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मनमोहन राय
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर में सर्वे कराए जाने के मामले में बृहस्पतिवार को सुनवाई करते हुए पूछा कि क्या जिला अदालत सर्वे का आदेश पारित कर सकती है। क्या वह ऐसे आदेश नहीं दे सकती है। क्या यह प्रतिबंधित है। मुस्लिम पक्ष के वकील ने इसके जवाब में कहा कि जिला अदालत ऐसा नहीं कर सकती। वहीं, हिंदू पक्ष ने सीपीसी (सिविल प्रक्रिया संहिता) की धारा 75 का हवाला देकर बताया कि अदालतें सर्वे कराने का आदेश दे सकती हैं।
मामले की सुनवाई कर रही मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर की पीठ ने ज्ञानवापी परिसर के अंदर साल भर पूजा करने के अधिकार की मांग वाली मुकदमे की फाइल के निस्तारण में देरी पर सवाल उठाया। कहा कि ये दो वर्षों से यह मामला लंबित क्यों है। इस पर अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद के वकील ने कहा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल हुई है।
मामला वहां से निस्तारित होने के बाद ही सुनवाई हो सकेगी। कहा कि अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद और काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के बीच कोई विवाद नहीं है। कोई तीसरा पक्ष आकर मुकदमा कर रहा है। जिला अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद 19 मुकदमे लड़ रही है। मौजूदा मामले में जिला जज सर्वे का आदेश नहीं दे सकते हैं। एक तीसरे पक्ष ने आकर मुकदमा फाइल कर दिया और उस पर सर्वे का आदेश हो गया। जबकि सर्वे पर रोक लगी है।
इसके अलावा जिला जज ने अपने 21 जुलाई के आदेश में कोई मुद्दा तय नहीं किया। जबकि हिंदू पक्ष यह मान रहा है कि उसके पास कोई साक्ष्य नहीं है। मुस्लिम पक्ष ने अपने पक्ष में सुप्रीम कोर्ट के श्रीकांत बनाम मूलचंद और हर्नेस केस का हवाला दिया। सुन्नी वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता पुनीत कुमार गुप्ता ने भी समर्थन में तर्क प्रस्तुत किए।
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कोर्ट – ज्ञानवापी परिसर में साल भर में पूजा करने की मांग में दाखिल मुकदमा दो साल से क्यों लंबित हैं?