोरियों, दुकानदारों के गल्लो में आज भी ब्रिटेन के शासक महारानी विक्टोरिया, एडवर्ड सप्तम, जॉर्ज पंचम के चित्र वाले सिक्के संग्रहित है।ज्वेलर्स शॉप के व्यापारी जय कुमार केसरी के अनुसार-“आज भी ब्रिटिश काल में जारी सिक्के शुद्ध और मुद्रा प्रणाली के अनुरूप, कम मिलावट वाले पाए जाते हैं।बुजुर्ग गहना व्यवसायी रामनारायण सर्राफ के अनुसार-“पिछले साल बाजार में जॉर्ज पंचम के चित्र वाले सिक्को की मांग थी, लेकिन इस वर्ष महारानी विक्टोरिया के चित्र वाले सिक्को की मांग बढ़ी है और ग्राहकों ने इसे सबसे ज्यादा खरीदा है। साथ ही साथ गणेश लक्ष्मी जी के चित्र वाले सिक्के भी खूब बिके हैं।इतिहासकार दीपक कुमार केसरवानी के अनुसार-“हमारी भारतीय संस्कृति में देवी- देवताओं के स्वरूप को मान्यता प्रदान किया गया है। हम भारतीय जब चांदी के सिक्के दुकानों से क्रय करते हैं तो हमारा उद्देश्य होता है कि जितना धन खर्च कर रहे हैं उसका पर्याप्त लाभ हमें मिले इसके साथ- साथ धार्मिक एवं संस्कृति मान्यताएं पूरी हो। सिक्कों पर ढाले गए चित्रों से कोई मतलब नहीं होता।आज भी हमारी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान धनतेरस के दिन चांदी चमकते, शुद्ध सिक्कों की खरीदारी से होती है, जो हमारे घरों मंदिरों तिजोरियों मां लक्ष्मी के स्वरूप में संग्रहित एवं पूजी जाती है।

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