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जितना बजट उतना ही प्रदेश पर कर्ज – आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट
• कुंभ से अर्जित 3 लाख करोड़ की सीएम घोषणा का जिक्र तक नहीं
• रोजगार विहीन, कृषि, एमएसएमई, शिक्षा-स्वास्थ्य पर बजट दर कटौती
उत्तर प्रदेश के बजट 2025-26 पर आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट की प्रतिक्रिया
2025-26 का प्रस्तावित बजट 808736 करोड़ रुपए का है। जो पिछले बजट 736437 करोड़ रूपए से 9.8 प्रतिशत ज्यादा है। यह सामान्य बढ़ोतरी दर्शाता है। अगर मुद्रास्फीति के सापेक्ष देखें तो अर्थव्यवस्था स्थिर है। यही हाल प्रदेश के सकल घरेलू उत्पाद का है। इस बार सकल घरेलू उत्पाद 27.51 लाख करोड़ रुपए का अनुमानित है जोकि वित्तीय वर्ष 2023-24 में 25.48 लाख करोड़ था। एक वर्ष में अर्थव्यवस्था में करीब 2 लाख करोड़ रुपए की वृद्धि है। दरअसल 2027-28 तक प्रदेश के वन ट्रिलियन डॉलर यानी 87 लाख करोड़ रुपए की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य हासिल करने का चलाया जा रहा प्रोपेगैंडा का वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है। प्रदेश में क़र्ज़ भी बढ़कर रिकॉर्ड 8.87 लाख करोड़ पहुंच गया है। यानी जितना बजट है उतना ही कर्ज प्रदेश पर हो गया है। इस बजट में कुंभ मेले के जरिए 3 लाख करोड़ रुपए प्रदेश की अर्थव्यवस्था में जुड़ने की मुख्यमंत्री की घोषणा का कहीं जिक्र तक नहीं है।
बजट के आम जनता के लिए जरूरी खर्च के प्रमुख मदों में कटौती ही दिखती है। आमतौर इनके बजट शेयर को कम ही किया गया है या आंशिक बढोत्तरी हुई है। शिक्षा पर 2024-25 में बजट शेयर 12.5 प्रतिशत था जो इस बार घटकर 11.7 प्रतिशत है। स्वास्थ्य पर 2024-25 में 4.64 प्रतिशत था जो इस बार 4.46 प्रतिशत है। समाज कल्याण पर 4.37 प्रतिशत था जो 4.41 प्रतिशत है। कृषि एवं सहायक गतिविधियों पर 2.45 प्रतिशत था जो 2.41 प्रतिशत है। ग्राम्य विकास का 3.29 प्रतिशत से 3.72 प्रतिशत किया गया है।सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण 1.71 से 1.79 प्रतिशत हुआ है। बजट खर्च का मुख्य हिस्सा वेतन, पेंशन व ब्याज अदायगी में 57.30 फीसद और अवस्थापना विकास में 22 फीसद है। अवस्थापना विकास में भी हाईवे आदि के निर्माण पर खर्च ज्यादा किया गया है।कृषि, सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योग (एमएसएमई ) और कौशल विकास मिशन जोकि प्रदेश के विकास व रोजगार सृजन के लिए बेहद जरूरी है सरकार ने उपेक्षा की है। प्रदेश में 96 लाख लघु व मध्यम उद्योग (एमएसएमई ) ईकाईयां बताई गई हैं। इन ईकाइयों में 1.65 करोड़ लोग लगे हुए हैं।प्रदेश में कृषि के बाद सर्वाधिक रोजगार देने वाला यह सेक्टर संकटग्रस्त है लेकिन इसके पुनर्जीवन के लिए किसी तरह का बजटीय प्रावधान की घोषणा नहीं हुई।उत्तर प्रदेश कौशल विकास मिशन के 6 वर्षों में 15.25 लाख युवाओं को प्रशिक्षण दिया गया है और इसमें से 5.71 लाख युवाओं को रोजगार/स्वरोजगार से जोड़ने की बात तो बताई गई है। साथ ही बजट में युवाओं को नवाचार से जोड़ने के लिए इनोवेशन फंड की स्थापना का जिक्र किया गया है। लेकिन इनके लिए कोई बजटीय प्रावधान नहीं है। मुख्यमंत्री युवा उद्यमी विकास योजना, जिसमें 5 लाख रुपए लोन युवाओं को देना है, उसमें महज 1000 करोड़ रुपए दिए गए हैं। प्रदेश राज्य आजीविका मिशन में 96 लाख और 39 हजार बीसी सखी के आंकड़े बजट भाषण में हैं लेकिन किसी तरह के बजट आवंटन का जिक्र नहीं है।प्रदेश में तकनीकी कौशल, रोजगार सृजन और विकास की पर्याप्त संभावनाएं हैं। लेकिन इस अनरूप आर्थिक दिशा न होने से यह गतिरोध का शिकार है। प्रदेश में पूंजी का पलायन जारी है। 2023 में बैंक में क्रेडिट डिपोजिट अनुपात 44.90 था यानी 55 प्रतिशत बैंको में जमा यहां के लोगों की पूंजी दूसरे प्रदेशों में जा रही है। अभी भी इसमें किसी बदलाव की उम्मीद इस बजट से नहीं दिखती है। यह प्रावधान किया जा सकता है कि आजीविका मिशन से जुड़ी महिला स्वयं सहायता समूह और स्टार्टअप के लिए नौजवानों को बैंकों में जमा इस पूंजी को अनुदान के रूप में दिया जाए। का उपयोग किया जा सकता है। तकनीकी शिक्षा और कौशल विकास प्रशिक्षण की उपेक्षा का आलम यह है कि 2023 के आंकड़े के अनुसार तकनीकी शिक्षा, शोध और प्रशिक्षण में महज 1597 करोड़ रुपए खर्च किया गया जोकि प्रदेश के कुल शिक्षा बजट का महज 2 प्रतिशत है। इस उपेक्षा की वजह से पालीटेक्निक कालेजों व आईटीआई संस्थाओं को अपग्रेड जोकि आज के दौर के लिए आवश्यक है, नहीं किया गया। जो प्रशिक्षण कार्यक्रम हैं उनमें भी संसाधनों की भारी कमी है।बजट में अराजपत्रित श्रेणी में 92 हजार लंबित भर्तियों के प्रक्रियाधीन का जिक्र किया गया है। लेकिन सरकार विभागों में 6 लाख से ज्यादा रिक्त पदों को भरने और आंगनबाड़ी, आशा समेत मानदेय व संविदा कर्मियों के सम्मानजनक वेतनमान के संबंध में किसी तरह की घोषणा नहीं है।अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति के सब प्लान में आवंटित बजट का खर्च न होना इस बार भी दिखता है। पिछली बार एसटी सब प्लान में 3628.58 लाख था जिसमें से 1670 लाख खर्च हुआ। इसी प्रकार एससी, एसटी और अन्य पिछड़े वर्ग के कल्याण के लिए आवंटित 10305 करोड़ में 9424 करोड़ ही खर्च हुआ है। आदिवासी क्षेत्र सोनभद्र में उठ रही आदिवासी विश्वविद्यालय, आदिवासी लड़कियों के लिए आवासीय डिग्री कॉलेज बनाने की लोकप्रिय मांग को सुना नहीं गया।