दुर्लभ और औषधियों गुणों से युक्त सीता अशोक पौधे अब कुशीनगर में

उत्तर प्रदेश कुशीनगर

विश्वजीत राय

सफल समाचार कुशीनगर

 

दुर्लभ और औषधियों गुड से युक्त सीता अशोक पौधे अब कुशीनगर में

 

कुशीनगर।जिस अशोक वाटिका में वृक्ष के छांव तले बैठ फूलों की महक के बीच मां सीता के शोक का हरण हुआ था, उसी वृक्ष का पौधा अब कुशीनगर में भी उपलब्ध है। सीता अशोक के नाम से आज इस पौधे की पहचान है, जो न सिर्फ दुलर्भ है बल्कि तमाम औषधीय गुणों से भी युक्त है।

 

इसी पौधे से अशोकासव व अशोकारिष्ट नामक औषधीय दवाएं भी तैयार होती है। इस पौधे को उगाने के पीछे जिस तरह से वन विभाग ने कोशिशें की, अब वह कोशिशें रंग ला चुकीं हैं। तकरीबन एक हजार पौधे उगाने के बाद वन विभाग अब इसे लोगों के बीच वितरित कर रहा है ताकि लोग इस पौधे को अपने घरों में लगाएं। सीता अशोक का यह पौधा शो के रूप में लगाए जाने वाले अशोक के पौधे से बेहद ही अलग है।

 

कुशीनगर जिले के हाटा वन रेंज के ढाढ़ा पौधशाला में सीता अशोक का पौधा अपनी मोहक आभा बिखेरने लगा है। दुर्लभ और औषधीय गुणों से युक्त यह पौधा पूरे सौंदर्य के साथ पुष्पित हो रहा है। इसके प्रति लोग भी आकर्षित हो रहे हैं। सीता अशोक के पौधे में नारंगी-लाल रंगों के फूल आते हैं। पर्यावरण के जानकारों की मानें तो यही असली अशोक का पौधा है। इसके पुष्प, पत्तियों, छाल व फलों का उपयोग कई प्रकार की औषधियों के रूप में होता है। अशोक का फूल, छाल और मूल कई प्रकार के औषधियां बनाने में काम आते हैं। विशेषकर महिलाओं से संबंधित व्याधियों में अशोक के औषधीय गुण सर्व स्वीकृत है। अशोकासव, अशोकारिष्ट औषधियां अशोक से ही बनती है। सीता अशोक के इस पौधे को लेकर मान्यता भी है कि लंका में जिस पेड़ के नीचे मां सीता बैठी थी, वह इसी पौधे का पेड़ था। ढाढ़ा पौधशाला में प्रयोग के तौर पर एक हजार पौधे सीता अशोक के लगाए गए थे। यह

प्रयोग जब सफल साबित हुआ तो वन विभाग भी अब इसे बढ़ावा देने के प्रयास में जुट गया है। हाटा वनाधिकारी अमित कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि सीता अशोक शो-में के रूप में लगाए जाने वाले लंबे अशोक से भिन्न है। यह आम के पेड़ जैसा छायादार वृक्ष होता है। इसके पत्ते 8-9 इंच लंबे और दो से ढाई इंच चौड़े होते हैं। इसके पत्ते शुरू में तांबे जैसे रंग के होते हैं। इसीलिए इसे ताम्रपल्लव भी कहते हैं। इसके नारंगी रंग के फूल वसंत ऋतु में आते हैं, जो बाद में लाल रंग के हो जाते हैं। सुनहरी लाल रंग के फूलों वाला होने से इसे हेमपुष्पा भी कहा जाता है। उन्होंने बताया कि पौधशाला पर वर्तमान में लगभग छह सौ पौधे ही सीता अशोक के बचे हैं। अधिक पौधे के लिए बीज रोपित किए जाएंगे। पौधशाला पर पारस पीपल समेत अन्य जड़ी-बूटियों जैसे प्रयोग में लगाये जाने वाला पौधा भी उपलब्ध है।

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