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सुनीता राय
विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष दिनेश चंद्र त्रिपाठी पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि विरोध-प्रदर्शन तब भी होते थे, लेकिन कुलपति या फिर किसी अन्य शिक्षक से कोई अभद्रता नहीं करता था। गुरुजनों का सम्मान सब करते थे।
टार्जन, ब्रिगेडियर और गुड्डू। एक दौर में तीनों गोरखपुर विश्वविद्यालय में सिरफोड़वा गैंग के सदस्य के रूप में कुख्यात थे। शिक्षकों, कर्मचारियों और छात्रों में इनका जबरदस्त दहशत था, न जाने कब किसका सिर फोड़ दें। तत्कालीन छात्रसंघ अध्यक्ष के इशारे पर बने इस गैंग ने कई शिक्षक-कर्मचारियों के सिर फोड़ डाले थे। फिर वक्त बदला।
गलत संगत और जोश में उठाए गए कदम ने न सिर्फ इनकी, बल्कि परिवारवालों को भी परेशानी में डाल दिया। कोर्ट-कचहरी के चक्कर में फंसे तो उलझते ही चले गए। हाथ आई तो सिर्फ बदनामी और तबाही। हालात यह हैं कि गैंग के ज्यादातर सदस्य गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं। कौन जीवित है और क्या कर रहा, यह उनके साथी तक नहीं जानते।
गैंग के सदस्यों की मुश्किलें बढ़ती गईं तो कभी आगे-पीछे घूमने वाले करीबियों ने नजरें फेर लीं। जेल से छूटे तो बहुत कुछ बदल गया था। न कोई करीबी रहा न कोई मददगार। इनमें से आज कोई कोई खेती कर रहा है तो कोई छाेटी सी दुकान चलाकर किसी तरह दो जून की रोटी का जुगाड़ कर रहा है। कुछ गुमनामी के दौर में हैं। बीते दिनों विश्वविद्यालय में हंगामा करने वाले छात्रों के लिए यह सबक है कि जोश में होश खोने की गलती का खामियाजा कितना भारी पड़ता है।
गोरखपुर विश्वविद्यालय में एबीवीपी के छात्र 21 जुलाई 2023 को उग्र हो गए थे। कुलपति और अन्य प्रशासनिक अफसरों पर लात-घूंसे चले, पुलिस वाले भी बच नहीं पाए। अराजकता ऐसी हुई कि विश्वविद्यालय के अध्याय में ऐसा काला दिन जुड़ा, जिसकी चर्चा आज सबकी जुबां पर है।
लोग कहते हैं, यह युवा छात्र भी 1997 वाले सिरफोड़वा जैसी गलती कर बैठे हैं। 1997 में जब सिरफोड़वा गैंग ने उत्पात मचाया था तो उनकी करतूत की चर्चा सबकी जुबां पर होती थी। इस गैंग के पीछे दिमाग गुरू का था। गैंग के सदस्यों को सब शूटर कहकर पुकारते थे।
गैंग में शामिल कुशीनगर के राजेंद्र सिंह टार्जन, ब्रिगेडियर सिंह और अफताब उर्फ गुड्डू पर आरोप था कि उन्होंने सात शिक्षकों व कर्मचारियों का सिर फोड़ दिया। मामला बढ़ा तो अज्ञात में केस दर्ज हुआ और फिर जांच में इनका नाम सामने आया। पुलिस ने आरोपी बनाया तो कचहरी और जेल का चक्कर ही काटते रह गए। इस घटना के बाद पुलिस-प्रशासन ने विश्वविद्यालय में सक्रिय 54 छात्रनेताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था।
उस समय छात्र राजनीति में सक्रिय अपर्णेश मिश्र बताते हैं- इस घटना का साजिशकर्ता बताकर उन्हें जेल में डाल दिया गया। जबकि उनका इस घटना से कोई सरोकार नहीं था। 30 दिनाें तक जेल में रहा। वे कहते हैं- सिरफोड़वा गैंग की करतूत से सभी लोग शर्मसार थे, क्योंकि जिन शिक्षकों का हम सम्मान करते थे, उन्हें भी नहीं बख्शा गया। गैंग में शामिल ब्रिगेडियर सिंह की बाद में सड़क हादसे में मौत हो गई। बाकी लोगों से संपर्क ही टूट गया। अब वे कहां हैं, कोई नहीं जानता।