वर्ष 1922 में चौरीचौरा की जिस घटना ने ब्रिटिश हुकूमत की चूलें हिला दी थीं, उसके नायकों में शुमार स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गंगा उर्फ गार्गों का परिवार गरीबी में जी रहा है

उत्तर प्रदेश गोरखपुर

सफल समाचार 
सुनीता राय 

हम अपनी विरासत पर नाज तो करते हैं, लेकिन इसके लिए कुर्बानियां देने वालों को अक्सर भुला दिया जाता है। देश की आजादी के लिए शहीद हुए कितने ही सेनानियों का परिवार आज मुफलिसी का जीवन जी रहा है, जिनके कोई पुरसानेहाल नहीं है। वर्ष 1922 में चौरीचौरा की जिस घटना ने ब्रिटिश हुकूमत की चूलें हिला दी थीं, उसके नायकों में शुमार स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गंगा उर्फ गार्गों का परिवार का भी यही हाल है। परिवार मुफलिसी का जीवन जीने को मजबूर है।

गंगा के बेटे दूधनाथ के निधन के बाद बहू तारा देवी को पेंशन मिलने लगा। पिछले वर्ष तारा का भी निधन हो गया और परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। पारिवारिक पेंशन बंद हो गई। शहीद के इकलौते पौत्र उमाशंकर को गैंग्रीन जैसी घातक बीमारी हुई तो एक पैर काटना पड़ गया। उनके बच्चों की पढ़ाई छूट गई। घर का चूल्हा जलाने के लिए उमाशंकर खिलौने बेचने लगे। दोनों बेटे भी उनके व्यवसाय में हाथ बंटाने लगे हैं। उमाशंकर ने सीएम योगी आदित्यनाथ से भी आर्थिक मदद और पेंशन की गुहार लगाई है।

आज देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। लेकिन मुंडेरा बाजार, चौरीचौरा के शहीद दूधनाथ के परिवार के सुख का अमृत सूख चुका है। उनके बेटे उमाशंकर बताते हैं कि चौरीचौरा की घटना में उनके पिता को उम्रकैद की सजा हुई थी। मां तारा देवी ने किसी तरह उनका पालन-पोषण किया। बाद में मुंडेरा बाजार में ही खिलौने की दुकान लगाने लगा। 15 महीने पहले पैर में एक फुंसी हुई, दवा ली और ठीक हो गया। लेकिन कुछ दिन बाद गैंग्रीन हो गया। फिर एक पैर काट दिया गया।

उन्होंने बताया कि कुछ दिन बाद ही मां तारा देवी का निधन हो गया। घर का खर्च चलना मुश्किल हो गया। दो बेटे और दो बेटियां हैं। कक्षा 10 वीं की पढ़ाई के बाद दोनों बेटों को पढ़ाने के पैसे नहीं थे। उन्हें अपने साथ लगा दिया। अब वे श्रृंगार की छोटी दुकान खोले हैं। बेटियां उनसे छोटी हैं। खेत-बारी है नहीं तो बेटियों के हाथ कैसे पीले करूंगा, यह भी चिंता खाए जा रही है।
51 साल बाद परिवार को मिली पेंशन

चौरीचौरा की घटना के शहीदों के परिजनों को आजादी के 51 साल बाद पेंशन मिलनी शुरू हुई। चार फरवरी 1994 को चौरीचौरा के 96 शहीदों के आश्रितों को पेंशन देने का आदेश जारी हुआ। 228 शहीदों पर मुकदमा दर्ज हुआ था। लेकिन 96 शहीदों के परिवार ही पेंशन के हकदार बने। इसके लिए भी लगातार कोशिशें होती रहीं।

03 जून 1981 को तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी और सीएम यूपी वीपी सिंह को कामरेड गुरुप्रसाद त्रिपाठी ने आंदोलनकारियों को पेंशन दिलाने के लिए पत्र लिखा। 30 अक्तूबर 1981 को कामरेड गुरु प्रसाद ने तत्कालीन गृह मंत्री ज्ञानी जैल सिंह को इस संबंध में एक पत्र लिखा। 06 फरवरी 1982 को चौरीचौरा स्मारक का शिलान्यास हुआ। 11 साल बाद 19 जुलाई 1993 को इसका उद्घाटन तत्कालीन पीएम नरसिंहा राव ने किया और पेंशन देने की शुरुआत की। चार जनवरी 1994 को पेंशन की पहली किस्त मिली।

आक्रोश में जला दिया था थाना…24 सिपाही जल कर मर गए थे

13 जनवरी 1922 को डुमरी खुर्द में मंडल स्थापना के बाद दूसरी मीटिंग चार फरवरी को होनी थी। इस बीच भगवान अहीर को थानेदार गुप्तेश्वर सिंह ने पीट दिया, इससे स्वयंसेवक आहत थे। चार फरवरी को दोपहर एक बजे किसानों के नेतृत्व में दो हजार से ज्यादा गांव वालों ने थाने को घेर लिया। उन्होंने थाना भवन में आग लगा दी, जिसमें 24 सिपाही जल कर मर गए। इसके बाद ब्रिटिश हुकूमत ने जबरदस्त दमन और उत्पीड़न शुरू किया और एक-एक करके सभी विद्रोही गिरफ्तार हुए।

1000 आंदोलनकारी पकड़े गए थे। 228 आंदोलनकारियों पर मुकदमा चला और 172 को सेशन कोर्ट से फांसी की सजा हुई। महामना मदन मोहन मालवीय ने हाईकोर्ट में पैरवी की, जिसके बाद 153 की फांसी की सजा माफ हुई।

गोरखपुर जिले में 63 परिवारों को मिल रही पेंशन

गोरखपुर जिले में कुल 63 शहीदों के परिवार को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पेंशन दी जा रही है। यह आंकड़ा जुलाई 2023 का है। बीते वर्ष यह संख्या 74 थी, जिसमें 11 पेंशन पाने वालों का निधन हो गया। अब इनके परिवार को पेंशन देना बंद कर दिया गया है। नियमानुसार यह पेंशन पति, पत्नी, अविवाहित और बेरोजगार बेटियां (अधिकतम तीन) और मृतक स्वतंत्रता सेनानियों की माता या पिता इस योजना के तहत आश्रित परिवार पेंशन के लिए पात्र हैं।

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