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विश्वजीत राय
पकवा इनार। प्राचीनता और ऐतिहासिकता समेटे होने के बावजूद कुशीनगर में करीब 2800 साल पुराने बौद्धकालीन अनिरुद्धवा टीले को पहचान की दरकार है। इस स्थल को विकसित कर विश्वस्तरीय बनाने की जरूरत है। इतिहास के जानकारों के मुताबिक, बौद्धकाल में अनिरुद्धवा मल्ल राजाओं का आंगन रहा है। यहां से प्राप्त ईंटें व स्तूप मल्लों की राजधानी हाेने के संकेत देते हैं। इसके बावजूद अनिरुद्धवा टीला स्थल को संवारने के लिए कोई मुकम्मल कोशिश नहीं की गई है। लेकिन हां, यह टीला पुरातत्व विभाग के कुशीनगर संरक्षित स्थलों में शामिल है। फिलहाल, अभी जल्द ही टीले के महत्व को समझते हुए चारों तरफ पुरातत्व विभाग ने करीब 10 लाख रुपये की लागत से चहारदीवारी निर्माण कराकर संरक्षण करने का काम किया है। लेकिन यह इसकी पहचान व ख्याति के लिए पर्याप्त नहीं है। इसे वैश्विक स्वरूप देने के लिए बहुत कुछ करने की दरकार है। कुशीनगर में भगवान बुद्ध संबंधी तीन प्रमुख दर्शनीय स्थलों में एक चौथा अनिरुद्धवा टीला जुड़ जाए तो देश-विदेश के आने वाले पर्यटक व सैलानी मुख्य महापरिनिर्वाण, मांथा कुंवर मंदिर, रामाभार स्तूप के साथ अनिरुद्धवा टीले का भी भ्रमण करेंगे। इसके लिए इस स्थल को पुरातत्व विभाग की तरफ से प्रचारित-प्रसारित करने की जरूरत है।
थाई मंदिर के बगल से जाने वाले नवनिर्मित आरसीसी सड़क के किनारे पुरातत्व का संरक्षित स्थल है। यह विभाग के अभिलेखों में अनिरुद्धवा टीला नाम से दर्ज है। इसे लाखों रुपये खर्च कर चारों तरफ से चहारदीवारी निर्माण कराकर संरक्षित कर लिया गया है। इसकी विस्तृत जानकारी के लिए विभाग को पत्र भेजा गया है।शादाब खान, संरक्षण सहायक, कुशीनगर
इतिहासकार और बौद्ध भिक्षुओं ने कहा
अनिरुद्धवा टीला पुरातात्विक दृृष्टिकोण से महत्वपूर्ण स्थान है। इसके बावजूद पुरातत्ववेत्ता अब तक उसके संबंध में अपना कोई सुनिश्चित निर्णय नहीं दे सके हैं, न ही वहां से कोई पुरातात्विक संग्रह ही किया जा सका है। इसकी वजह से पुरातत्ववेत्ता भगवान बुद्ध के निर्वाण स्थल के मिल जाने के बाद अन्य स्थानों की खोज से पीछे हट गए, जबकि अनिरुद्धवा को कुशीनगर का मुख्य स्थान माना जाता है। लेकिन उस पर साक्ष्य नहीं प्रस्तुत किया गया है। इसके कारण यह स्थल उपेक्षा का शिकार होता चला आ रहा है। यहां पर स्तूप का चिह्न रहा है। शुरुआत में कुछ पुरातत्ववेत्ता अनिरुद्धवा टीले पर ध्यान देने से पीछे हट गए। इसकी वजह से यह स्थल ज्यों का त्यों पड़ा हुआ है।
– डाॅ. श्यामसुंदर सिंह, इतिहासकार
पुरातत्व विभाग के अभिलेख में दर्ज अनिरुद्धवा टीला ही वास्तव में भगवान बुद्ध का धातु वितरण स्थल है। यहीं पर उनके दाह संस्कार के बाद उनके धातु अवशेषों को आठ भागों में बांटा गया था। आठवां हिस्सा कुशीनगर के मल्लों ने स्तूप में सुरक्षित रखा। इस समय महापरिनिर्वाण मंदिर में पीछे भव्य स्तूप में है। यह बौद्ध अनुयायियों व उपासक-उपासिकाओं के लिए पूजनीय व अति पवित्र स्थल है। लंबे समय से पुरातत्व विभाग की तरफ से उपेक्षित पड़ा है। पुरातत्व विभाग की तरफ से इस स्थल का उत्खनन कराया जाना चाहिए। यहां से शिलालेख मिलने की उम्मीद है। इससे इस पुरातात्विक व ऐतिहासिक स्थल की विशिष्टता की पुष्टि हो जाएगी। इसका विकास होना चाहिए। महापरिनिर्वाण, मांथा कुंवर व रामाभार के बाद चौथा स्थल धातु वितरण (अनिरुद्धवा टीला) से प्रमुख दर्शनीय स्थलों में जुड़ जाएगा।
– भंते महेंद्र, प्रबंधक, भंते ज्ञानेश्वर बुद्ध विहार कुशीनगर
पवित्र अनिरुद्धवा टीला बौद्धकाल में मल्ल वंश के राजाओं का संस्थागार स्थल है। इस बात की पुष्टि त्रिपिटकाचार्य भिक्षु डाॅ. धर्मरक्षित की पुस्तक में है। कुशीनगर का वर्तमान अनिरुद्धवा मल्लों की राजधानी पर बसा है। अनिरुद्धवा टीला ही नहीं, यहां आज भी बौद्धकालीन खंडहर व अवशेष पड़े हुए हैं। लेकिन उनका संरक्षण नहीं है। अनिरुद्धवा में भी बौद्ध धर्म के चार पवित्र व पूजनीय स्थलों के इतिहास अंकित अवशेष पड़े हैं। उनमें भगवान बुद्ध का जन्म स्थल लुंबिनी, प्रथम धर्मचक्र प्रवर्तन सारनाथ, ज्ञान प्राप्ति बोधगया व महापरिनिर्वाण कुशीनगर शामिल है। लेकिन वर्तमान में जलभराव है।
भिक्षु बोध्यांग गौतम, महास्थविर अध्यक्ष महापरिनिर्वाण शालवन, कुशीनगर
अनिरुद्धवा टीला की पुरातात्विक पहचान है, लेकिन अब तक उसका ज्ञात इतिहास नहीं है। जब तक कि पुरातत्ववेत्ताओं की देखरेख में उसका उत्खनन न हो जाए। खुदाई उपरांत ही प्राप्त होने वाले अवशेषों से ही टीले के महत्व को पहचान जा सकता। पुरातात्विक व ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए अनिरुद्धवा टीले की खुदाई कराई जानी चाहिए। टीले की खुदाई से कुशीनगर के इतिहास को समृद्धता हासिल होगी। पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और देश-विदेश के आने वाले पर्यटकों व सैलानियों को दर्शनीय, पूजनीय व पवित्र स्थल मिलेगा। यह स्थल हजारों सालों से उपेक्षित पड़ा हुआ है। इसकी पहचान व विशिष्टता मुख्य महापरिनिर्वाण मंदिर, मांथा कुंवर व रामाभार स्तूप सरीखी होनी चाहिए।
डाॅ. अभय राय, शोध निदेशक, कुशीनगर विपश्यना केंद्र।