बीजेपी के लिए बढ़ी मुश्किलें केंद्र सरकार पर जातीय जनगणना कराने का दबाव भी बढ़ सकता है

उत्तर प्रदेश लखनऊ

सफल समाचार 
मनमोहन राय 

 

केंद्र सरकार पर जातीय जनगणना कराने का दबाव भी बढ़ सकता है। साथ ही अति पिछड़ों व अति दलितों को आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर गरमा सकता है ।

बिहार के जातीय जनगणना के आंकड़ों से लोकसभा चुनाव के मद्देनजर प्रदेश के सियासी समीकरणों में भले ही बड़े उलटफेर की संभावना न हो लेकिन इसने भाजपा की चुनौती तो बढ़ा ही दी है। आंकड़ों के सार्वजनिक होने के बाद जिस तरह विपक्ष के अलावा भाजपा के सहयोगी अपना दल (एस), निषाद पार्टी और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की प्रतिक्रिया आई है, उससे तो यही संकेत मिल रहे हैं । हालांकि, संगठन से लेकर सरकार तक में भाजपा ने पहले से ही पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों को अच्छी संख्या में भागीदारी दे रखी है। फिर भी नए संदर्भों को देखते हुए भाजपा नेतृत्व को पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों की सामान्य वर्ग के साथ लामबंदी को अधिक मजबूत करने के लिए कुछ न कुछ उपाय तो करने ही पड़ेंगे। केंद्र सरकार पर जातीय जनगणना कराने का दबाव भी बढ़ सकता है। साथ ही अति पिछड़ों व अति दलितों को आरक्षण का मुद्दा एक बार फिर गरमा सकता है ।

सपा मुखिया अखिलेश यादव और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने प्रदेश में भी जातीय जनगणना की मांग उठाकर अपने इरादे साफ कर दिए हैं। इसे हवा देकर भाजपा के साथ अति पिछड़ी और अति दलित जातियों की गोलबंदी को तोड़ने की कोशिश करेंगे। भाजपा के सहयोगी दल भी अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए दबाव बढ़ाने की कोशिश करेंगे।

पक्ष व विपक्ष दोनों के लिए चुनौती
लखनऊ विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्राध्यापक अमित कुशवाहा तर्क देते हैं कि प्रदेश में पिछड़ी जातियों के लोग जानते हैं कि जातीय जनगणना कराने की मांग करने वालों की सरकार में आरक्षण का लाभ कुछ विशेष जातियों तक ही सीमित रहता था। इनमें किसी ने भी एक-दो विशेष जातियों को छोड़कर अन्य पिछड़े वर्गों को अपनी सरकार में सम्मानजनक भागीदारी तक नहीं दी । ऐसे में अति पिछड़े सत्ता और संगठन में सम्मानजनक भागीदारी देने वाली भाजपा को कैसे छोड़ देंगे। भाजपा का सबसे ज्यादा फोकस अतिपिछडी जातियों पर है। नरेन्द्र मोदी के रूप में अति पिछड़े समाज से आने वाले व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाया। प्रदेश में अति पिछड़ी जाति से आने वाले केशव प्रसाद मौर्य उप मुख्यमंत्री हैं तो कुर्मी वर्ग से आने वाले स्वतंत्र देव भी महत्वपूर्ण भूमिका में हैं । प्रजापति , कोरी, कश्यप, लोध सहित ज्यादातर पिछड़ी जातियों को हिस्सेदारी दी गई है । बावजूद इसके अब उसे जातीय जनगणना पर कोई न कोई फैसला लेना पड़ सकता है।

जातियों की चौसर पर होगी लड़ाई
यह सही है कि भाजपा 2013 से गैर यादव पिछड़ों और गैर जाटव को साधने के मिशन पर काम कर रही है । बावजूद इसके आने वाले दिनों में जातीय जनगणना का मुद्दा गरमाएगा। सिर्फ राजनीतिक दल ही नहीं तमाम सामाजिक संगठन भी इस जनगणना पर जोर देते हुए भाजपा से सवाल पूछ सकते हैं। आबादी के लिहाज से सियासत में भागीदारी की बात भी उठेगी । सरकारी नौकरियों में न्यायोचित और जाति के लिहाज से समानुपातिक हिस्सेदारी की मांग भी उठ सकती है। जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक से लेकर जिलों के अन्य पदों पर प्रतिनिधित्व का मामला भी उठ सकता है । वरिष्ठ पत्रकार वीरेन्द्र भट्ट कहते हैं कि इस मुद्दे को लेकर विपक्ष के हमले भाजपा को परेशान कर सकते हैं, लेकिन कोई बड़ा बदलाव कर नहीं कर पाएंगे । कारण, चुनाव के दौरान भाजपा की तरफ से ‘मोदी बनाम कौन ‘ मुद्दा उठाया जाएगा। जिसकी काट फिलहाल इस समय विपक्ष के पास नहीं दिखती। कारण, मोदी खुद अति पिछड़े वर्ग से आते हैं ।

गरीब कल्याण योजनाएं भाजपा का सहारा
ध्यान रखने वाली बात यह भी है कि भाजपा ने पिछले लगभग साढ़े नौ साल के शासन में प्रदेश में लाभार्थी वर्ग नाम से एक बड़ा मतदाता वर्ग भी तैयार कर लिया है। देखना होगा कि जातीय जनगणना के आंकड़ों के सहारे विपक्ष इस वर्ग में कैसे सेंध लगाता है। राजनीतिक विश्लेषक प्रो. ए.पी. तिवारी कहते हैं कि भाजपा सरकारों ने गरीब कल्याण योजनाओं, मुफ्त राशन, मुफ्त बिजली कनेक्शन, मुफ्त रसोई गैस कनेक्शन, पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन, नीट में पिछड़ों को आरक्षण जैसे तमाम फैसलों से सरकार ने करोड़ों शोषित व वंचित परिवारों से सीधे संवाद व संपर्क स्थापित कर लिया है । विपक्ष के जातीय जनगणना कराने के दबाव का जवाब भाजपा इन योजनाओं से लाभान्वित होने वाले लोगों से देने की कोशिश करेगी।

उठ सकता ही कोटा में कोटा का मुद्दा
मोस्ट बैकवर्ड क्लासेज ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. राम सुमिरन विश्वकर्मा ने बिहार की रिपोर्ट को भ्रामक और तथ्यहीन बताते हुए मांग की है कि प्रधानमंत्री मोदी अति पिछड़ी जातियों को उनका अधिकार देने के लिए आरक्षण कोटे का आबादी के अनुपात में बंटवारा करने के लिए तत्काल निर्णय लें । साथ ही बिहार की इस जातीय जनगणना के आंकड़ों से लोहार जैसी जातियों के गायब होने का संज्ञान लेते हुए राष्ट्रीय स्तर पर जातीय जनगणना कराने की घोषणा करें। स्पष्ट है कि जातीय जनगणना का मुद्दा भले ही भाजपा के लिए तत्काल कोई बड़ा संकट न हो लेकिन भविष्य के लिए चुनौती जरूर खड़ी हो गई । खासतौर से जातीय जनगणना पर कुछ न कुछ निर्णय लेने के साथ पिछड़ों को साधे रखे रहने के लिए आज नहीं तो आने वाले दिनों में उसे उपाय जरूर तलाशना होगा ।

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