विश्वजीत राय
सफल समाचार
खड्डा। सीमावर्ती इलाके से सटे बिहार में 901 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले जंगल में वाल्मीकि टाइगर रिजर्व बनाया गया है। जंगल में दीमक के टीले (टरमाइट माउंट) बन गए हैं। जो जैव विविधता (इको सिस्टम) को फायदा पहुंचा रहे हैं। विशेषज्ञों की माने तो भले ही दीमक घरों के लिए नुकसानदायक है, लेकिन जंगल के लिए यह वरदान से कम नहीं है।
जंगल में दीमक के टीलों का निर्माण हुआ है। इन टीलों के रास्ते आसानी से पानी जमीन के नीचे तक पहुंचकर पेड़-पौधों को पोषित करता है। इसमें निवास करने वाले दीमक पेड़-पौधों के अवशेष, गिरी हुई पत्तियां आदि खाकर बायोडायवर्सिटी और जैवविविधता की श्रृंखला को बरकरार रखते हैं। दूर से देखने में यह ठोस दिखाई देते हैं, लेकिन यह अत्यंत भुरभुरे व हल्के होते हैं। इसकी बनावट इस प्रकार से होती है कि अंदर रहने वाले दीमकों तक हवा, ऑक्सीजन आसानी से मिलता रहता है। इसे बनाने में लार व पानी का प्रयोग करते हैं। भारी बारिश, आंधी-तूफान में भी यह टिका रहता है। इसकी मिट्टी का प्रयोग धार्मिक अनुष्ठान व यज्ञ आदि में होता है।
क्या कहते हैं निदेशक
बीटीआर के निदेशक नेशामनी बताते हैं कि दीमक अपने टीले को बनाने में अद्भुत कौशल का परिचय देते हैं। यह जैव विविधता बनाए रखने में कारगर होता है। दीमकों से जंगल को कोई नुकसान नहीं होता, बल्कि पर्यावरण को फायदा होता है। इन टीलों का झुकाव हमेशा उत्तर की ओर होता है। सागौन व साखू के जंगलों में अधिकांश पाया जाता है।