सुनीता राय
सफल समाचार गोरखपुर
पुरुषों का मानसिक संघर्ष,अनकही कहानी
काउंसलर एवं मनो विशेषज्ञ डॉक्टर श्वेता जॉनसन बताती है कि मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूकता बढ़ने के बावजूद, पुरुषों की मानसिक समस्याओं पर अभी भी खुलकर चर्चा नहीं की जाती। आज के समय में, सामाजिक दबाव, आर्थिक तनाव और बदलते संबंधों के कारण पुरुषों में अवसाद, चिंता और आत्महत्या की दर तेजी से बढ़ रही है।
विशेषज्ञों के अनुसार, समाज में पुरुषों को हमेशा “मजबूत” बने रहने की सीख दी जाती है, जिससे वे अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त नहीं कर पाते। इसके कारण वे अकेलेपन, तनाव और आत्म-संदेह से जूझते हैं।
नौकरी की असुरक्षा, बढ़ती महंगाई और परिवार की जिम्मेदारियां पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालती हैं।
हाल के वर्षों में तलाक और ब्रेकअप के मामलों में वृद्धि हुई है, जिससे पुरुषों में अवसाद और आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ी है।
“मर्द को दर्द नहीं होता” जैसी धारणाएँ पुरुषों को मानसिक स्वास्थ्य के लिए मदद मांगने से रोकती हैं।
झूठे आरोपों और कानूनी मामलों का सामना करने वाले पुरुष अक्सर गंभीर मानसिक तनाव में आ जाते हैं।
क्या कहती हैं रिपोर्ट्स?
मनोवैज्ञानिकों की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल मानसिक स्वास्थ्य से जूझ रहे पुरुषों की संख्या बढ़ रही है। आत्महत्या के मामलों में पुरुषों का प्रतिशत महिलाओं की तुलना में अधिक है। इसके बावजूद, बहुत कम पुरुष मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सहायता लेते हैं।
सामाजिक सुधार की जरूरत
पुरुषों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने और मदद लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
पुरुषों के लिए सहायता केंद्र स्थापित किए जाएं मानसिक स्वास्थ्य से जूझ रहे पुरुषों के लिए हेल्पलाइन और काउंसलिंग सुविधाएं बढ़ाई जाएं।
“मजबूत बनने” की सामाजिक अपेक्षाओं को बदलकर भावनात्मक जागरूकता को बढ़ावा दिया जाए।
झूठे आरोपों और कानूनी मामलों में निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए कानूनों की समीक्षा की जाए।
पुरुषों का मानसिक स्वास्थ्य समाज के लिए एक गंभीर विषय है जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। यदि समय रहते इस समस्या को नहीं समझा गया, तो इसके दूरगामी परिणाम न केवल व्यक्तिगत बल्कि सामाजिक स्तर पर भी गहरे हो सकते हैं। अब समय आ गया है कि मानसिक स्वास्थ्य को सिर्फ “महिलाओं की समस्या” न समझकर, पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी उतनी ही गंभीरता से विचार किया जाए।