प्रतिवर्ष भारत में 50 हजार बच्चे थैलेसिमा पीड़ित होते हैं पैदा: आशीष पाठक

उत्तर प्रदेश सोनभद्र

सफल समाचार गणेश कुमार 

प्रतिवर्ष भारत में 50 हजार बच्चे थैलेसिमा पीड़ित होते हैं पैदा: आशीष पाठक

* थैलेसीमिया ग्रस्त बच्चों को दी गई चिकित्सकीय सलाह

* शिविर में 250 लोगों के लिए गए सलाइवा सैंपल

* उत्सव ट्रस्ट की ओर से किया गया था आयोजन

सोनभद्र। उत्सव ट्रस्ट द्वारा राजीव गाँधी कैंसर संस्थान एवं अनुसंधान केंद्र, ग्लोबली इंटीग्रेटेड फाउंडेशन फॉर थैलेसीमिया (गिफ्ट) एवं ओम प्रकाश पाण्डेय कालेज आफ पैरामेडिकल एंड साईंसेज के संयुक्त तत्वावधान में 12 वर्ष तक की आयु के थैलेसीमिया ग्रस्त बच्चों के बोनमैरो ट्रांसप्लांट हेतु निःशुल्क हाई रेजोल्यूशन एच०एल०ए० टाइपिंग टेस्ट शिविर का आयोजन रविवार को ओम प्रकाश पण्डेय कॉलेज ऑफ पैरामेडिकल एंड साइंसेज, रॉबर्ट्सगंज, सोनभद्र, उ०प्र० के प्रांगण में किया गया। क्योंकि भारत में प्रतिवर्ष 50 हजार बच्चे थैलेसीमिया पीड़ित बच्चे पैदा हो रहे हैं।शिविर में 250 लोगों के सलाइवा के सैंपल लिए गए। थैलेसीमिया ग्रस्त 12 वर्ष के बच्चों के लिए चिकित्सकीय सलाह भी दी गई। इस प्रकार के शिविर का आयोजन जनपद में पहली बार किया गया है। उत्सव ट्रस्ट के ट्रस्टी आशीष पाठक ने बताया कि यह टेस्ट उन थैलेसीमिक बच्चों के लिए बहुत ही जरूरी है जिनके माता-पिता अपने बच्चों का बोनमैरो ट्रांसप्लांट करवाने के इच्छुक हैं। बोनमैरो ट्रांसप्लांट हेतु डोनेर की आवश्यकता होती है। यह टेस्ट थैलेसीमिक बच्चे और उसके बोनमैरो ट्रांसप्लांट डोनर की मैचिंग के लिए जरूरी होता है। इस टेस्ट के बिना थैलेसीमिक बच्चों का बोनमैरो ट्रांसप्लांट होना संभव ही नहीं है।थैलेसीमिक बच्चे के अपने सगे भाई-बहन के साथ एच०एल०ए०/डी०एन०ए०/डोनर स्टेम सेल मैचिंग की संभावना किसी अन्य व्यक्ति से लगभग 25℅ अधिक होती है। थैलेसीमिया एक अनुवांशिक रोग है। यह रोग माता या पिता अथवा दोनों के जींस में गड़बड़ी के कारण होता हैं। रक्त में हीमोग्लोबिन दो तरह के प्रोटीन से बनता है – अल्फा और बीटा ग्लोबिन। इन दोनों में से किसी प्रोटीन के निर्माण वाले जीन्स में गड़बड़ी होने पर थैलेसीमिया होता हैं। इस रोग में शरीर में लाल रक्त कण/रेड ब्लड सेल(आर.बी.सी.) नहीं बन पाते हैं और जो थोड़े बन भी पाते हैं वह केवल अल्प काल तक ही रहते हैं। थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चों को लगभग प्रत्येक माह या 10 से 15 दिन में ही खून चढाने की आवश्यकता पड़ती है और ऐसा न करने पर बच्चा जीवित नहीं रह सकता हैं। भारत में हर वर्ष लगभग 50,000 हजार बच्चे थैलेसीमिया पीड़ित पैदा हो रहें हैं। राजीव गाँधी कैंसर संस्थान एवं अनुसंधान केंद्र से आई डॉ पायल मल्होत्रा ने बताया की बच्चों में कुछ लक्षण जैसे सूखता चेहरा, वजन न बढ़ना, हमेशा बीमार नजर आना, कमजोरी, सांस लेने में तकलीफ आदि देख कर थैलेसीमिया का पता लगाया जा सकता है और आशंका होने पर जाँच करा कर पुष्टि की जा सकती है। गर्भावस्था के दौरान भी जांच से पता लगाया जा सकता है कि बच्चों में थैलेसीमिया है या नहीं। थैलेसीमिया ग्रस्त बच्चों को 10 से 25 दिन के भीतर रक्त चढ़ा कर कुछ वर्षों तक जीवित रखा जा सकता है,परंतु यह उसका ईलाज नहीं है। अधिकतर मामलों में 10 से 25 वर्ष की अवस्था तक ही वह बच्चे जीवित रह पाते हैं। इसलिए यह बेहद जरूरी है कि विवाह से पूर्व थैलेसीमिया की जांच अवश्य करा लेना चाहिए। जिस दिन समझ में थैलेसीमिया रोग के प्रति जागरूकता आ जाएगी तो इस समस्या का समाधान काफी हद तक हो जाएगा। गिफ्ट संस्था के डायरेक्टर मदन चावला ने बताया कि थैलेसीमिया ग्रस्त बच्चों को हमेशा रक्त की आवश्यकता पड़ती है जिसके लिए सभी लोगों से आग्रह है कि अधिक से अधिक संख्या में लोग कम से कम वर्ष में दो बार रक्तदान अवश्य करें, जिससे कि थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को जीवित रखा जा सके। थैलेसीमिया को फैलने से रोकने के उपाय जागरूकता, गर्भावस्था के दौरान थैलेसीमिया संबंधित जांच कराएं, थैलेसीमिया से बचने के लिए शादी से पहले लड़के और लड़की की स्वास्थ्य कुंडली मिलानी चाहिए, जिससे पता चल सके की उनका स्वास्थ्य एक दूसरे के अनुकूल है या नहीं। स्वास्थ्य कुंडली में थैलेसीमिया, एड्स, हेपेटाइटिस बी और सी, आर एच फैक्टर इत्यादि की जांच कराना चाहिए। 

कार्यक्रम में राजीव गांधी कैंसर संस्थान एवं अनुसंधान केंद्र की डॉक्टर पायल मल्होत्रा, गिफ्ट संस्था के अध्यक्ष भारत जी एवं डायरेक्टर मदन चावला जी, बीबीसी से इंदू पण्डेय जी, उत्सव ट्रस्ट के संरक्षक स्वामी अरविंद सिंह, विशेष दुबे जी एवं ट्रस्टी आशीष कुमार पाठक, उत्सव ट्रस्ट रक्तदान विभाग के निदेशक डॉक्टर अजय कुमार शर्मा व सह निदेशक जवाहर लाल जी, उत्सव ट्रस्ट थैलेसीमिया विभाग प्रमुख सीमा पण्डेय आदि उपास्थि रहीं। जिनका स्वागत सम्मान ओम प्रकाश पण्डेय कॉलेज ऑफ पैरामेडिकल एंड साइंसेज के डायरेक्टर ओम प्रकाश पांडे जी एवं प्रिंसिपल राकेश द्विवेदी जी द्वारा किया गया।उक्त शिविर में थैलेसीमिया ग्रस्त बच्चों व उनके साथ आए उनके परिजनों व रिश्तेदारों और शुभचिंतकों के भोजन, नाश्ते, बच्चों के लिए बिस्कुट टॉफी आदि कि व्यवस्था उत्सव ट्रस्ट द्वारा की गयी एवं शिविर में बाहर से आए दूर दराज के लोग जो एक दिन पहले ही शिविर स्थल पर पहुंच गए थे उनके ठहरने की सारी व्यवस्था ओम प्रकाश पण्डेय कॉलेज ऑफ पैरामेडिकल एंड साइंसेज द्वारा की गई थी। शिविर में कुल 250 लोगों के सलाइवा के सैंपल लिए गए तथा थैलेसीमिया ग्रस्त बच्चों की समस्याओं के संबंध में डॉक्टर पायल मल्होत्रा द्वारा चिकित्सकीय सलाह दी गई। शिविर को सफल बनाने में कॉलेज के स्टूडेंट जो की वालंटियर के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे थे कि महत्वपूर्ण भूमिका रही।

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