सफल समाचार
सुनीता राय
एडिश्नल कमिश्नर ग्रेड 2 देवमणि शर्मा ने कहा कि खरीदार बिना जीएसटी नंबर वाले पर्ची पर खरीदारी न करें। इससे उनका ही नुकसान होगा। अगर कोई बिल देने से मना करता है तो वह दुकानदार से लिखित कारण मांग सकते हैं। व्यापारी को दुकान से बेचे गए उत्पाद का ऑनलाइन बिल ही देना है।
हिंदी बाजार में अंशु ने करीब 39 हजार रुपये की सोने की एक चेन खरीदी थी। दुकानदार ने अंशु से कहा कि अगर नकद भुगतान करेंगे तो फायदे में रहेंगे। ऑनलाइन भुगतान करने पर तीन प्रतिशत जीएसटी जुड़ जाएगा। यानी कीमत करीब एक हजार रुपये बढ़ जाएगी। अंशु ने नकद भुगतान करना मुनासिब समझा और बिना रसीद लिए जीएसटी का एक हजार रुपये टैक्स बचा लिया। उधर, दुकानदार ने भी बिना जीएसटी भरे मंगाए गए माल को खपा दिया। इस खेल पर अब जीएसटी विभाग की कड़ी नजर है। लगातार ऐसी जानकारियों और त्योहारों को देखते हुए सख्ती बरती जा रही है।
हिंदी बाजार के साथ अन्य बाजारों में भी बिना जीएसटी रसीद दिए खरीद-बिक्री का खेल जमकर चल रहा है। दरअसल, जीएसटी चोरी के लिए व्यापारियों ने अब नया फंडा अपनाया है। नकद रुपये में माल बेचकर वे जीएसटी बचा लेते हैं।
जानकारों की मानें तो सराफा के अलावा अन्य व्यापार में भी यह खेल हो रहा है। दिल्ली और अन्य प्रदेशों से जो सामान मंगाए जाते हैं, उस पर प्रति नग के हिसाब से जीएसटी लगता है। व्यापारी जिस माल को मंगाने में जीएसटी की चोरी करते हैं, उसे ही बिना बिल दिए बेच देते हैं।
इसके लिए ट्रांसपोर्टर को भी हिस्सेदार बनाया जाता है। जब माल दुकानदार के गोदाम तक पहुंच जाता है तो वह जीएसटी चोरी कर नकद में ही माल बेचने पर जोर देता है। वह ऑनलाइन पेमेंट लेने से भी बचता है।
खरीदार को होगा यह नुकसान
बिना जीएसटी के अगर कोई भी सामान ग्राहक खरीदता है तो खराब होने पर वारंटी अवधि में ठीक करने में दिक्कत होती है। सर्विस सेंटर पर नॉर्मल बिल को नहीं मानते हैं। सिर्फ जीएसटी बिल ही मान्य होता है। कई बार तो ग्राहक को बिल देने के बाद भी वारंटी का लाभ नहीं मिल पाता। कई बार तो दुकानदार भी सर्विस सेंटर का पेच फंसने पर उस आइटम का जीएसटी बिल बाद में भी नहीं दे पाते हैं।