दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में आउटसोर्स पर रखे गए करीब 600 शिक्षकों, कर्मचारियों और सफाईकर्मियों के करोड़ों रुपये की भविष्य निधि (पीएफ) में जिम्मेदारों ने हेराफेरी की है

उत्तर प्रदेश गोरखपुर

सफल समाचार 
सुनीता राय 

प्राथमिक जांच में पाया गया कि वर्ष 2006 में एजेंसी के जरिए आउटसोर्स के रूप में कर्मचारी तैनात किए गए। वर्ष 2022 तक तीन एजेंसियों को ठेका दिया गया। सभी ने कर्मचारियों को दिए जाने वाले मानदेय से पीएफ के अंश की कटौती की, लेकिन उसे कर्मचारी भविष्य निधि में जमा नहीं कराया।

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में आउटसोर्स पर रखे गए करीब 600 शिक्षकों, कर्मचारियों और सफाईकर्मियों के करोड़ों रुपये की भविष्य निधि (पीएफ) में जिम्मेदारों ने हेराफेरी की है। विश्वविद्यालय की ओर से भविष्य निधि विभाग को कोई रिकॉर्ड नहीं सौंपा गया है।

पीएफ विभाग ने अब अंशदान को जमा कराने के लिए विश्वविद्यालय को प्रधान नियोक्ता (प्रिंसिपल इंप्लायर) बनाने का निर्णय लिया है। पांच साल के पीएफ अंशदान की कटौती का हिसाब-किताब मांगा जाएगा। जल्द ही विश्वविद्यालय को नोटिस दिया जाएगा।

गोरखपुर विश्वविद्यालय में आउटसोर्स कर्मचारियों की 10 करोड़ रुपये से ज्यादा भविष्य निधि में हेराफेरी का मामला पिछले साल अक्तूबर में पकड़ा गया था। कुलपति प्रो. राजेश सिंह ने जब जांच कराई तो पता चला कि बीते 16 साल से आउटसोर्स कर्मचारियों की पीएफ निधि का अंशदान नियमित जमा नहीं किया गया है।

कागजों में यह रकम जमा होती रही है। कुलपति ने मामले में एक कमेटी बना दी। प्राथमिक जांच में पाया गया कि वर्ष 2006 में एजेंसी के जरिए आउटसोर्स के रूप में कर्मचारी तैनात किए गए। वर्ष 2022 तक तीन एजेंसियों को ठेका दिया गया।

सभी ने कर्मचारियों को दिए जाने वाले मानदेय से पीएफ के अंश की कटौती की, लेकिन उसे कर्मचारी भविष्य निधि में जमा नहीं कराया। हालांकि, जब मामला उछला तो इस बीच एजेंसी ने कुछ लोगों का पीएफ जमा कर दिया।

वहीं, खुलासे को गंभीरता से लेते हुए पीएफ कमिश्नर ने जांच शुरू करा दी। जांच में पाया गया कि कर्मचारियों की ही नहीं, सेल्फ फाइनेंस कोर्स के लिए तैनात शिक्षकों, गेस्ट हाउस कर्मचारियों, निर्माण कार्य कराने वाली फर्मों के मजदूरों के पीएफ जमा होने का कोई रिकॉर्ड नहीं है। इसके लिए पीएफ विभाग ने पत्र जारी कर रिपोर्ट मांगी, लेकिन विश्वविद्यालय की ओर से कोई ब्योरा नहीं दिया गया।

अब पीएफ विभाग सख्ती करने जा रहा है। विभाग के अधिकारियों का कहना है कि शिक्षक-कर्मचारी या मजदूर कोई भी हों, जिसके लिए भुगतान किया गया है, तो उसका पीएफ अंशदान जमा होना चाहिए। विभाग से रिकॉर्ड मांगा गया है। अब विश्वविद्यालय को प्रमुख नियोक्ता बनाया जाएगा।

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन कमिश्नर शशांक जायसवाल ने कहा कि गोरखपुर विश्वविद्यालय में सभी आउटसोर्स कर्मचारियों का पीएफ अंशदान जमा होना चाहिए। इसके लिए मैंने अधिकारी नियुक्त कर जांच के आदेश दिए थे। जांच रिपोर्ट भी आ गई है। जल्द ही इस पर एक्शन लिया जाएगा।
 

ऐसे खुला मामला

वर्ष 2021 में कुलपति प्रो. राजेश सिंह ने आउटसोर्स कर्मचारियों के तैनाती स्थल की जांच शुरू की। भारी गड़बड़ी मिली तो उन्होंने कर्मचारियों की फाइल तलब की। जांच में पाया गया कि कर्मचारियों का पीएफ अंश जमा नहीं हो रहा है। इसके बाद वर्ष 2006 तक की फाइलों की पड़ताल की गई तो हर जगह मामला संदिग्ध मिला।

कागजों में जमा दिखाया गया था और एजेंसी को भुगतान कर दिया गया, लेकिन कर्मचारियों का खाता नहीं खुला था। इस समय विश्वविद्यालय में 264 कर्मचारी तैनात हैं। सभी का नियमित पीएफ जमा नहीं हो रहा है। अब कुलपति ने सख्ती बरतते हुए पूरे प्रकरण की जांच के निर्देश दिए हैं।

राजभवन ने दिए थे जांच के निर्देश, दबा दी गईं फाइलें
आईटीआई कार्यकर्ता उग्रसेन सिंह ने वर्ष 2019 में राजभवन को पत्र लिखकर सेवा प्रदाता फर्म पर कर्मचारियों के पीएफ अंशदान जमा कराने में घोटाले का आरोप लगाया था। कहा था कि 248 कर्मचारियों के वेतन का भुगतान जेजेज इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी प्राइवेट लिमिटेड को विवि प्रशासन ने किया है। एजेंसी ने 191 कर्मचारियों का ही पीएफ अंशदान जमा किया है। इसका संज्ञान लेते हुए राजभवन से जांच का आदेश दिया गया। कमेटी भी बनी, लेकिन जांच पूरी नहीं हुई और मामला दबा दिया गया।

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