विश्वजीत राय
सफल समाचार
पडरौना। शारदीय नवरात्र के समय जिले में जगह-जगह मां दुर्गा का पंडाल सज रहा है। हर कोई मां दुर्गा की आराधना करने में लगा है। जिले में यह मूर्ति का कारोबार करीब 13 करोड़ रुपये का है। मूर्ति बनाने के लिए उसमें प्रयुक्त होने वाली मिट्टी साधारण नहीं होती है। इसके लिए विशेष मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। मूर्ति कलाकारों की मानें तो गंगा की मिट्टी से ही मां दुर्गा की मूर्ति का चेहरा बनता है।
पडरौना के अलावा कसया, खड्डा, कप्तानगंज, हाटा, सेवरही और तमकुहीराज समेत सभी तहसील मुख्यालय या उसके आस-पास के स्थानों पर चार से पांच जगह मां दुर्गा, भगवान गणेश, कार्तिक, मां लक्ष्मी समेत अन्य देवी देवताओं की मूर्ति बनाने का कार्य होता है।
मूर्ति बनाने का कार्य करने वाले अधिकांश लोग कोलकाता से आते हैं। जहां मूर्ति बनती है, वहां से कोलकाता से आए दस से 12 लोगों का समूह होता है। ये मूर्तिकार जून माह ही जिले में आ जाते हैं। नगर के भटवलिया में मां दुर्गा की मूर्ति बनाने वाले सधन पाल ने बताया कि सभी मूर्तियों का चेहरा गंगा नदी से लाई गई बलुई मिट्टी से बनता है। शरीर का शेष हिस्सा बनाने के लिए जिले की कोहरौटी मिट्टी का प्रयोग किया जाता है।
उन्होंने बताया कि जिले में मूर्ति बनाने के लिए कोलकाता से मूर्तिकार जून माह में ही आ जाते हैं। सबसे पहले गणेश पूजा के लिए भगवान गणेश और विश्वकर्मा पूजा के लिए भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति बनाते हैं। इसके बाद शारदीय नवरात्र के लिए ग्राहकों के मांग के अनुसार मां दुर्गा, भगवान गणेश, कार्तिक, मां लक्ष्मी समेत अन्य देवी देवताओं की मूर्ति बनाई जाती है।
मूर्ति बनाने के लिए आयोजकों से पहले ही एडवांस रुपये ले लिया जाता है। दशहरा के बाद दीपावली पर होनी वाली लक्ष्मी पूजा के लिए भगवान गणेश और मां लक्ष्मी की मूर्ति बनाई जाती है। इसके बाद बसंत पंचमी के लिए मां सरस्वती की मूर्ति बनाकर फरवरी में सभी मूर्तिकार गांव चले जाते हैं।
करीब 13 करोड़ का है जिले में मूर्ति व्यापार
जिले में 1590 स्थानों पर इस बार मां दुर्गा का पांडाल सजा है। इसके आयोजक पांडाल सजाने के लिए टेंट, कुर्सी समेत अन्य सजावटी सामानों पर कम से कम 80,000 से पांच लाख रुपये खर्च करते हैं। इसके अलावा आयोजक मूर्ति खरीदने के लिए 20 हजार से 60 हजार रुपये खर्च करते हैं। इस तरह देखा जाए तो जिले में मूर्ति खरीदने से लेकर पांडाल सजाने तक जिले में हर वर्ष करीब 13 करोड़ रुपये खर्च किए जाते हैं।
मूर्ति बनाने में सबसे अधिक मेहनत और समय चेहरा बनाने में लगाता है। एक मूर्ति का चेहरा तैयार करने से दस से 15 दिन का समय लगता है।
– प्रभाकर बर्मन, मूर्तिकार
मूर्ति बनाने के लिए सबसे पहले पुआल और बांस का सहारा लेकर शरीर का ढांचा तैयार किया जाता है। इसके बाद कोहरौटी मिट्टी से शरीर के अन्य अंग बनाते हैं। सभी मूर्ति का चेहरा बनाने में गंगा नदी से लाई गई बलुई मिट्टी का प्रयोग किया जाता है।
– मेघनाथ छरदार, मूर्तिकार
मूर्ति बनाने के दौरान सावधानी बरती जाती है। सबसे अधिक सावधानी चेहरा बनाने और पेंट से उसे सजाने के दौरान बरतनी पड़ती है। क्योंकि इसमें यदि थोड़ी सी भी चूक हुई तो पूरी मेहनत बेकार हो जाती है। जब मूर्ति पांडाल में जाती है, तो उसे देख बड़ी प्रसन्नता होती है।