विश्वविद्यालय में सफाई, रंगाई, कैंटीन जैसे कई ऐसे काम हैं, जो ठेका से ही होते हैं। इसे पाने के लिए ठेकेदार किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाते हैं।

उत्तर प्रदेश गोरखपुर

सफल समाचार 
सुनीता राय 

विश्वविद्यालय में सफाई, रंगाई, कैंटीन जैसे कई ऐसे काम हैं, जो ठेका से ही होते हैं। इसे पाने के लिए ठेकेदार किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाते हैं। उनका एक ही मकसद होता है कि जैसे भी करके ठेका को हासिल किया जाए, लेकिन पिछले छह महीने से अचानक कुछ ऐसा हुआ कि लंबे समय से काम कर रहे ठेकेदार बाहर कर दिए गए।

गोरखपुर विश्वविद्यालय में हुए एवीबीपी कार्यकर्ताओं के बवाल के पीछे कई चिंगारियां हैं। एक वजह पुराने ठेकेदारों की आवाज दबाना भी बताई जा रही है। पुरानों से नाता तोड़कर विश्वविद्यालय प्रशासन ने नए ठेकेदारों को इंट्री दी थी। इसके पीछे का खेल ठेकेदार समझ तो गए थे, लेकिन एफआईआर की घुड़की से उनकी आवाज को दबा दिया गया।

एक ठेकेदार ने 65 लाख के बकाए को लेकर कुलपति तक से फोन पर बातचीत की थी, मगर नियंता रहे प्रो. गोपाल ने उसके खिलाफ केस दर्ज कराया। बाद में प्रो. गोपाल ने खुद बड़े खेल की ओर संकेत देते हुए पद से इस्तीफा भी दे दिया। इसकी शिकायत राजभवन तक पहुंची, जांच भी हुई, लेकिन अंजाम तक नहीं पहुंच पाई।

दरअसल, विश्वविद्यालय में सफाई, रंगाई, कैंटीन जैसे कई ऐसे काम हैं, जो ठेका से ही होते हैं। इसे पाने के लिए ठेकेदार किसी भी हद तक जाने को तैयार हो जाते हैं। उनका एक ही मकसद होता है कि जैसे भी करके ठेका को हासिल किया जाए, लेकिन पिछले छह महीने से अचानक कुछ ऐसा हुआ कि लंबे समय से काम कर रहे ठेकेदार बाहर कर दिए गए। लंबा बकाया हुआ तो उन्हें ब्लैक लिस्ट कर दिया गया। भुगतान के लिए आवाज उठाया तो केस दर्ज कराया गया। कुछ यही हाल आउटसोर्सिंग कर्मचारियों को देने वाले ठेकेदारों की भी है।

वह भी अपने भुगतान को लेकर लंबे समय से परेशान हैं, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन के सामने कोई कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। विश्वविद्यालय के प्रो. कमलेश गुप्ता लंबे समय से सवाल उठाते हैं। उन्हें भी निलंबित कर दिया गया, बाद में बहाल किया गया। ऐसा कई बार हुआ। 20 अप्रैल को ठेकेदार श्रीप्रकाश शुक्ला पर जो केस दर्ज किया गया, उसमें आरोप है कि यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रोफेसर राजेश सिंह को रात में फोन पर जान से मारने की धमकी दी गई।

हालांकि, ठेकेदार श्रीप्रकाश शुक्ला ने बताया कि यूनिवर्सिटी में सफाई कार्य के करीब 65 लाख रुपये बकाया है। कर्मचारियों को रुपये देने के लिए वह बुधवार को यूनिवर्सिटी गए थे, जहां उन्हें बंधक बनाया गया। उन्होंने इसकी जानकारी शाहपुर पुलिस को दी। उनकी फोन पर कुलपति से बात भी नहीं हुई थी।

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