इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति एसएचए रिजवी की कोर्ट में कोली की फांसी पर शुक्रवार को सुनवाई के दौरान यह चौंकाने वाला तथ्य कोली के वकील ने रखा। कोली के वकील ने कहा कि तीसरे दिन अपनी दलीलों में कहा कि सुरेंद्र कोली को तमाम यातनाएं देकर इकबालिया बयान रटवाया गया था।

उत्तर प्रदेश प्रयागराज

सफल समाचार 
आकाश राय 

देश भर में चर्चित रहे नोएडा के निठारी कांड में फांसी की सजा पाए सुरेंद्र कोली के कलमबंद बयान की जो सीडी (काम्पैक्ट डिस्क) ट्रायल कोर्ट में पहुंची, उसमें कोली और बयान लेने वाले मजिस्ट्रेट के हस्ताक्षर ही नहीं थे। फांसी की सजा के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर अपील पर चल रही नियमित सुनवाई के दौरान कोली के वकील ने यह सनसनीखेज दावा किया।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति एसएचए रिजवी की कोर्ट में कोली की फांसी पर शुक्रवार को सुनवाई के दौरान यह चौंकाने वाला तथ्य कोली के वकील ने रखा। कोली के वकील ने कहा कि तीसरे दिन अपनी दलीलों में कहा कि सुरेंद्र कोली को तमाम यातनाएं देकर इकबालिया बयान रटवाया गया था।

दावा किया गया कि यही बयान दिल्ली के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट चंद्रशेखर के समक्ष दर्ज किया गया।कोली के वकील ने दावा किया कि यह बयान दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 164 के प्रावधानों के विपरीत दर्ज किया गया था। दरअसल, यह बयान एक ही बार में दर्ज किया जाना चाहिए था, लेकिन इसे तीन दिन में पूरा किया गया। बयान से पहले मजिस्ट्रेट ने न तो कोली का मेडिकल परीक्षण कराया, न ही कस्टडी रिपोर्ट ही देखी।
 

वकील के मुताबिक, बयान लेने वाले मजिस्ट्रेट ने भी ट्रायल कोर्ट में बताया है कि कोली के बयान की रिकार्डिंग की चार सीडी बनाई गई थीं। इसमें दो ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड के लिए एसीएमएम कामिनी लाव को दी गईं, जबकि शेष दो सीडी सीबीआई के विवेचक को दी गईं। कोर्ट के रिकॉर्ड के लिए दी गई सीडी पर मजिस्ट्रेट और कोली ने दस्तखत भी किए थे। मगर, कोर्ट में जो सीडी पहुंचीं, उसमें मजिस्ट्रेट और कोली के दस्तखत उपलब्ध नहीं थे।

वकील का दावा है कि कलमबंद बयान असल में कलमबंद थे ही नहीं। विधिक प्रक्रिया में बयान तत्काल हूबहू लिपिबद्घ किया जाता है, लेकिन दस्तावेजों पर उपलब्ध साक्ष्यों से साफ है कि बयान की रिकार्डिंग की गई और उसे सुनकर बयान को लिपिबद्घ किया गया। मजिस्ट्रेट ने भी निचली अदालत में कहा है कि अदालत के सामने वो सीडी नहीं है, जिस पर उनके और कोली ने हस्ताक्षर थे।

हाईकोर्ट के समक्ष वकील ने यह भी दावा किया कि कोली ने जांच एजेंसी द्वारा दी जा रहीं अमानवीय यातनाओं की शिकायत भी की थी। हालांकि, मजिस्ट्रेट ने इन शिकायतों को नजरअंदाज करते हुए कोली को न्यायिक हिरासत में भेजने के बजाय सीबीआई के हवाले कर दिया। सीबीआई तमाम यातनाएं देकर उसे अगले दिन का बयान रटवाती थी।

कोली के वकील ने साक्ष्य अधिनियम की धारा 24 और 28 का जिक्र करतेे हुए यह साबित करने की कोशिश की कि कोली का मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज किया गया इकबालिया बयान संदिग्ध और यातनाओं से प्रभावित होने के कारण कानूनी तौरपर स्वीकार्य नहीं है।

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