अधिकारियों,जनप्रतिनिधियों की छोड़िये बात, शिक्षक भी अपने बच्चों का नही कराते दाखिला

उत्तर प्रदेश कुशीनगर

सफल समाचार 
विश्वजीत राय 

फिर सरकारी स्कूलों में कैसे मिलेगी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, बड़ा सवाल

नौकरी चाहिए सरकारी और इलाज व शिक्षा चाहिए प्राइवेट,फिर कैसे सुधरेगी व्यवस्था

कुशीनगर। सरकारी स्कूल में शिक्षक तो बनेंगे लेकिन अपने बच्चों को सरकारी स्कूल नहीं भेजेंगे, क्योंकि परिषदीय विद्यालयों में तैनात शिक्षको को खुद के पढाने पर ही भरोसा नही है, तभी तो वह अपने बच्चों को कान्वेंट में भेज रहे हैं और दुसरो से अपने बच्चों के नामांकन की अपील कर रहे हैं। फिर सरकारी विद्यालयों में नामांकन कैसे बढ़ेगा, यह बड़ा सवाल है।
शिक्षा खुद के अनुशासन से शुरू होती है। यह अनुशासन जब बड़े स्तर पर होता है तो विद्यालय, कार्यालय और समाज में भी बदलाव आता है। सरकारी स्कूलों में शिक्षक बनने के लिए मारामारी तो है लेकिन वही शिक्षक अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में क्यों नहीं पढ़ा रहे, यह भी एक बड़ा सवाल है। इसका मतलब यह है कि सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक भी यह मानते हैं कि सरकारी स्कूल में कहीं न कहीं कोई कमी जरूर है, और उन्हें अपने पढाने पर खुद ही यकीन नही है, इसलिए इसमें सुधार बेहद जरूरी है। लोगों का मानना है कि जब सरकारी स्कूलों में जनप्रतिनिधियों, अधिकारियों, शिक्षको व कर्मचारियों के बच्चे पढ़ेंगे तो शिक्षा व्यवस्था में सुधार आएगा। सरकारी स्कूल में अगर बड़े अधिकारियों के बच्चे पढ़ने लगेंगे तो खुद ब खुद शिक्षा व्यवस्था में सुधार देखने को मिलने लगेगा। समाजसेवी व आरटीआई कार्यकर्ता प्रदीप सिंह का कहना है कि लोग सरकारी नौकरी तो चाहते हैं लेकिन सरकार के ही अस्पताल या स्कूलों में अपने बच्चों का नामांकन या परिजनों का इलाज कराने से हिचकते हैं। जबकि सरकार द्वारा इन संस्थानों में बेहतरीन शिक्षक और डॉक्टरों की बहाली की जाती है। वहीं चाय की दुकान चलाने वाले रामदेव का कहना है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ाई अच्छी नहीं होती और उनकी हैसियत भी नहीं है कि अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ा सके। रामदेव चाय वाले का मानना है कि सरकार को यह नियम बनाना चाहिए कि बड़े सरकारी अधिकारी, कर्मचारी व शिक्षको के बच्चे सरकारी स्कूल में ही पढ़ेंगे और उनके परिजनों का इलाज भी सरकारी अस्पताल में ही होगा। उन्होंने कहा कि ऐसा होने से स्कूल और अस्पताल में लापरवाही करने वाले शिक्षक और डॉक्टर भी ईमानदारी से काम करेंगे,क्योंकि उन्हें पता होगा कि लापरवाही बरतने पर उनके ऊपर बड़ी कार्रवाई हो सकती है।

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