सफल समाचार
सुनीता राय
हम अपनी विरासत पर नाज तो करते हैं, लेकिन इसके लिए कुर्बानियां देने वालों को अक्सर भुला दिया जाता है। देश की आजादी के लिए शहीद हुए कितने ही सेनानियों का परिवार आज मुफलिसी का जीवन जी रहा है, जिनके कोई पुरसानेहाल नहीं है। वर्ष 1922 में चौरीचौरा की जिस घटना ने ब्रिटिश हुकूमत की चूलें हिला दी थीं, उसके नायकों में शुमार स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गंगा उर्फ गार्गों का परिवार का भी यही हाल है। परिवार मुफलिसी का जीवन जीने को मजबूर है।
गंगा के बेटे दूधनाथ के निधन के बाद बहू तारा देवी को पेंशन मिलने लगा। पिछले वर्ष तारा का भी निधन हो गया और परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। पारिवारिक पेंशन बंद हो गई। शहीद के इकलौते पौत्र उमाशंकर को गैंग्रीन जैसी घातक बीमारी हुई तो एक पैर काटना पड़ गया। उनके बच्चों की पढ़ाई छूट गई। घर का चूल्हा जलाने के लिए उमाशंकर खिलौने बेचने लगे। दोनों बेटे भी उनके व्यवसाय में हाथ बंटाने लगे हैं। उमाशंकर ने सीएम योगी आदित्यनाथ से भी आर्थिक मदद और पेंशन की गुहार लगाई है।
आज देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। लेकिन मुंडेरा बाजार, चौरीचौरा के शहीद दूधनाथ के परिवार के सुख का अमृत सूख चुका है। उनके बेटे उमाशंकर बताते हैं कि चौरीचौरा की घटना में उनके पिता को उम्रकैद की सजा हुई थी। मां तारा देवी ने किसी तरह उनका पालन-पोषण किया। बाद में मुंडेरा बाजार में ही खिलौने की दुकान लगाने लगा। 15 महीने पहले पैर में एक फुंसी हुई, दवा ली और ठीक हो गया। लेकिन कुछ दिन बाद गैंग्रीन हो गया। फिर एक पैर काट दिया गया।
उन्होंने बताया कि कुछ दिन बाद ही मां तारा देवी का निधन हो गया। घर का खर्च चलना मुश्किल हो गया। दो बेटे और दो बेटियां हैं। कक्षा 10 वीं की पढ़ाई के बाद दोनों बेटों को पढ़ाने के पैसे नहीं थे। उन्हें अपने साथ लगा दिया। अब वे श्रृंगार की छोटी दुकान खोले हैं। बेटियां उनसे छोटी हैं। खेत-बारी है नहीं तो बेटियों के हाथ कैसे पीले करूंगा, यह भी चिंता खाए जा रही है।
51 साल बाद परिवार को मिली पेंशन