सफल समाचार
सुनीता राय
एसपी नार्थ मनोज अवस्थी ने कहा कि छह आरोपियों को जेल भेजा जा चुका है। कॉल डिटेल और सीडीआर की मदद से पुलिस छानबीन कर रही है। गिराेह में शामिल कुछ लोगों का नाम सामने आया है। उनके खिलाफ साक्ष्य संकलन किया जा रहा है। इसके आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।
डोनर लाओ…नोट कमाओ और पुण्य भी कमाओ। खून माफिया, मेडिकल कॉलेज गेट के आसपास ठेला लगाने वाले हों या फिर चाय-पान की फड़-दुकान चलाने वाले, सभी से यही कहकर लालच देते हैं। उन्हें यह भी बताया जाता है कि रुपये देने वाला कोई गरीब नहीं, बल्कि पैसे वाला है। बीच में कुछ मरीजों को गरीब बताकर माफिया अपनी छवि बेहतर दिखाकर कमीशन भी मार लेते थे। बड़ी बात यह है कि पूरा धंधा ऑनलाइन है। सिर्फ गिरोह में शामिल लोग एक-दूसरे से बात करते थे। फिर बिना लिखा-पढ़ी के रक्तदाता बनाकर खून निकलवाते थे और सीधे जरूरतमंद तक खून पहुंच जाता है।
शुक्रवार को दोपहर डेढ़ बज रहे थे। अमर उजाला की टीम ने खून माफिया के गिरोह में अनजाने में शामिल एक भूजा बेचने वाले को खोज निकाला। वह दस दिनों से दुकान नहीं लगा रहा है। गुलरिहा के पास किराए के मकान में रहता है। पहले तो वह घबरा गया, लेकिन फिर उसने कहा कि नाम और फोटो मत लीजिए। समझाने पर सबकुछ बताने को राजी हो गया।
उसने बताया कि वह 17 साल से ठेला लगा रहा है, उसे नहीं मालूम था कि गलत काम होता है। गिरोह का सरगना वसील खान ही है। उसका सबसे विश्वसनीय साथी केशर देव है। करीब छह साल पहले इन दोनों ने पहले डोनर को रक्तदाता बनाकर ले गए थे और रक्तदान कराकर डोनर कार्ड ले लिया था। तब उन्हें खून खरीदने वाले नहीं मिले थे।
दो दिन ब्लड बैंक के आसपास घूमने के बाद बिहार का एक शख्स मिला था, जिसे अपनी मां का ऑपरेशन कराना था, उसे छह हजार में खून बेचा। उसी समय इन दोनों ने महसूस कर लिया कि अगर, इसी काम को करना है तो इसके लिए सेटिंग चाहिए।
गिरोह का सरगना वसील खान अपने साथी एजेंट केशर देव की मदद से खजांची व अन्य जगहों पर काम की तलाश में आने वाले मजदूरों को निशाना बनाते थे। जिन मजदूरों को कई दिनों से काम नहीं मिलता था, उसे ही टारगेट करते थे और फिर रुपयों का लालच देकर खून देने के लिए राजी करा लेते थे। मोहम्मद शिवातुल्लाह डोनर खोजता था। उसकी पसंद बिहार के मरीज होते थे। क्योंकि वह खुद बिहार के गोपालगंज का निवासी है, इस वजह से बिहार के लोगों को जल्दी भरोसे में ले लेता था।
पकड़े गए सफाई कर्मी खोजते थे जरूरतमंद को
पकड़े गए कर्मचारी सफाई के दौरान उन मरीजों के तीमारदारों की जानकारी जुटाते थे, जो खून के लिए परेशान हों। फिर उन्हें वसील खान का नंबर दे देते थे। कहते थे कि वसील आसानी से खून दिलवा देगा। परेशान तीमारदार, वसील के नंबर पर संपर्क करते थे, इसके बाद मजदूर को लाया जाता था। उससे खून लेकर उसके बदले जिस ग्रुप के खून की जरूरत होती थी, उसे दिला देते थे। मजदूर को तय करने के लिए छह हजार प्रति यूनिट खून डोनेट करने का प्रलोभन दिया जाता था। जरूरतमंद से जितने पर सौदा तय हो जाए, उसी हिसाब से चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को भी कमीशन दिया जाता था। कई जरूरतमंदों से इन लोगों ने 25 हजार रुपये तक वसूले थे।
एंबुलेंस मरीज माफिया से भी जुड़े हैं तार
मेडिकल कॉलेज में मरीज एंबुलेंस माफिया और फिर खून माफिया का खेल उजागर हुआ। मामला अलग-अलग सामने आया है, लेकिन तार दोनों के एक दूसरे से कहीं न कहीं जुड़े हुए हैं। दोनों ही गिरोह के सदस्य एक दूसरे परिचित थे और इनके लिए काम करने वाले ठेले वाले भी एक ही है।
रक्तदाता के नाम की नहीं होती थी इंट्री
बीआरडी मेडिकल कॉलेज के जो दो कर्मचारी संविदा पर सफाईकर्मी पकड़े गए हैं, उन्होंने पूछताछ में पुलिस को बताया है कि ब्लड बैंक में तैनात लैब टेक्नीशियन से मरीज के तीमारदार खून के लिए संपर्क करते थे। उन्हीं कर्मचारियों के कहने पर तीमारदार उनसे संपर्क करता था। इसके बाद संविदाकर्मी, सरगना से संपर्क करते थे, सरगना दलाल के माध्यम से बीआरडी में ब्लड बैंक तक डोनर को भेजता था। वहां दो संविदाकर्मी दलाल से मिलकर डोनर को ब्लड बैंक में ले जाकर बिना लिखा-पढ़ी के खून निकलवा कर दलाल को डोनर को सुपुर्द कर देते थे। रकम को दलाल के माध्यम से सरगना तक भेज देते थे।