सफल समाचार
बीपीएससी छात्रों के आंदोलन के समर्थन में रोजगार अधिकार अभियान की टीम
• बीपीएससी सचिव लोगों को कर रहे गुमराह
• रोजगार अधिकार अभियान की टीम पटना का करेगी दौरा
• बीपीएससी छात्रों के आंदोलन के समर्थन में जारी की अपील
पटना।रोजगार अधिकार अभियान की राष्ट्रीय संचालन समिति की मीटिंग में बीपीएससी छात्रों के आंदोलन का समर्थन किया गया और अपील जारी की गई है। पटना में आंदोलनरत छात्रों से मिलने अभियान की टीम जायेगी, यह फैसला भी मीटिंग में लिया गया। इस संबंध में रोजगार अधिकार अभियान की अपील को प्रेस को जारी करते हुए अभियान के कोऑर्डिनेटर राजेश सचान ने बताया कि बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन (बीपीएससी) की 70 वीं प्रारंभिक परीक्षा में लगे गंभीर आरोपों को लेकर जारी आंदोलन में बीपीएससी सचिव सत्य प्रकाश शर्मा के न्यूज चैनलों को दिए गए इंटरव्यू में जो बातें कही गई हैं वह पूर्णतया भ्रामक और जनता को गुमराह करने वाली हैं।हम तथ्यों की रोशनी में देखें तो बीपीएससी सचिव द्वारा पटना के बापू भवन में आयोजित परीक्षा को पुन: करवाने की बात कहते हुए जो स्केलिंग की बात कही गई है वह और कुछ नहीं दरअसल नॉर्मलाइजेशन की ही एक प्रक्रिया है। जिसका प्रबल विरोध इस परीक्षा के शुरुआत से ही छात्र कर रहे हैं।दरअसल 13 दिसंबर 2024 को प्रस्तावित परीक्षा के पहले बीपीएससी द्वारा जिलाधिकारियों को भेजा गया पत्र सोशल मीडिया में वायरल हुआ जिसमें तीन अलग-अलग सेट में पेपर का जिक्र किया गया था। छात्रों ने आरोप लगाया कि जब अलग-अलग सेट तैयार किए गए हैं तब नार्मालाईजेशन करना पड़ेगा। इसे लेकर छात्रों ने 6 दिसम्बर को आंदोलन किया। आंदोलन के बाद बीपीएससी द्वारा विज्ञप्ति जारी कर स्पष्टीकरण दिया गया कि एक सेट में पेपर है यानी सिर्फ सीरीज अलग-अलग रहेगी और ऐसे में नार्मालाईजेशन का सवाल ही नहीं उठता।वास्तव में जिस नार्मालाईजेशन पर पूरा विवाद है वह सरल भाषा में कहें तो अगर किसी परीक्षा को कई शिफ्टों में कराया जाता है और उसके लिए अलग-अलग सेट में पेपर तैयार किया जायेगा तो हर शिफ्ट के पेपर का स्तर भी भिन्न होगा। हर शिफ्ट के छात्रों के प्राप्त अंकों के औसत आदि के आधार पर उन्हें प्राप्त वास्तविक अंकों में बदलाव किया जाता है। इस नार्मालाईजेशन के लिए जो सांख्यिकी पद्धति अपनाई जाती है उसे किसी भी आयोग द्वारा सार्वजनिक नहीं किया जाता है। ऐसे में इसके लिए तय फार्मूला को सार्वजनिक करने से इंकार करना ही गहरा संदेह पैदा करता है। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग और रेलवे रिक्रूटमेंट बोर्ड की परीक्षाओं में नार्मालाईजेशन में अनियमितता के तमाम गंभीर आरोप लगे हैं। इस नार्मालाईजेशन से पैदा हो रहे संदेह को दूर करने के लिए पूरी परीक्षा को पारदर्शी बनाने पर बीपीएससी सचिव मौन धारण किए हुए हैं।इंटरव्यू में बीपीएससी सचिव का यह कहना कि परीक्षा प्रणाली का पूरा सिस्टम काम करता है और बापू परीक्षा केंद्र को छोड़कर कहीं से भी डीएम अथवा किसी स्त्रोत से गड़बड़ी की कोई रिपोर्ट आयोग को प्राप्त नहीं हुई है। क्या वास्तव में सिस्टम इतना बढ़िया काम करता है कि हर छोटी-बड़ी गड़बड़ी की रिपोर्ट की जाती है? क्या यह सच्चाई नहीं है कि ऐसे मामलों को संज्ञान में तभी लिया जाता है तब कोई बड़ा जनदबाव बनता है। अगर बापू परीक्षा केंद्र में छात्रों ने हंगामा नहीं किया होता और डीएम द्वारा एक छात्र को थप्पड़ मारना बड़ा मुद्दा नहीं बनता तो क्या इतनी आसानी से परीक्षा रद्द की गई होती ? इस संबंध में अनगिनत उदाहरण है।हाल ही का सटीक उदाहरण, उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग का आंदोलन है। जिसमें लोक सेवा आयोग व सरकार एक दिन में परीक्षा कराने को तैयार नहीं थे। लेकिन छात्रों के जबरदस्त आंदोलन के बाद पीसीएस प्रारंभिक परीक्षा एक शिफ्ट में आयोजित कराई गई।बीपीएससी सचिव के बेहतर परीक्षा प्रणाली सिस्टम का हाल यह है कि कुछ परीक्षा केंद्र में आधा एक घंटा पेपर देरी से पहुंचता है, कम संख्या में पेपर पहुंचता है। यहां तक कि कुछ परीक्षा केंद्र में पेपर बाहर से मंगवाया गया तो बंडल खुला हुआ मिला। सबसे बड़ा सवाल है कि ऐसी घोर लापरवाही किस स्तर पर हुई, क्या ऐसे गंभीर मामलों में किसी की जवाबदेही तय हुई और उसे सजा दी गई। अभी तक इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।चयन प्रक्रिया संबंधी जो भी विवाद उभरे हैं, इनके प्रयोजन को छात्रों को समझने की जरूरत है। सभी को पता है कि उत्तर प्रदेश हो, बिहार हो अथवा अन्य राज्यों व केंद्रीय विभागों में बड़ी संख्या में सरकारी विभागों में पद रिक्त पड़े हुए हैं। इन्हें भरने का कोई सार्थक प्रयास तो दिखता नहीं है बल्कि जो भर्तियां विज्ञापित की गई हैं, उन्हें भी वर्षों तक इन्हीं विवादों व न्यायिक प्रक्रियाओं में उलझाए रखा जाता है।बिहार में सरकारी विभागों में लगभग पांच लाख पद रिक्त हैं। उत्तर प्रदेश में 6 लाख से ज्यादा पद रिक्त हैं और केंद्रीय कर्मचारियों के 10 लाख पद रिक्त हैं। देशभर में सरकारी विभागों में अनुमानित तौर पर एक करोड़ पद रिक्त हैं। इतनी बड़ी संख्या में पद रिक्त हैं लेकिन इन्हें भरने की जगह भाजपा की सरकारें महज नौकरी देने का प्रोपेगैंडा करने में लगी हैं। इन रिक्त पदों को तत्काल भरने की बात रोजगार अधिकार अभियान ने प्रमुखता से उठाई है। हमारा मत है कि चयन प्रक्रिया संबंधी विवादों को आसानी से हल किया जा सकता है। पहली बात तो सरकार के पास बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर है। जब वन नेशन वन इलेक्शन की वकालत की जा रही है, तब ऐसे में एक परीक्षा को एक शिफ्ट में आयोजित कराना कतई मुश्किल काम नहीं है। अगर इससे भी बड़ी संख्या में अभ्यर्थी हैं और कई शिफ्टों में परीक्षाओं को आयोजित कराना जरूरी हो, तो पेपर तैयार करने वाले विशेषज्ञों में समन्वय स्थापित करने की जवाबदेही संबंधित आयोग की है जिससे पेपर के स्तर में गैरजरूरी असमानता न हो।बिहार में इस पारदर्शी परीक्षा प्रणाली निर्माण और नार्मालाईजेशन के कारण पैदा हुए छात्रों के आंदोलन की लोकतांत्रिक आवाज को सुनने की जगह सरकार पूरे तौर पर दमन ढाहने और आंतक का माहौल बनाने में लगी हुई है। तीन बार बीपीएससी अभ्यर्थियों पर बर्बर लाठीचार्ज चार्ज किया गया और पिछली 29 दिसंबर को तो जुल्म की इंतिहा करते हुए इस भीषण ठंड में छात्रों पर वाटर कैनन से हमला किया गया। सैंकडों आंदोलनकारियों पर मुकदमें दर्ज किए गए हैं। लेकिन छात्रों की परीक्षा को फिर से कराने और उनकी सवालों के वाजिब समाधान के लिए मुख्यमंत्री जी को मिलने का वक्त तक नहीं मिल रहा है।आज गहराते जा रहे रोजगार संकट के इस दौर में सरकारों का मकसद न तो रोजगार सृजन का है और न ही सरकारी विभागों में रिक्त पड़े पदों को भरने का है। जो भी खाली पद हैं उन्हें आउटसोर्सिंग अथवा संविदा के माध्यम से बेहद कम वेतनमान पर काम कराना इनका असली मकसद है। इन सवालों को हल किया जा सकता है बशर्ते उचित अर्थनीति बने। ऐसे में युवाओं को चयन प्रक्रिया संबंधी विवादों को लेकर होने वाले आंदोलन में अपने सवालों को समग्रता में देखना चाहिए। भीषण सर्दी और बेहद विपरीत परिस्थितियों में छात्र धरना पर बैठे हुए हैं और उनकी वाजिब मांगों को सुना नहीं जा रहा है।लाठीचार्ज जैसी कार्रवाई की गई जो निहायत गलत है। रोजगार अधिकार अभियान मांग करता है कि बिहार सरकार छात्रों से वार्ता करे और उनके सवाल को हल करे।