हम जीवन को कैसे बेहतर जीएं ये भी एक तरह की क्रिएटिविटी है

उत्तर प्रदेश कुशीनगर

सुनीता राय

सफल समाचार गोरखपुर 

हम जीवन को कैसे बेहतर जीएं ये भी एक तरह की क्रिएटिविटी है-

 

“धर्म और अध्यात्म पर अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव” प्रथम संस्करण (IFFRS 2025)

गोरखपुर, भारत

फिल्मोत्सव के दूसरे दिन फिल्म स्क्रीनिंग के अलावा चली कश्मीर फाईल फिल्म फेम विवेक रंजन अग्निहोत्री की मास्टर क्लास

 

 

फिल्मों का कितना गहरा असर होता है ये तो हम देख ही चुके हैं, हाल फिल्हाल आई फिल्म छावा में, हालांकि कश्मीर फाईल का भी कैसा असर रहा है इस बात से भी हम भली भांती परिचित हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए ही हो रहा है “धर्म और अध्यात्म पर अंतर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सव” ताकि युवाओं में धर्म, आस्था, साधना, अध्यात्म में भी थोड़ा बहुत रुचि जागे। फिल्मोत्सव के दूसरे दिन की शुरुआत विवेक रंजन अग्निहोत्री की मास्टर क्लास से हुई। लगभग तीन सौ छात्र छात्राओं ने इस मास्टर क्लास में अपनी उपस्थिति दर्ज की। लगभग दो घंटे चली ये क्लास कोई आम क्लास की तरह न होकर बड़ी ही रोचक क्लास रही। जिसमें विवेक कुछ पैंतालीस मिनट तक लगातार कई विषयों पर बोले जिसमें धर्म विशेष रहा चूंकि ये फिल्मोत्सव का थीम ही है। इसे लेक्चर का रूप न देकर चर्चा का रूप दिया और इसकी शुरुआत कुछ यूं हुई कि विवेक ने मास्टर क्लास में आए जिज्ञासुओं से ही पूछा कि वे क्या जानना समझना चाहते हैं क्योंकि इतने कम समय में कोई फिल्म मेकिंग को क्या तो समझ पाएगा, चूंकि ये मास्टर क्लास खास फिल्म मेकिंग पर ही रखी गई थी। क्षण भर के लिए दर्शक दीर्घा में एक कन्फ्यूज़न का सा माहौल बना जिसे विवेक ने तुरंत ही तोड़ा और कहा कि पहले मैं कुछ बातें आपके सामने रखता हूं फिर हम सवाल जवाब का सत्र रख लेंगे। विवेक ने बताया कि कहानी कहना कैसे शुरु हुआ होगा। क्योंकि जीवन एक कहानी है और स्वयं जो उस कहानी को बुनता है वही उसका नायक या नायिका होता है। या कोई कहानी लिखता भी है तो लगभग उसी की भाषा और भाव वह उस कहानी में पिरोता है। अमेरिका की एक रिसर्च का जिक्र करते हुए विवेक ने बताया कि लगभग हजार बच्चों पर ये रिसर्च किया गया और देखा कि उसमें 98 प्रतिशत बच्चे सुपर टैलेंटेड, सुपर इंटेलीजेंट मिले। ये रिसर्च पांच साल के बच्चों पर हुआ था। फिर उन्हीं हज़ार बच्चों पर वही रिसर्च दोहराया गया कोई पांच साल बाद, यानि कि जब वही बच्चे दस साल की उम्र के हुए थे। तब टैलेंटेड बच्चों का प्रतिशत सीधा गिरके 33 प्रतिशत हुआ और जब वे ही बच्चे 20 साल की उम्र में पहुंचे तो मात्र दो प्रतिशत बच्चे ही सुपर टैलेंटेड मिले। कहने का मतलब है कि टैलेंट सभी बच्चों में होता है लेकिन वह कितना नर्चर होता है ये देखने वाली बात है।

विवेक के अनुसार हिन्दु फिलोसोफी और हिन्दु धर्म दो अलग बाते हैं। धर्म बुरा नहीं होता पर उसमें फैला अंधविश्वास बेशक बहुत बुरा हो सकता है। वे खुद को बड़ा धार्मिक मानते हैं इसलिए नहीं कि खूब पूजा पाठ करते हैं बल्कि इसलिए कि वे सनातनी परम्पराओं मानते हैं। उनके हिसाब से, उनका विशेषतः ऐसा कहना है कि मैं ऐसा मानता हूं कि धर्म ही कर्म है, सनातन तो जीवन का ज्ञान विज्ञान है। क्योंकि हम सीकर हैं, यानि कि ज्ञान की चाह रखने वाले, हमेशा जिज्ञासाओं में जीने वाले। जिस दिन हमें लगेगा कि हमने सबकुछ जान लिया तो फिर बचा क्या? उनके अनुसार इश्वर ने मनुष्य को दो चीज़े बड़ी महत्त्वपूर्ण दी हैं, एक जिंदा रहने के लिए सांसे और दूसरा क्रिएटिविटी। क्रिएटिविटी और कला को मिक्स न किया जाए। मतलब कि नृत्य, संगीत या कुछ और ये आर्ट हैं, स्किल हैं पर क्रिएटिव होना बहुत ही अलग होता है। हम जीवन को कैसे बेहतर जीएं ये भी एक तरह की क्रिएटिविटी है। उपस्थित छात्र-छात्राओं ने उनके साथ खूब सुन्दर बहस की और उन्हें भी गोरखपुर के छात्रों में खूब इंटेलेक्ट नजर आया। 

मास्टर क्लास के बाद पूरे दिन दो शो में छोटी बड़ी लगभग 15 फिल्में दिखाई गईं। इन सभी फिल्मों में सबसे लम्बी डॉक्यूमेंटरी फिल्म थी उत्तर प्रदेश के ही शैलेन्द्र पांडे निर्देशित “मुमुक्षु: मृत्यु की अभिलाषा” – काशी, जहाँ मृत्यु अंत नहीं, बल्कि मोक्ष की शुरुआत मानी जाती है। यह डॉक्यूमेंट्री उन लोगों की कहानियाँ प्रस्तुत करती है, जो मोक्ष की अभिलाषा में अपनी अंतिम सांस लेने काशी आते हैं। उनकी कही कहानियों को सुनते हुए काशी में बने विशेष मुमुक्षु भवन को जानने समझने को मिलता है साथ ही मनुष्य की मरने की अभिलाषा को जान कर अचम्भा तो होता ही है।

यू.पी. गाज़ियाबाद के बॉबी वत्स की ट्रेवलॉग फिल्म ‘खाटू श्याम मंदिर की यात्रा’ हमें महान कथा के बारे में अवगत कराती है। महाभारत के युद्ध में अपना सिर अर्पित करने के बाद भगवान कृष्ण से वरदान पाने वाले वीर योद्धा बर्बरीक की कहानी कहती है। इस वीडियो में सभी प्रासंगिक जानकारी का पता लगाने के लिए एक यात्रा वृत्तांत; यात्रा वृत्तांत के लिए सभी दिशा-निर्देशों के साथ मूल दृश्य और टिप्पणियां मिलती हैं। फिल्म ‘ओऊम’ – हमारे शरीर के पूरे स्वर तन्त्र को जागृत करने वाला एकाक्षर मंत्र है ‘ ॐ’… भारतीय मनीषियों ने इसे ब्रह्म की संज्ञा दी है, आधुनिक विज्ञान भी इसके महत्त्व को परिभाषित करने लगा है। ॐ की महिमा को जाननें को मिला इस लघु वृत्त में। 

फिल्मोत्सव के प्रायोजक उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग की प्रचारक डॉक्यूमेंटरी – ‘नैमिषारण्य’ वहां की यात्रा कराती है, वह पवित्र वन दिखाती है जहाँ प्राचीन ऋषियों ने कालातीत ज्ञान प्रदान किया। भारत के आध्यात्मिक हृदय और इसकी चिरस्थायी विरासत की खोज कराती है। कहा जाता है कि यह हिंदुओं के सभी तीर्थस्थलों में सबसे पवित्र है। इसी के साथ पूरे दिन की स्क्रीनिंग के दौरान डिपार्ट्मेंट की तीन और लघुचित्र दिखाए गए – ‘जैन’, ‘जाव और बठैन गांव की होली’ और ‘महाकुम्भ’

फिल्मोत्सव कमेटी की हेड केतकी कपाड़िया ने बताया है कि दिनांक 22 मार्च को इस फिल्मोत्सव का पुरुस्कार वितरण समारोह रहेगा जिसमें स्टार फिल्म निर्देशक मधुर भंडारकर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहेंगे। उनके अलावा सेलीब्रिटी जूरी से ‘जय गंगा’ फिल्म फेम अभिनेत्री स्मृति मिश्रा, फिल्म अभिनेता अरुण शंकर, मराठी फिल्मों के प्रसिद्ध निर्देशक पुंडलिक धुमाल, फिल्मों के सुप्रसिद्ध अभिनेता राजेश खट्टर व प्रसिद्ध सिनेमैटोग्राफर धर्म गुलाटी मंच साझा करेंगे। दिन की शुरुआत एक और मास्टर क्लास से होगी जो अभिनय पर रहेगी जिसे मुम्बई फिल्म इंडस्ट्री के चर्चित कास्टिंग डिरेक्टर पराग मेहता कंडक्ट करेंगे।

फिल्मोत्सव के निदेशक श्रीवास नायडू ने अंतिम दिन मोरनिंग शो में होने वाली फिल्म स्क्रीनिंग का जिक्र करते हुए बताया कि देश विदेशों से लगभग सवा सौ फिल्में इस फिल्मोत्सव में भाग लेने के लिए आईं थी जिनमें से 38 फिल्मों को प्रदर्शन के लिए चयनित किया गया था फेस्टीवल प्रीसलेक्शन कमेटी ने। आज दिखाई जाने वाली फिल्में हैं – बंगाल की ‘द सबलटन’, ईरान की ‘रेनी बेसिन’, यूपी की ‘बगवाल-द स्टोन वार’, महाराष्ट्र की ‘शाइस्त्या’ व ‘व्हेर डू यू फाईंड गॉड’, गुजरात की ‘भवानी’ और यूपी की ‘मसान होली’ इत्यादि।

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