200 क्विंटल से अधिक बारुद उगलेगा धुआं, सांस लेना होगा मुश्किल

उत्तर प्रदेश कुशीनगर

विश्वजीत राय
सफल समाचार

पडरौना। प्रदूषण पर नियंत्रण की कोशिशों के बाद भी इस साल दिवाली में 200 क्विंटल से अधिक पटाखे जलाए जाने की संभावना है। इतनी मात्रा में जलाए जाने वाले पटाखों से निकलने वाला जहरीला धुआं शहर की हवा में घुलकर लोगों की सेहत खराब करेगा। आशंकाओं को देखते हुए जानकारों ने ग्रीन पटाखों के प्रयोग पर जोर दे रहे हैं। लोगों से कम पटाखे जलाने की सलाह दे रहे हैं।
शहर में उड़ रही धूल और वाहनों से निकलने वाले धुएं ने पहले ही हवा की गुणवत्ता खराब कर दी है। दिवाली-छठ पर लोग भारी मात्रा में पटाखे जलाएंगे। इससे निकला बारूद का धुआं हवा की शहर की आबोहवा के साथ सेहत भी बिगाड़ेगा। वहीं, घरों से निकले कूड़ा जलाया जा रहा है। जो वायु प्रदूषण बढ़ाने में मददगार होगा। यह धुआं सांस, हृदय और अस्थमा के रोगियों के लिए यह जानलेवा हो जाएगा। बुद्धिजीवियों की सलाह है कि बचाव के लिए हर किसी को समझदारी दिखानी होगी।

77 दुकानों को मिला है लाइसेंस, 2600 किलो
उदित नारायण पीजी कॉलेज परिसर में 52 दुकानदारों को अस्थाई पटाखा की दुकान का लाइसेंस दिया गया है। इसके अलावा जटहां बाजार में आठ, नौरंगिया में चार, कुबेरस्थान में दस, कठकुइयां में दो और जानकीनगर में एक दुकानों को लाइसेंस जारी किया गया है। इन दुकानों पर 20 से 50 किलोग्राम तक पटाखे बिक्री की अनुमति होगी। पडरौना के शहरी इलाके में लगे पटाखा दुकानदारों को अधिकतम 50 किलोग्राम पटाखा बिक्री की अनुमति है । केवल पडरौना में 2600 किलोग्राम पटाखे जलाए जाएंगे। इतनी मात्रा में प्रशासन ने दुकानदारों को पटाखा बेचने की अनुमति दी है। वहीं दो से ढाई गुना पटाखे अवैध रुपये खपाए जाने की आशंका है। हाल ही में पुलिस ने कई स्थानों पर अवैध पटाखा बरामद किया है।

वायुमंडल के साथ अपनी सेहत बचाएं
दिवाली व छठ पर पटाखों की बिक्री हवा की सेहत निश्चित रूप से खराब करेगी। अपनी व वायुमंडल की सेहत सही रखने के लिए पटाखे न जलाएं। डॉक्टर भी लोगों को प्रदूषण से सेहत को नुकसान से बचाव के उपायों के प्रति जागरूक कर रहे हैं। उधर, नगर निगम की ओर से अपील की जा रही है कि कूड़ों को जलाने के स्थान पर उसे एकत्र कर नगर पालिका की गाड़ी को ही दें। ऐसी ही सावधानियों को बरत कर हम प्रदूषण के बढ़ते स्तर को रोक सकते हैं।

निर्माण कार्य ने पहले ही बिगाड़ी हवा
शहर में निर्माण कार्य चल रहे हैं। हवा में नमी होने की वजह से प्रदूषण के कारक (एयर पाल्यूटेंट) की परत बन जा रही है। इससे धुंध (स्मॉग) बन रहा है। बीते आठ दिनों से हवा की गुणवत्ता (एक्यूआई) खराब है। बुधवार को एक्यूआई का स्तर 132 दर्ज किया गया है। यह खतरे के स्तर से अधिक है। ऐसे में दिवाली पर जब पटाखे जलेंगे, तो प्रदूषण अधिक बढ़ जाएगा। इसको लेकर नगर निगम और क्षेत्रीय प्रदूषण कार्यालय के अधिकारियों ने सलाह जारी की है।

जलाने के बजाय नगर पालिका के गाड़ी को दें कूड़े

नगर पालिका की तरफ से साफ-सफाई में सावधानी बरतने की अपील की जा रही है। इसके अलावा घरों की सफाई से निकलने वाला कूड़ा निकालकर लोग जला दे रहे हैं। इससे प्रदूषण फैल रहा है। नगर पालिका अध्यक्ष विनय कुमार जायसवाल ने बताया कि घर से निकलने वाला कूड़ा नगर पालिका की गाड़ी में जरूर डाल दें। उसे घर के आसपास, मोहल्ले में या सड़क किनारे जलाने से परहेज करें।

संवेदनशील बने समाज

दिवाली प्रकाश का पर्व है। प्रकाश को लेकर जितनी विधियां हैं, उनका प्रयोग करें। पटाखे का इस पर्व से कोई जुड़ाव नहीं है। यह तो धनाढ्य वर्ग का प्रदर्शन है। अब इसमें हर वर्ग के लोग शामिल होते जा रहे हैं। बारूद का धुआं वरिष्ठ नागरिक और बीमार लोगों के लिए बहुत खतरनाक है। समाज को इसके लिए संवेदनशील होने की जरूरत है। प्रत्येक व्यक्ति को पटाखा नहीं जलाने का संकल्प लेना चाहिए। ऐसा कर बढ़ते प्रदूषण पर अंकुश लगाया सकता है।

– रमेश कुमार, प्रवक्ता, उदित नारायण इंटर कॉलेज, पडरौना

सर्दियों में वायु प्रदूषण काफी लंबे समय तक बना रहता है। इसलिए गर्मियों की तुलना में अधिक तीव्र दर से सांस के साथ भीतर जाता है। दिवाली के दौरान वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए पटाखों से बचकर हरित पटाखों (ग्रीन पटाखा ) का प्रयोग करें। वायु प्रदूषण को कंट्रोल करने के लिए साल 2018 में ग्रीन पटाखों का कांसेप्ट लाया गया था। इनमें एलुमिनियम, बेरियम, पोटेशियम नाइट्रेट और कार्बन जैसे खतरनाक केमिकल नहीं होते हैं। इको- फ्रेंडली दीयों का प्रयोग से अधिकांश लोग दिवाली में घरों को रोशन करते हैं।

– रवि कुुमार राय, आपदा विशेषज्ञ

दिवाली पर आतिशबाजी का प्रदर्शन होता है। इसमें रोशनी एवं आवाज का अतिरेक पर्यावरण में परिवर्तन उत्पन्न करता है। प्राचीन काल में प्रभाव कम था, क्योंकि बारूद का उपयोग केवल युद्ध के समय होता था। बारूद के द्वारा पर्यावरण में सूक्ष्म कणों की मात्रा ज्यादा हो जाती है और हानिकारक प्रदूषक जैसे की नाइट्रेट्स, सल्फर ऑक्साइड्स, क्लोराइड्स, अमोनिया के जल में घुलनशील आयन उत्पन्न होते है। साथ ही विभिन्न धातु जैसे की मैग्नीशियम, क्रोमियम, कैल्शियम, बेरियम जो की कैंसर जैसे रोगों के कारण होते है ये भी हानिकारक मात्रा में बढ़ जाती है, जल में घुलन शील होने के कारण इनका दीर्घ काल तक प्रभाव बना रहता है। अतिरिक्त मात्रा में ब्लैक कार्बन के उत्सर्जन से अस्थमा जैसे रोग के कारक बनते है।

– डॉ. हरिओम मिश्र, पर्यावरणविद

शोर और प्रदूषण से तनाव होता है, जो ब्लड प्रेशर और शुगर के अलावा हृदय रोगियों के लिए भी हानिकारक है। तेज आवाज के पटाखे बजने पर हृदय रोगियों को जो झटका लगता है। इसलिए शोर को जितना कम किया जा सके, उतना बेहतर होगा।

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