कोरोना महामारी ने पति को छीना, उसके बाद भी विपरीत परिस्थितियों का सामना करती हुई निरंतर आगे बढ़ती रहीं

उत्तर प्रदेश कुशीनगर

सफल समाचार 
विश्वजीत राय 

विपरीत परिस्थितियों को हराकर अपराजिता बनीं पुष्पा सिंह

इंदरपुर। कप्तानगंज क्षेत्र के इंदरपुर की निवासी पुष्पा सिंह ने विपरीत परिस्थितियों में भी हाैसला नहीं छोड़ा। कोरोना महामारी ने पति को छीना, उसके बाद भी विपरीत परिस्थितियों का सामना करती हुई निरंतर आगे बढ़ती रहीं। पति की तरफ से खोले गए हेचरी फार्म को वृहद स्तर पर विकसित किया। इस हेचरी व्यवसाय को उन्होंने अपनी मेहनत, लगन और जुनून से ऊंचाई तक पहुंचाया। यहां तैयार किए गए मछलियों के बीज खरीदने के लिए बिहार, नेपाल, राजस्थान, मध्य प्रदेश, कानपुर, उन्नाव, लखनऊ, मऊ और बहराइच से व्यापारी आते हैं। यहां विभिन्न प्रजातियों की मछलियों का 1,800 से 2,000 प्रति लीटर की दर से स्पान बिकता है। उन्होंने अपनी आर्थिक स्थिति तो सुधारी ही, इस हेचरी फार्म की बदौलत कई लोगों को रोजगार मुहैया करा रही हैं।

पुष्पा सिंह बताती हैं कि उनके पति सुरेंद्र सिंह की कोरोना महामारी की चपेट में आने से मौत हो गई। फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं छोड़ी। गृहिणी होने के बावजूद अपने पति की तरफ से वर्ष 1988 में खोले गए हेचरी फार्म को वृहद स्तर पर विकसित किया। इसके लिए व्यवसाय की बारीकियां सीखीं। आज की तारीख में इस हेचरी फार्म की क्षेत्र में अलग पहचान है। यह हेचरी फार्म क्षेत्र में मत्स्य बीजों के उत्पादन में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।

विभिन्न प्रजातियों की मछलियों का होता है उत्पादन
पुष्पा सिंह बताती हैं कि इस हेचरी फार्म में मत्स्य बीजों का उत्पादन तो किया ही जाता है। इसके सटे सटे तालाब में बड़ी मछलियां भी पाली जाती हैं। यहां से मत्स्य बीजों की खरीद के लिए पड़ोसी मुल्क नेपाल के अलावा बगल के प्रांत बिहार, पश्चिम बंगाल के अलावा कानपुर, उन्नाव, लखनऊ, मऊ, बहराइच समेत स्थानीय व्यापारी व मत्स्य पालक भी ले जाते हैं। यहां रोहू, नैनी, सिल्वर, ग्रास और चाइना का मत्स्य बीज इसी अगस्त के महीने में सबसे ज्यादा बिकता है।

पति ने रखी थी हेचरी फार्म की नींव
इसके संरक्षक सुरेंद्र सिंह एवं उनके मित्र ब्रह्मा सिंह ने वर्ष 1988 में मत्स्य कारोबार शुरू किया था। उन्होंने कोलकाता के हेचरी व्यवसायी नीलू घोष से इसकी बारीकियां सीखीं थीं। सुरेंद्र सिंह ने इंदरपुर और ब्रह्मा सिंह ने बारी में यह व्यवसाय शुरू किया। बताया जाता है कि ब्रह्मा सिंह ने व्यवसाय तो बदल लिया, लेकिन सुरेंद्र सिंह ने उसे जारी रखा। उसके पूर्व क्षेत्र में कोई मत्स्य विकास हेचरी नहीं थी। सुरेंद्र सिंह के निधन के बाद उनकी पत्नी पुष्पा सिंह ने इस व्यवसाय से जुड़े लोगाें से मार्गदर्शन प्राप्त कर मत्स्य विकास का कार्य शुरू किया। अपनी लगन और परिश्रम के बल पर अपनी अलग पहचान बना ली।

ऐसे विकसित की जाती हैं मछलियां
इंदरपुर स्थित इस हेचरी फार्म के तालाबों में पहले से ग्रास, सिल्वर, नैनी, रोहू समेत अन्य प्रजातियों की बड़ी से बड़ी मछलियों को पालकर विकसित किया जाता है। इसके बाद मार्च के महीने में मछलियां परिपक्व होती हैं। उसके बाद अंडे देने में सक्षम होती हैं। इनकी पहचान कर तालाब में जाल डाल कर पकड़ लिया जाता है। उसके बाद हेचिंग पूल में ले जाया जाता है, जहां नर व मादा मछलियों की पहचान की जाती है। मादा का कंचट लसेदार होता है। निषेचन क्रिया के लिए नर एवं मादा मछलियों को अलग-अलग करके सर्वप्रथम हारमोंस बढ़ाने का इंजेक्शन वजनानुसार लगाया जाता है। मादा मछली को इंजेक्शन दो चरणों में एवं नर को एक चरण में लगाने के बाद हैचिंग पूल में एक मादा के साथ दो नर रखे जाते हैं। साथ ही कृत्रिम तरीके से बरसात का संसाधन चालू कर निषेचन की क्रिया रात में संपन्न कराई जाती है। इसके बाद मादा मछली कलेक्शन पूल में ले जाई जाती हैं, जहां वे दस घंटे में अंडे देना प्रारंभ कर देती हैं। एक मादा मछली लगभग एक लाख अंडे दे सकती है। अंडे कलेक्शन पूल से जार में भेजे जाते हैं, जहां वे 72 घंटे में स्पाॅन जीरा का रूप लेते हैं। इसके बाद नर्सरी तैयार कर उसमें स्पाॅन को डाल दिया जाता है। नर्सरी में स्पाॅन डालते समय कोई अन्य जीव मौजूद न हो, इसकी विशेष निगरानी की जाती है। नर्सरी में प्रति एकड़ सौ ग्राम मेटासीड एवं दस लीटर मिट्टी का तेल डाला जाता है। प्रति एकड़ 20 किलोग्राम खली एक दिन के अंतर पर डाली जाती है। यह क्रम पूरे महीने चलता है। विकसित होकर एक से दो इंच के बच्चे हो जाते हैं, तो उन्हें ले जाकर बड़े तालाब में डालते हैं। वह मछलियां बड़ी व खाने योग्य हो जाने पर बाजार में अच्छी कीमतों में बेची जाती हैं। इसके अलावा बीज 1,800 से 2,000 रुपये प्रति लीटर बिकता है।

कोट
वर्ष 2021 के कोरोना महामारी के दौरान पति की आकस्मिक मौत हो गई। उसके बाद इस व्यवसाय को मैंने स्वयं संभाला। कड़ी मेहनत व लगन से इसे आगे बढ़ाया। शुरुआत में काफी चुनौतियां सामने आईं। काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, लेकिन उनका हिम्मतपूर्वक सामना कर इसे अग्रणी कतार खड़ा कर दिया।

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