सीएमओ डाॅ. आशुतोष कुमार दुबे ने कहा कि बारिश के मौसम में जेई, स्क्रब टाइफस, लैप्टोस्पायरोसिस के बैक्टीरिया और वायरस सक्रिय होते हैं

उत्तर प्रदेश गोरखपुर

सफल समाचार 
सुनीता राय 

इस मौसम में घर में चूहा, छुछूंदर आदि को आने से रोकना होगा। इसके अलावा पालतू कुत्ते और बिल्ली की साफ-सफाई का ध्यान रखना होगा।
जापानी इंसेफेलाइटिस के मरीजों में स्क्रब टाइफस के बैक्टीरिया भी मिलने लगे हैं। आरएमआरसी की जांच में इसका खुलासा हुआ है। जांच में जेई के नौ में से तीन मरीजों में स्क्रब टाइफस के बैक्टीरिया मिलने के बाद अब सतर्कता बढ़ा दी गई है।

जांच में यह भी पता चला है कि जेई के मरीजों में चूहों से स्क्रब टाइफस के बैक्टीरिया पहुंचे हैं। ऐसे में यह फैसला लिया गया है कि अब जापानी इंसेफेलाइटिस के जो भी सैंपल लिए जाएंगे, उनके साथ पांच और जांचें हर हाल में अनिवार्य रूप से करानी है। इन जांचों में स्क्रब टायफस, लैप्टास्पायरोसिस, मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया शामिल हैं।

रीजनल मेडिकल रिसर्च सेंटर (आरएमआरसी) के मीडिया प्रभारी व सीनियर वैज्ञानिक डॉ. अशोक पांडेय ने बताया कि जेई के नौ मरीजों की सैंपल लेकर जांच की गई तो पता चला कि स्क्रब टाइफस के बैक्टीरिया ज्यादा हैं। स्क्रब टाइफस के बैक्टीरिया चूहों के शरीर पर रहने वाले थ्रोम्बोसाइटोपेनिक माइट्स नाम के कीडे़ से शरीर में प्रवेश करते हैं।

इसके बाद शरीर में स्क्रब टाइफस के बैक्टीरिया तेजी से पनपने लगते हैं। इन मरीजों को हाई ग्रेड फीवर के साथ शरीर के कुछ हिस्सों जैसे गर्दन, कलाई, पीठ, पेट पर छोटी-छोटी गिल्टियाें की तरह दाने निकलने लगते हैं।

उन्होंने बताया कि समय पर इस बीमारी की पहचान न होने पर शरीर पर निकलने वाली छोटी-छोटी गिल्टियों की संख्या अधिक हो जाती और फिर बैक्टीरिया का असर पूरे शरीर पर हो जाता है। समय से इलाज न होने पर 30 से 35 फीसदी मरीजों की मौत हो जाती है। हालांकि अब तक एक भी मरीज की मौत नहीं हुई है। सभी मरीजों का इलाज बीआरडी मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग में चल रहा है। काफी हद तक मरीजों के स्वास्थ्य में सुधार है।

स्क्रब टाइफस का नहीं है कोई टीका
जापानी इंसेफेलाइटिस और एक्यूट इंसेफेलाइटिस के मरीजों में स्क्रब टाइफस के बैक्टीरिया का मिलना काफी चिंताजनक है। ऐसा इसलिए कि जेई और एईएस का तो टीका तो बनाया जा चुका है, लेकिन अब तक स्क्रब टाइफस का टीका नहीं बन पाया है। स्क्रब टाइफस का टीका न होने की वजह से जेई और एईएस के टीके शरीर पर कम प्रभावी होते हैं। हालांकि आरएमआरसी के सीनियर वैज्ञानिकों की टीम ने स्क्रब टाइफस जांच के लिए एक किट बना दी है, जिससे 45 मिनट में जांच पूरी हो जाएगी।

जेई के मरीजों में लैप्टास्पायरोसिस का भी खतरा
डॉ. अशोक पांडेय ने बताया कि जेई के मरीजों में स्क्रब टाइफस के साथ लैप्टोस्पायरोसिस का भी खतरा है। पिछले साल जेई के 10 मरीजों में लैप्टास्पायरोसिस मिला था। यह यह एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम समूह का एक वायरस है। इससे ग्रसित बच्चों में झटका, तेज बुखार के साथ असहनीय पीड़ा होती है। यह चूहा और छछूंदर के साथ कुत्ता और बिल्ली के पेशाब व मल से फैलता है।
 

तेज बुखार आया, जांच में निकला जेई और स्क्रब टाइफस

खोराबार के जंगल चौरी का रहने वाला 12 वर्षीय बालक छत पर खेल रहा था। अचानक वह सीढ़ी पर गिर गया। परिजन इलाज के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र लेकर गए, जहां डॉक्टरों ने बीआरडी मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया। बीआरडी में डॉक्टरों की टीम ने लगातार बुखार आने की शिकायत पर जेई की जांच के लिए आरएमआरसी में सैंपल भेजा। जांच में जेई और स्क्रब टाइफस की पुष्टि हुई।

क्या है स्क्रब टाइफस

स्क्रब टाइफस एक बैक्टीरिया जनित बीमारी है, जो चूहों के मल-मूत्र या उसके शरीर में रहने वाले कीटाणुओं से फैलता है। यह बैक्टीरिया बच्चों को ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। युवाओं और बुजुर्गाें में अब तक यह बैक्टीरिया नहीं मिले हैं। आमतौर पर जापानी इंसेफेलाइटिस के मरीजों में यह बैक्टीरिया मिल रहा है, जो विशेषज्ञों के लिए चिंता का विषय है।

सीएमओ डाॅ. आशुतोष कुमार दुबे ने कहा कि बारिश के मौसम में जेई, स्क्रब टाइफस, लैप्टोस्पायरोसिस के बैक्टीरिया और वायरस सक्रिय होते हैं। इस मौसम में घर में चूहा, छुछूंदर आदि को आने से रोकना होगा। इसके अलावा पालतू कुत्ते और बिल्ली की साफ-सफाई का ध्यान रखना होगा। इन जानवरों से स्क्रब टाइफस और लैप्टस्पायरोसिस का खतरा सबसे अधिक है। जेई के मरीजों की छह जांच अनिवार्य कर दी गई हैं।

 

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