विश्वजीत राय
सफल समाचार कुशीनगर
ढहाये ढांचे की ईंट लेकर पैदल ही कुशीनगर लौटे थे कारसेवक
पडरौना से 16 साल की उम्र में अयोध्या पहुंचे थे विनय जायसवाल
22 जनवरी को अयोध्या में प्रभु श्रीराम का प्राण प्रतिष्ठा होना है। वर्षों पुराने सपने को साकार होता देख कुशीनगर जिले के कारसेवक भी उस पल का साक्षी बनने के लिए उत्साहित हैं।
हालांकि भीड़ अधिक होने की संभावना जताते हुए जिले के कारसेवकों ने अयोध्या जाने की बजाय यहीं से टेलीविजन पर प्राण प्रतिष्ठा देखने की इच्छा जताई है। कारसेवकों ने बताया कि 6 दिसंबर 1992 को तमाम परेशानियों का सामना करते हुए वह अयोध्या पहुंचे। वहां जाने के बाद भीड़ पर जब लाठीचार्ज किया गया तो वह भी एक पल के सहम गए। लाठीचार्ज के बाद उग्र भीड़ ने मिनटों में ही विवादित ढांचा को तोड़ गिराया। इसके बाद अयोध्या में पुलिस के गोलियों की तड़तड़ाहट गूंज उठी। गोली की आवाज सुनने के बाद भगदड़ मच गई और झाड़ियों में छिपते-छिपाते हजारों रामभक्त अपने हाथों में ढाहे गए विवादित ढांचे की ईंट लेकर पैदल ही अपने घरों को लौटने लगे।
पडरौना। 6 दिसंबर 1992 को पडरौना शहर से भी सैकड़ों की संख्या में रामभक्त अयोध्या पहुंच गए थे। तब शिवसेना से जुड़े रहने वाले व मौजूदा समय के नगरपालिका अध्यक्ष विनय जायसवाल ने बताया कि पडरौना से कारसेवा के लिए शिवसेना, बजरंग दल के कार्यकर्ता अयोध्या जाने की तैयारी कर रहे थे। 5 दिसंबर की शाम रामभक्तों का एक जत्था बस से रवाना हो गया। यह देख मेरे मन में भी रामभक्तों के साथ अयोध्या जाने की इच्छा हुई। विनय ने बताया कि उस वक्त मेरी उम्र 16 साल थी और खुद मेरे पिताजी आंदोलन का हिस्सा रहे। उम्र कम होने के नाते परिजनों ने कई बार मना किया, लेकिन युवा होने के नाते प्रभु श्रीराम के लिए मैंनें खुद की परवाह किए बिना रामभक्तों के साथ दूसरे जत्थे में अयोध्या के लिए रवाना हो गया। वहां पहुंचते ही उग्र भीड़ ने विवादित ढांचे को महज पांच से सात मिनट के भीतर ही तोड़कर गिरा दिया। इसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज और गोली चलाना शुरू कर दिया। यह देख मन में डर का भाव उत्पन्न हुआ। कम उम्र के चलते मैं हर जगह बच गया। जय श्रीराम के नारों के बीच बाला
साहेब ठाकरे समेत तमाम संतों के संकल्प को पूरा करने के लिए रामभक्तों के साथ मैं भी पैदल ही भागा और लिफ्ट लेते हुए घर लौट आया। उन्होंने बताया कि पडरौना से साथ गए सुखल और किशनावती देवी अपने साथ विवादित स्थल के नींव का ईंट लेकर आए, जिसे देखने के लिए उनके घर के सामने मेला जैसा का माहौल बना रहा। उन तमाम रामभक्तों का सपना 22 जनवरी को पूरा होने जा रहा है, जिसका वर्षों से लोग इंतजार कर रहे थे।
खड्डा के कारसेवक ले आये थे ढाहे गए ढांचे की ईंट और गुंबद :
खड्डा। अयोध्या में विवादित ढांचा गिराने के दौरान खड्डा कस्बे के निवासी कारसेवक बजरंग दल के नगर संयोजक लल्लन गुप्ता, अनिल मिश्रा, मुकेश चौरसिया, संदेश मद्धेशिया व नमामी गंगे महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री जितेंद्र पाठक शामिल रहे। इन कारसेवकों का कहना है कि इनके साथ भुजौली निवासी श्रीकांत यादव, खड्डा निवासी छोटक, सोहरौना
निवासी शिवशंकर शर्मा व रमाकांत कुशवाहा भी कार सेवा में गये थे, जो अब इस दुनिया में नहीं है। यह सभी अलग-अलग ट्रेन में बैठकर गोंडा के मनकापुर स्टेशन पर पहुंचे। वहां से कोई जंगल के रास्ते तो कोई नदी के रास्ते कटरा जा पहुंचा। 6 दिसम्बर 1992 को किसी तरह पैदल अयोध्या पुल के नीचे पहुंचे तो पुलिसकर्मियों ने बैरिकेडिंग कर सभी रामभक्तों को आगे जाने से रोक दिया। कुछ रामभक्तों को पकड़ पुलिस बस से उन्हें कहीं ले जा रही थी। तभी एक रामभक्त ने बस चालक को नीचे गिराकर बस खुद चलाने लगा। पुलिस की बैरिकेडिंग तोड़ते हुए अयोध्या में बस लेकर रामभक्त घुसा और इसी बस के पीछे खड्डा के रामभक्त भी हजारों लोगों के साथ विवादित स्थल तक पहुंच गए। वहां पहले से विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल मौजूद थे और पुलिस की लाठीचार्ज में सिंघल समेत दर्जनों कारसेवक घायल हो चुके थे। लल्लन गुप्ता ने बताया कि लाठीचार्ज का दृश्य आज भी उनके आंखों के सामने नाच रहा है। मगर उस वक्त खुद की परवाह करने की बजाय वह आगे बढ़े। हजारों रामभक्तों पर जब पुलिस ने लाठीचार्ज किया तो भीड़ उग्र हो गई। महज कुछ ही मिनटों में रामभक्तों ने विवादित ढांचे को तोड़कर नीचे गिरा दिया। अनिल मिश्रा व मुकेश चौरसिया ने बताया कि ढांचा ढहने के बाद गोली चलने की आवाज सुनाई देने लगी। इससे मौके पर भगदड़ मच गई। रामभक्त इधर से उधर भागने लगे। पुलिस
पुलिस छावनी में पूरी अयोध्या को तब्दील कर दिया गया। झाड़ियों में छिपते-छिपाते सभी रामभक्तों के साथ हम लोग भी फैजाबाद पहुंचे। निशानी के तौर पर खड्डा के इन रामभक्तों ने एक गुंबद व एक नींव की ईंट को अपने साथ लेकर आए। रामभक्तों ने बताया कि गुंबद वाले ईंट पर एक यानि मुगलकाल लिखा था। जबकि नींव वाले ईंट पर विक्रमादित्य लिखा था। जिस रामजन्म भूमि की लड़ाई हम लोग लड़े व संघर्ष किया। उसका फल आज रामजन्म भूमि मन्दिर निर्माण के रूप में मिल रहा है। इसको लेकर हम सभी अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।