गिरफ्तारी के बाद खुला खेल :- पनी को रजिस्ट्रेशन करने वाली कंपनी बताया गया था और उसकी आड़ में ठगी करने के लिए कॉल सेंटर चलाया जा रहा था

उत्तर प्रदेश गोरखपुर

सफल समाचार 
सुनीता राय 

फर्जी कंपनी को संचालित करने वाला आकाश दूसरी कक्षा तक पढ़ा है। जबकि मास्टरमाइंड दत्ता आठवीं पास है। इन दोनों ने मिलकर कोलकाता में भी कंपनी चलाया था। वहां पर इन्हें रुपये ज्यादा खर्च करने पड़ते थे, फिर गोरखपुर में आठ हजार रुपये मेंं अंग्रेजी के जानकार युवा मिलने की जानकारी होने पर यहां चले आए।

फर्जी कॉल सेंटर खोलकर यूके के वरिष्ठ नागरिकों से जालसाजी के मामले में एसएसपी डॉ गौरव ग्रोवर ने बताया कि जुबिलेट नाम से कंपनी का फर्जी रजिस्ट्रेशन कोलकाता में कराया गया था। कंपनी को रजिस्ट्रेशन करने वाली कंपनी बताया गया था और उसकी आड़ में ठगी करने के लिए कॉल सेंटर चलाया जा रहा था।

22 युवाओं को कंपनी में कॉल करने के लिए रखा गया था। इंटरनेट कॉल के जरिए ऑटो डायल किया जाता था। इनके पास यूके के लोगों के नंबर थे। फिर कॉल सेंटर का कर्मचारी फोन पर इंटरनेट स्लो होने की बात कहता था। उसे यूके के नामी कंपनी, जोकि वास्तव में ही इंटरनेट स्पीड की जांच करती है, उसका हवाला दिया जाता था। अगले के राजी होते ही कर्मचारी को कॉल सुपरवाइजर को ट्रांसफर कर देना था।

इसके बाद कर्मचारी को हेडफोन निकाल देना होता था, ताकि वह बात न सुन सके, इसके लिए निगरानी भी की जाती थी। फिर ठग सुपरवाइजर चेक करने के लिए लिंक का हवाला देता था, जिसमें नीचे एक लिंक दिखाई देता था, जो खाता हैक होने की जानकारी देता था। इसी दौरान एक अगली टीम खुद को यूके की नेशनल क्राइम एजेंसी बनकर कॉल करती थी और कहती थी, आपका खाता हैक हो गया। नीचे लिंक नजर आने की वजह से बातों पर यकीन हो जाता था।

फिर खुद को क्राइम एजेंसी का बताने वाला शख्स अपना एकाउंट नंबर देता था और कहता था तीन बार आपके खाते से रुपयों का ट्रांसजेक्शन किया गया है। एक बार तत्काल दिए गए खाते में रुपये भेजें, ताकि आरोपी को लाइव पकड़ा जा सके। फिर लंदन में बैठे अपने साथियों के खाते में पाउंड मंगवा लेते थे। इस तरह से यह लोग तीन करोड़ रुपये की जालसाजी कर चुके हैं।

 इनकी हुई गिरफ्तारी
पश्चिम बंगाल के कोलकाता के नरेंद्रपुर थाना क्षेत्र के अर्जुन मुकुंदरपुर निवासी अनिक दत्ता, मऊ के मधुबन थाना क्षेत्र के सुल्तानपुर बारहगांवा निवासी आकाश गुप्ता, कोलकाता के गार्डन रोड निवासी आशीष पांडेय, झारखंड के रांची निवासी कादिर अली, रांची के सुखदेव नगर निवासी धीरज कुमार, झारखंड के गोड्डा लालमटिया निवासी इकरामुल अंसारी, पटना, बिहार के राजीव नगर निवासी राहुल कुमार, गुलरिहा के भटहट गोरखी टोला निवासी राजन को गिरफ्तार किया गया है।

अनिक दत्ता मास्टरमाइंड है। गिरोह में शामिल आदित्य मिश्रा, विनोद, जुनैद, अश्वनी वांछित हैं। इनकी तलाश में पुलिस टीम लगी है। आरोपियों के पास से एक माॅनीटर, पांच सीपीयू, एक सर्वर सीपीयू, एक ब्रांडबैंड, एक फिंगर प्रिंट डिवाइस, टेलीफोन, कंपनी की आईडी कार्ड, विदेशियों से बात करने वाली स्क्रीप्ट चार प्रकार की 23 पन्नों की, 17 मोबाइल फोन बरामद किए गए हैं।

इनके जिम्मे था यह काम, ऐसे करते थे जालसाजी

  • अनिल दत्ता, आकाश गुप्ता, आदित्य मिश्रा डायरेक्टर थे। धीरज कुमार, राहुल, राजन, इकरामुल सुपरवाइजर थे। कादिर अली, आशीष पांडेय सीनियर मैनेजर बन बैठे थे।
  • कर्मचारी कॉल करते थे, उन्हें एक अंग्रेजी में लिखी स्कि्प्ट दी जाती थी, जिसकी मदद से वह बातचीत करते थे।
  • जैसे ही ब्रिटिश नागरिक इंटरनेट स्पीड चेक कराने को राजी हो जाता, उसकी कॉली सुपरवाइजर को ट्रांसफर कर दी जाती थी।
  • ब्रिटिश लोगों को व्हाट्स इज माई आईपी साइट्स के माध्यम से इंटरनेट में रुकावट को सही करने के लिए कॉल कादिर व आशीष को ट्रांसफर की जाती थी।
  • कादिर, आशीष के पास कॉल ट्रांसफर होने के बाद नेशनल क्राइम एजेंसी या एंटी फ्रॉड स्क्वाॅड के अधिकारी बनकर बात की जाती थी।
  • नागरिक से उनके एकाउंट से ट्रांसजेक्शन होने की बात कहते हुए सही करने के लिए डमी बैंक खातों में पैसे ट्रांसफर करवा लेते थे।
  • डमी खाते लंदन, यूनाइटेड किंगडम में रहने वाले जुनैद व अश्वनी की ओर से उपलब्ध कराए जाते थे।
  • डमी बैंक खाते में रुपये आने के बाद वेस्टन यूनियन फोरेक्स सेंटर कोलकाता के माध्यम से भारतीय रुपयों में बदल कर कंपनी को पहुंचा दिया जाता था।
  • इन रुपयों से सैलरी बांटी जाती थी और शेष रकम को तीनों कथित डायरेक्टर आपस में बांट लेते थे।
दूसरी पास है आकाश, आठवीं दत्ता
इस फर्जी कंपनी को संचालित करने वाला आकाश दूसरी कक्षा तक पढ़ा है। जबकि मास्टरमाइंड दत्ता आठवीं पास है। इन दोनों ने मिलकर कोलकाता में भी कंपनी चलाया था। वहां पर इन्हें रुपये ज्यादा खर्च करने पड़ते थे, फिर गोरखपुर में आठ हजार रुपये मेंं अंग्रेजी के जानकार युवा मिलने की जानकारी होने पर यहां चले आए।

ऐसे पकड़ा गया मामला, चार महीने लगे
वहां पर काम करने वाले सभी कर्मचारी यह जानते थे कि वह कॉल सेंटर में काम कर रहे हैं। वहां जाते ही मोबाइल फोन जमा करा लिया जाता था। इस वजह से एक युवक को शक हो गया और वह सीधे एसएसपी और एसपी सिटी के पास पहुंचकर इसकी शिकायत की। इसके बाद पूरे मामले की गोपनीय जांच शुरू की गई। चार महीने पुलिस को इस जालसाजी की घटना को खोलने में लग गया।
 

डेविड मारटीन बनकर करते थे कॉल, बातचीत ऐसी कोई शक न हो

कॉलर डेविट मारटीन बनकर कॉल करते थे। इस तरह से फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते थे कि किसी को शक न होने पाए कि कोई भारतीय बोल रहा है। हालांकि, दूसरे स्तर पर बात करने वाले की बातचीत में हिंदी भी आ जाती थी, लेकिन उसी समय एजेंसी का कॉल चले जाने और फ्रॉड के बारे में जानकारी दी जाती थी, जिस वजह से विदेशी नागरिक फंस जाते थे।

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