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सुनीता राय
स्वतंत्रता मिलने के बाद अंग्रेजी के प्रभाव ने मातृभाषा को हाशिए पर ला दिया। हिंदी को भी शिक्षा और रोजगार की भाषा बनाने की आवश्यकता है। जब तक हम अपनी मातृभाषा में मेडिकल, इंजीनियरिंग आदि की पढ़ाई नहीं करेंगे, तब तक हिंदी को वह सम्मान नहीं मिलेगा, जिसकी वह हकदार है।
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने लगभग 180 वर्ष पूर्व ही मातृभाषा के महत्व को रेखांकित किया था, लेकिन स्वतंत्रता मिलने के बाद अंग्रेजी के प्रभाव ने मातृभाषा को हाशिए पर ला दिया। हिंदी को भी शिक्षा और रोजगार की भाषा बनाने की आवश्यकता है।
जब तक हम अपनी मातृभाषा में मेडिकल, इंजीनियरिंग आदि की पढ़ाई नहीं करेंगे, तब तक हिंदी को वह सम्मान नहीं मिलेगा, जिसकी वह हकदार है। हिंदी दिवस के अवसर पर हिंदी से जुड़े विशेषज्ञों ने अपनी राय रखी।
हिंदी विभिन्न भाषाओं के शब्दों को आत्मसात कर लेती है, लेकिन सोशल मीडिया में हिंदी के शब्दों को ही तोड़-मरोड़ कर प्रयोग किया जा रहा है। देवनागरी की वैज्ञानिकता हिंदी को मजबूती प्रदान करती है। प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा के साथ-साथ बच्चों को व्याकरण ज्ञान पर विशेष ध्यान दिया जाए तभी हम अपने मातृभाषा के सम्मान की रक्षा कर पाएंगे। -प्रत्यूष दुबे, हिंदी प्रोफेसर
कोई भी भाषा तभी दीर्घजीवी और महत्वपूर्ण बनती है, जब वह विचार, चिंतन, ज्ञान, विज्ञान की भाषा बनती है। हम हिंदी के संचार की तादाद को देखकर खुश हैं जबकि आज भी ज्ञान की भाषा संस्कृति और अंग्रेजी है। हमें छोटी कक्षा से उच्च शिक्षा तक हिंदी भाषा में ज्ञान और विज्ञान के पाठ्य पुस्तकों के साथ-साथ संदर्भ ग्रंथ की भी आवश्यकता है। इसे पूरा करना चाहिए। -राजेश मल्ल, हिंदी एवं पत्रकारिता अध्यापक
पिछले कई वर्षों से मैं हिंदी भाषा और साहित्य की शिक्षा और अध्यापन के अपने व्यक्तिगत अनुभव से संतुष्ट हूं। साहित्य सृजन से लेकर अध्यापकीय सेवा और सक्रिय पत्रकारिता के क्षेत्र में यहां के विद्यार्थियों ने न केवल अपनी उपस्थिति दर्ज कराई बल्कि अपने गंभीर और रचनात्मक कार्य से हिंदी के बौद्धिक समाज का ध्यान आकृष्ट किया है।- प्रो. अनिल राय, हिंदी प्रोफेसर
बचपन से मुझे कहानियां पढ़ने का शौक था, जिससे धीरे-धीरे मेरी हिंदी विषय के प्रति रुचि बढ़ती गई। मैं आज हिंदी साहित्य से शोध कर रही हूं। हिंदी को भारत की कामकाज की भाषा बनते देखना चाहती हूं। इसके लिए जरूरी है कि विभिन्न विषयों की पाठ्य सामग्री भी हिंदी में हो। -विजयलक्ष्मी मिश्रा, वाराणसी, हिंदी शोधार्थी
वर्तमान बाजार हिंदी को ज्यादा प्रभावित कर रहा है। इस वजह से हिंदी के स्वरूप में भी बदलाव आ रहा है। यह हिंदी के लिए मूल चुनौती है। इससे भाषा को बचाने की जिम्मेदारी भी हिंदी के परिवार की है। हिंदी में अंग्रेजी के शब्द कम होेने चाहिए। हिंदी भावनाएं व्यक्त करती हैं, चाहे संकट हो या खुशी हम अपनी मातृभाषा में उसे अच्छे से बता और समझ पाते हैं। -रीना चौहान, गोरखपुर, हिंदी शोधार्थी
हिंदी की विदेशों में भी मांग है। मॉरीशस, सिंगापुर आदि देशों मेंं हमारे यहां से ज्यादा हिंदी की मांग है। हिंदी साहित्य को भारत के साथ-साथ विदेश में भी प्रसारित करना मेरा सपना है। मैं पूरे उत्साह के साथ हिंदी दिवस की तैयारी कर रही हूं। -अनु शुक्ला, गोला बाजार।
हिंदी हमारी मातृभाषा के साथ राजभाषा है। हिंदी भाषा देश के सभी लोगों को एकता के सूत्र में पिरोती है। देश को एक रखने में हिंदी का बहुत बड़ा योगदान है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इसे जनमानस की भाषा कहा है।-मनीषा ओझा, ओझौली कुशीनगर हिंदी शोधार्थी
हिंदी लोगों से जोड़ने का माध्यम है। कहीं ना कहीं संवेदनाएं हिंदी के द्वारा ही प्रकट की जा सकती हैं। हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा नहीं हो पाई है, लेकिन कहीं ना कहीं प्रयास इसे आगे बढ़ने का है। भविष्य में असिस्टेंट प्रोफेसर बनकर हिंदी क्षेत्र में सेवा प्रदान करना चाहती हूं ।- तमन्ना शेख, हिंदी शोधार्थी
हिंदी को वैश्विक भाषा होनी चाहिए। साहित्य के अलावा विज्ञान कॉमर्स आदि क्षेत्रों में भी हिंदी की मांग है। जब हिंदी को एक बड़ा जनसमूह बोलेगा तब हिंदी हिंदुस्तान की भाषा बनेगी और इसे गंभीरता से लिया जाएगा।-डॉ नरेंद कुमार, हिंदी प्रोफेसर
किसी भी समाज या भाषा के विकास के लिए शुद्धता का आग्रह नहीं होना चाहिए। हिंदी में अगर अन्य भाषाओं का मेल हो रहा है तो इससे हमारी हिंदी और समृद्ध होगी और इससे पता चलता है कि हमारी हिंदी का संबंध अन्य भाषाओं से बढ़ता जा रहा है। भारत को भी स्थानीय भाषा के रूप में हिंदी भाषा को आगे बढ़ाना चाहिए। -डॉ राम नरेश राम, हिंदी प्रोफेसर।
नयी शिक्षा नीति में मातृभाषा के अध्ययन पर बल होने के कारण हिन्दी ही नहीं अन्य भारतीय भाषाओं के विकास के लिए उत्साहपूर्ण परिवेश निर्मित हुआ है। हिन्दी का अध्ययन-अध्यापन विकास की ओर अग्रसर है। आज हिंदी ज्ञान और रोजगार की भाषा बन रही है। -प्रो दीपक त्यागी, हिंदी विभागाध्यक्ष।