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सुनीता राय
गोरखपुर जिले के बिलंदपुर में अयान की कार में बंद होने से मौत के बाद से परिजन स्तब्ध हैं। उन्हें हर पल अपने बच्चों की सुरक्षा की चिंता सता रही है। कार के पास बच्चों को खेलता देखकर लोग टोक रहे हैं कि उसमें अकेले मत बैठना। मगर कार ही नहीं, स्कूली बच्चों के इर्द-गिर्द तमाम खतरे और भी मंडरा रहे हैं। अनजान ऑटो-ईरिक्शा चालक, खुले नालों और भारी वाहनों के बीच बच्चे हर पल खतरे का सामना कर रहे हैं। ऐसे में अगर अभिभावक जागरूक नहीं हुए तो नौनिहाल कब हादसे के शिकार हो जाएं, कहा नहीं जा सकता।
अयान का मामला तो घर के अंदर से जुड़ा है, मासूमों को बाहर भी कम खतरे का सामना नहीं करना पड़ रहा। बिना जांच-पड़ताल के स्कूलों में लगाए गए ई-रिक्शा और ऑटो से स्कूल जाने वाले बच्चे भी सुरक्षित नहीं हैं। यही नहीं मालूम कि चालक कौन और कैसा व्यक्ति है। कोई बड़ी बात नहीं कि दिल्ली-एनसीआर में हुई कुछ घटनाओं की तरह चालक ही बच्चों के लिए खतरा बन जाएं। यही नहीं, स्कूल की छुट्टी के समय भी बच्चों को काफी सांसत झेलनी पड़ रही है। तेज रफ्तार गाड़ियों के बीच सड़क पार कर अपनों तक पहुंचना बच्चों के लिए रोजाना जोखिम भरा होता है।
ऑटो में ठूंसकर ले जाए जा रहे बच्चे आपके घर के तो नहीं
ज्यादा बच्चों को बैठाने के लालच में छोटे-छोटे बच्चों को भी ऑटो में आगे की सीट पर ठूंसा जा रहा है। अगर बच्चे चंचल हैं और ताकझांक करने लगे तो हादसे के शिकार हो सकते हैं। ऐसे में अभिभावकों की भी जिम्मेदारी बड़ी हो जाती है कि वे सतर्क रहें और यह जरूर सत्यापित कर लें कि ई-रिक्शा और ऑटो चालक का चालचलन ठीक है या नहीं। उनके बच्चे सुरक्षित तरीके से स्कूल आ-जा रहे हैं या नहीं। बच्चों के साथ छेड़खानी और हादसे से जुड़ी कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिनसे सबक लेने की जरूरत है।
शुक्रवार दोपहर 12 से 1:30 के बीच सिविल लाइंस क्षेत्र में स्थित लगभग सभी स्कूलों के बाहर ई-रिक्शा और ऑटो की लंबी कतार दिखी। जैसे ही छुट्टी हुई, स्कूल के बाहर खड़े ऑटो और ई-रिक्शा बच्चों से भर गए। चालक, बैग ऑटो की छतों पर रख दे रहे थे, क्योंकि ऑटो में रखने तक की जगह नहीं थी। ऑटो में छह लोगों की सीट पर आठ से 10 बच्चे और ई-रिक्शा की चार लोगों की सीट पर छह से आठ बच्चे बैठे नजर आए।
कुछ चालकों ने तो छोटे बच्चों को ही आगे की सीट पर बैठा लिया था। ठसाठस भरे बच्चों को देखकर ही डर लग रहा था कि उछल-कूद और ताकझांक में कहीं नीचे न गिर पड़े।
नहीं मिलता है स्कूल परमिट
बच्चों की सुरक्षा के मद्देनजर प्रदेश सरकार ने ऑटो और ई- रिक्शा में स्कूली बच्चों का लाना, ले जाना प्रतिबंधित कर रखा है। ऐसे में उन्हें स्कूल परमिट, परिवहन विभाग की ओर से नहीं दिया जाता। बावजूद इसके, अभिभावक अपने बच्चों को बिना किसी चिंता व डर के असुरक्षित ऑटो व ई-रिक्शा से स्कूलों में भेज रहे हैं। महानगर में लगभग दो हजार ऑटो और ई-रिक्शा, बच्चों को स्कूल से लाने-ले जाने का काम जिम्मेदारों की आंखों के सामने बेरोकटोक कर रहे हैं।
अभिभावक बोले
बच्चों के स्कूल लाने और ले जाने को लेकर परिवार के लोग बहुत गंभीर हैं। इसलिए बच्चों को ऑटो से स्कूल नहीं भेजती हूं। नौकरी करने के बावजूद समय निकालकर खुद बच्चों को स्कूल छोड़ने आती हूं और लेकर जाती हूं।-प्रतिमा श्रीवास्तव, विजय चौक
पहले बच्चे को ऑटो से स्कूल भेजती थी, स्कूटी से खुद ही बच्चे को छोड़ने आती हूं और उसे लेकर घर जाती हूं। सभी अभिभावकों को अपने बच्चों की सुरक्षा का ख्याल रखना चाहिए, उन्हें ऑटो और ई रिक्शा से स्कूल नहीं भेजना चाहिए। -विभा सिंह, तारामंडल
ऑटो और ई-रिक्शा चालक बच्चों को वाहन में मानक की तुलना में ज्यादा बैठाते हैं, इससे उनकी जान पर खतरा बना रहता है। बच्चों की सुरक्षा के लिए हम सभी काम छोड़कर घर से बच्चों को छोड़ने और लेने आते हैं। -सविता, मोहद्दीपुर
ऑटो और ई-रिक्शा चालकों के भरोसे बच्चों को नहीं छोड़ना चाहिए। उन्हें बच्चों की सुरक्षा का ख्याल नहीं रहता है। ज्यादा कमाई के लिए वह बच्चों की सुरक्षा से खिलवाड़ करते हैं। अभिभावकों को खुद ही बच्चों को स्कूल छोड़ने और लेने जाना चाहिए। राजेश सोनकर, सिनेमा सुमेर सागर रोड
बोले प्रबंधक
स्कूल में बच्चों की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा जाता है। बच्चों के स्कूल में प्रवेश करने के साथ ही उनकी निगरानी शुरू हो जाती है। इसके लिए पांच सदस्यीय टीम बनाई गई है, जो हमेशा बच्चों पर नजर रखती है। बच्चों को स्कूल से वही ले जा सकता है, जिनका फोटो स्कूल के रिकॉर्ड में दर्ज हो। इसके अलावा किसी के साथ बच्चे नहीं भेजे जाते हैं। शिक्षक-अभिभावक सम्मेलन में अभिभावकों से अपील की जाती है कि वह ऑटो और ई-रिक्शा से स्कूल न भेजें।
रीमा श्रीवास्तव, निदेशक, स्प्रींगर गर्ल्स स्कूल
स्कूल में बच्चों के सुरक्षा की जिम्मेदारी स्कूल प्रबंधन की है। इसके लिए विद्यालय प्रबंधन हर संभव प्रयास करता है कि उनके बच्चों को स्कूल में किसी तरह की कोई दिक्कत न हो। बच्चों की निगरानी के लिए 11 सदस्यीय टीम बनाई गई है। खास तौर पर छोटे बच्चोंं की निगरानी की जाती है। छोटे बच्चों के अभिभावकों के लिए कार्ड बनाया गया है। जिसके पास कार्ड होता है, वहीं बच्चे को स्कूल से ले जा सकते हैं। छोटे बच्चों को स्कूल भेजने के लिए ऑटो और ई रिक्शा की मनाही है। -विवेक कुमार श्रीवास्तव, प्रबंधक रैंपस
बच्चों की सुरक्षा बहुत अहम मुद्दा है। स्कूल में छात्र बाइक और स्कूटी से आते हैं, जबकि उनकी उम्र 18 वर्ष से कम है। वहीं, ई-रिक्शा और टैंपों पर इतने ज्यादा छात्रों को बैठाते हैं कि गिरने का डर बना रहता है। इन मुद्दों को लेकर कार्यशाला आयोजित होनी चाहिए। शिक्षक-अभिभावक मीटिंग में भी जागरूक किया जाना चाहिए। स्कूल में बसों चालक और परिचालक का पता सत्यापन कराने के बाद रखा जाता है। सीसीटीवी कैमरे तो हर स्कूल में जरूरी कर देना चाहिए। कैमरों का मेंटेनेंस भी नियमित हो। -अरविंद्र विक्रम सिंह, सेक्रेटरी, गोरखपुर पब्लिक स्कूल
खुले नालों के पास और वाहनों के बीच से सड़क पार कर रहे मासूम
स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे कदम-कदम पर खतरों से गुजरते हैं। कहीं पर खुले नाले तो कहीं पर वाहनों का रेला है। स्कूल से निकलने के बाद वाहनों की भीड़ से होकर बच्चों को अपने अभिभावक, ऑटो और रिक्शा तक पहुंचना पड़ता है। अक्सर वे खुले नालों के बगल से गुजरते हैं। थोड़ा सा भी बैलेंस बिगड़ा तो वे नाले में डूब सकते हैं। दो महीने पहले ही सिविल लाइंस में स्कूल से बच्चे निकले तो एक का बैलेंस खराब हुआ और वह नाले में गिर पड़ा। पास खड़े लोगों ने उसे तत्काल हाथ थाम कर बाहर निकाल लिया।