सफल समाचार
शेर मोहम्मद
देवरिया। घरों में पाले गए जर्मन शेफर्ड, राॅट विलर और पिटबुल से ज्यादा खतरनाक गली के कुत्ते हैं। गली के कुत्तों का वैक्सीनेशन नहीं होता है और ये आपके दरवाजे के ईद-गिर्द ही मंडराते है। अगर काट दिए तो जान बन आएगी। इन्हें मारिए-पिटिए नहीं और न भगाए। बस जरूरत है इन्हें एंटी रैबीज वैक्सीन लगवाने की। यह काम कॉलोनी के लोग ही कर सकते हैं। लोगों का कहना है कि देसी कुत्ते को पकड़कर जंगल में छोड़ने के लिए नगर पालिका परिषद मोटी रकम खर्च करता है। उसी बजट का वैक्सीनेशन करा दें तो हर कोई सुरक्षित हो जाएगा।
गली के कुत्तों के आतंक से हर कोई परेशान है। पर इनसे बचने के इंतजाम के प्रति गंभीरता नहीं है। जबकि यह मुसीबत हर दरवाजे पर खड़ी है। इसका शिकार कब कौन हो जाए, किसी को पता नहीं। जिला अस्पताल में हर दिन लगने वाले 120 से 130 से अधिक एंटी रैबीज इंजेक्शन भी इस बात को प्रमाणित कर रहे हैं कि गली के कुत्ते आए दिन लोगों को शिकार बना रहे हैं। इसमें 20 से 25 प्रतिशत बच्चे हैं। इसे लेकर कुछ लोगों की शिकायतें भी नगर पालिका तक पहुंच रही हैं, लेकिन शिकायतों को नजरंदाज कर दिया गया है। हर गली, कॉलोनी में कुत्तों का झुंड रात-दिन घूम रहा है। हालत यह है कि फोरलेन हो या मोहल्ले की सड़क, बाइक चला रहे लोगों को कुत्ते दौड़ा ले रहे हैं। इससे लोगों को जान का खतरा भी है।