प्राइवेट फाइनेंस कंपनियां आसान कर्ज देने का आश्वासन देकर ले लेती हैं झांसे में

उत्तर प्रदेश कुशीनगर

सफल समाचार 
विश्वजीत राय 

तय तारीख पर कर्ज की किस्त वसूलने पहुंच जाते हैं दरवाजे पर
कर्ज से परेशान एक मजदूर ने 30 जून को अपनी झोपड़ी में फंदा लगाकर खुदकुशी कर ली थी

पडरौना। महंगे ब्याज पर सूदखोर तो लोगों का शोषण करते ही रहे हैं, अब चिटफंड कंपनियां व प्राइवेट फाइनेंस कंपनियां भी संगठित तरीके से यही करने लगी हैं। जनपद में सक्रिय कंपनियां पहले तो बड़ी आसानी से कर्ज दे दे रही हैं, बाद में तय तिथि पर किस्त जमा न करने पर दबाव बनाने लग रही हैं।
पड़ोस के देवरिया जिले में ऐसा एक मामला सामने आ चुका है, जिसमें कर्ज समय से न चुकाने पर उस व्यक्ति के घर का राशन तक उठा ले गए। कुशीनगर जनपद के खड्डा थाना क्षेत्र लक्ष्मीपुर पड़रहवा गांव में भी 30 वर्षीय एक मजदूर ने चार कंपनियों से कर्ज लिया था, समय से किस्त न चुका पाने के कारण आत्महत्या कर ली थी। ताज्जुब की बात तो यह है कि इनका न तो जनपद में कहीं पंजीकरण हो रहा है और न ही कोई रिकाॅर्ड रखा जा रहा है, जिससे ये बेरोकटोक अपना काम कर रही हैं।

जानकारों की मानें तो लोगों को आसानी से कर्ज मुहैया कराकर फंसाने वाली जनपद में सक्रिय प्राइवेट फाइनेंस कंपनियां शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक सक्रिय हैं। पडरौना शहर में ही इस तरह की 20 से अधिक कंपनियां सक्रिय हैं। बैंकों की भांति कर्ज लेने की प्रक्रिया जटिल न होने और वक्त पर रुपये मिल जाने के कारण लोग तेजी से इनकी तरफ आकर्षित हो जा रहे हैं, लेकिन इनका ब्याज बहुत अधिक रह रहा है। इससे कर्ज चुकाना कर्जदारों के लिए बड़ा कठिन हो जा रहा है। क्योंकि तय तिथि पर ही किस्त जमा करने का दबाव बना रही हैं।
इसके अलावा पूर्व में 20 से अधिक ऐसी फाइनेंस कंपनियां भी जनपद में सक्रिय रहीं, जिन्होंने अधिक ब्याज देने या कम समय में रकम दोगुना करने का लालच देकर लोगों से प्रतिदिन या महीने में अथवा एकमुश्त रुपये तो जमा करा लिए, लेकिन जब रुपये देने की बारी आई तो अपना दफ्तर बंद कर भाग गईं। जनपद में एक महीने के भीतर एक लाख से अधिक ऐसे लोग आवेदन कर चुके हैं, जो इन फाइनेंस कंपनियों से लुट चुके हैं।

हजारों का कर्ज, लाखों में रिकवरी
गैरबैंकिंग वित्तीय संस्थानों के झांसे में पड़कर लोग लाखों रुपये के कर्जदार बन जा रहे हैं। वे लोन तो हजारों में ले रहे हैं, लेकिन कब उनका कर्ज लाखों में बदल जा रहा है, यह पता ही नहीं चल रहा है। तमकुहीराज कस्बे में भी अलग-अलग नामों से 20 गैरबैंकिंग संस्थान सक्रिय हैं। ये 24 प्रतिशत वार्षिक दर से कर्ज देती हैं। इसमें स्टांप ड्यूटी शुल्क और कर्ज का प्रोसेसिंग शुल्क भी ग्राहकों को ही देना पड़ता है।

पहले देती हैं मुनाफा, फिर रुपये लेकर कंपनियां हो जाती हैं चंपत

फाइनेंस कंपनियां पहले ग्राहकों को अधिक धन का लालच देती हैं। उनके खाते में रुपये जमा कराती हैं और अधिक ब्याज देती हैं। जब लोगों की संख्या अधिक हो जाती है तो रुपये लेकर भाग जाती हैं। क्षेत्र के लतवा बाजार के व्यापारी संदीप ने बताया कि एक कंपनी ने उनसे 36 हजार रुपये 100 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से जमा कराया और दो हजार रुपये का मुनाफा दिया। इसे देखकर बगल के ऋषिकेश वर्मा ने 72 हजार रुपये जमा किया, जब भुगतान करने का समय आया तो कंपनी पैसे लेकर भाग गई।

60 करोड़ रुपये लेकर भागीं कंपनियां
जनपद में सहारा, पीएसीएल, रियल विजन, कुबेर, कैनविज, पल्स, विश्वामित्र पूर्वांचल ग्रामीण विकास निधि लिमिटेड सहित कई कंपनियां सक्रिय थीं। शुरू में अधिक मुनाफा देती थीं, जिससे बहुत से लोगों ने अपने रुपये जमा किए। किसी ने प्रतिदिन किसी ने महीने में तो किसी ने एकमुश्त रुपये जमा कर दिए। इन कंपनियों से ठगे गए लोग बताते हैं कि किसी ने तीन वर्ष में रकम दोगुना करने का भरोसा दिलाया तो किसी ने अधिक ब्याज का। ठगी के शिकार हुए लोगों की मानी जाए तो जनपद से करीब 60 करोड़ रुपये लेकर ये कंपनियां भाग गईं। अपनी रकम के लिए लोग आज छह-सात वर्षों से अधिकारियों के दफ्तरों का चक्कर लगा रहे हैं।

दबाव बनाकर करती हैं वसूली

ठगी पीड़ित जमाकर्ता परिवार के जिलाध्यक्ष एसएन गिरी ने बताया निजी कंपनियां लोगों (एजेंटों ) के द्वारा दबाव बनाकर कर्ज वसूली करती हैं। अगर वसूली नहीं हो पाती तो कंपनियां संपत्ति पर कब्जा कर लेती हैं। इन निजी कंपनियों का अगर क्रिया-कलाप तीन वर्ष तक ठीक रहा है और सेवी के नियमों का पालन करती है तो फंड देकर बैंकिंग सेक्टर में प्रवेश दिला देती हैं।

परिचर्चा
ठगी पीड़ितों का बना है समूह, कर जमा करा रहे आवेदन
जनपद में फाइनेंस कंपनियों से ठगी के शिकार हुए लोगों का यह संगठन बनाया गया है। अपने रुपये पाने के लिए सभी ने बड़ा संघर्ष किया, तब जाकर जिला प्रशासन ने सभी तहसीलों में एक काउंटर खोला है, जहां उन पीड़ितों के आवेदन पत्र जमा कराए जा रहे हैं। अब तक एक लाख लोगों ने अपने आवेदन जमा किए हैं, जिसमें किसका कितना रुपये फंसा है, दर्शाया गया है। एसएन गिरी ने बताया कि पीएसीएल के एडवाइजर के रूप में कार्य किए थे। उनके दस लाख रुपये फंसे हुए हैं।
एसएन गिरी, जिलाध्यक्ष, ठगी पीड़ित जमाकर्ता परिवार

21 हजार रुपये इस उम्मीद में जमा किया था कि जून में मेरी शादी थी, काम आएगा। लेकिन कंपनी ही रुपये लेकर गायब हो गई।
विकास, निवासी गोड़इता श्रीराम

एक लाख पांच हजार रुपये जमा किया था। कंपनी ने अधिक मुनाफा देने का भरोसा दिलाया था, लेकिन समय पूरा होने से पहले ही कंपनी रुपये लेकर भाग गई।
रूप मिश्रा, निवासी नैनुपहरू
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पहली बार 36 हजार रुपये जमा किया था। 38 हजार वापस मिल गए। दूसरी बार भी 36 हजार इस उम्मीद में जमा किया था कि बहन की शादी में मदद मिलेगी, लेकिन कंपनी भाग गई।
संदीप शर्मा, लतवा बाजार

क्यों फंस जाते हैं लोग ऐसी कंपनियों के जाल में
राष्ट्रीयकृत बैंकों में बचत खाते पर ग्राहक को ढाई से साढ़े तीन प्रतिशत, एफडी पर पांच से साढ़े छह प्रतिशत तक ब्याज मिलता है, लेकिन रुपये लेकर भागने वाली कंपनियां पांच से दस प्रतिशत तक ब्याज देने का झांसा देती थीं। इसके अलावा रकम एकमुश्त जमा करने या एफडी पर तीन से पांच साल में रुपये दोगुना करने का आश्वासन देती थीं, जिससे लोग अधिक मुनाफे की उम्मीद में इनके जाल में फंस जाते थे।
इसी तरह इन दिनों सक्रिय प्राइवेट फाइनेंस कंपनियां सिर्फ आधारकार्ड पर लोगों को तत्काल कर्ज दे दे रही हैं। इससे लोग उनकी बातों में जल्दी आ जा रहे हैं। हालांकि, यह सहूलियत बाद में चलकर मुसीबत बन जा रही है। क्योंकि यह कंपनियां 24 प्रतिशत तक वार्षिक ब्याज वसूल रही हैं। तय तिथि पर किस्त जमा न होने पर घर पहुंच जा रही हैं। बकाया अधिक होने पर रुपये जमा करने के लिए अपने तरीके से दबाव भी बना रही हैं। अभी ताजा मामला देवरिया जिले के बैदा कोड़र गांव का है, जहां एक व्यक्ति की तरफ से ब्याज के रुपये न देने पर चिटफंड कंपनी के लोग बीमारी की हालत में भी उसके घर का गेहूं और चावल उठा ले गए। दूसरी ओर बैंकों में कर्ज देने की प्रक्रिया इतनी जटिल है कि लोग हिम्मत नहीं जुटा पाते। हालांकि, वहां कम ब्याज देना होता है।

कर्ज न चुका पाने पर मजदूर ने फंदा लगाकर की थी खुदकुशी
30 जून को खड्डा थाना क्षेत्र के लक्ष्मीपुर पड़रहवा गांव के निवासी 30 वर्षीय दुखी ने अपनी झोपड़ी में फंदा लगाकर खुदकुशी कर ली थी। उसकी पत्नी वंदना ने बताया था कि प्रधानमंत्री आवास मिला था, लेकिन उसकी रकम न आने के कारण घर अधूरा पड़ा था। उसे बनवाने के लिए चार प्राइवेट फाइनेंस कंपनियों से कर्ज ली थी। हर हफ्ते किसी न किसी कंपनी का किस्त जमा करना पड़ता था। इससे चिंता में उसके पति बीमार पड़ गए थे। उन्होंने फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली थी।

एलडीएम बोले- प्राइवेट फाइनेंस वाले नहीं देते सूचना
प्राइवेट फाइनेंस कंपनियां जिले में कहीं पंजीकरण नहीं कराती हैं और न ही कार्यालय खोलने की सूचना देती हैं। इस वजह से उनके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाती है। वे बैंकों के अधीन भी नहीं आती हैं। नियमत: इन्हें डीएम कार्यालय में सूचना देनी चाहिए, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं होता है।
सुनील त्यागी, अग्रणी बैंक प्रबंधक

हमारे समक्ष अभी तक किसी ऐसे व्यक्ति ने शिकायत नहीं की है, जिस पर प्राइवेट फाइनेंस कंपनियों ने अपनी रकम वसूलने के लिए कोई दबाव बनाया हो। अगर इस संबंध में कोई शिकायत मिलती है तो जांच कराकर कार्रवाई की जाएगी।
धवल जायसवाल, पुलिस अधीक्षक

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