गीडा सीईओ पवन अग्रवाल ने कहा कि पहले प्लॉट आवंटन के लिए भीड़ जुटती थी, लेकिन उसके सापेक्ष उद्योग नहीं लगते थे

उत्तर प्रदेश गोरखपुर

सफल समाचार 
सुनीता राय 

गीडा सीईओ पवन अग्रवाल ने कहा कि पहले प्लॉट आवंटन के लिए भीड़ जुटती थी, लेकिन उसके सापेक्ष उद्योग नहीं लगते थे। बाद में प्लॉट कैंसिल करने या दूसरे के नाम स्थानांतरित करने में तमाम दिक्कतें आती थीं। पिछले साल गीडा बोर्ड की बैठक में इस पर चर्चा की गई।

अब गीडा क्षेत्र में मुनाफे के लिए प्लाॅट का आवेदन किए तो फंस जाएंगे। नोएडा और ग्रेटर नोएडा की तर्ज पर गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा) में भी भूखंड आवेदन के वक्त ही 10 प्रतिशत धनराशि जमा करनी पड़ रही है। प्लाॅट आवंटित होने के 60 दिनों के अंदर 20 प्रतिशत और धनराशि जमा करनी होगी। आवंटित प्लॉट पर फैक्टरी लगाने के तीन साल बाद ही उस जमीन को किसी दूसरे को बेच सकेंगे। इसलिए गीडा में प्लाॅट आवंटित कराने के लिए तभी आवेदन करें, जब फैक्टरी लगानी हो।

चैंबर ऑफ इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष आरएन सिंह और महासचिव आकाश जालान ने बताया कि पहले गीडा में फैक्टरी के लिए प्लॉट आवंटन में मारामारी मचती थी। अगर 100 प्लॉट का आवंटन होता था तो 400 से अधिक आवेदन आते थे। प्लॉट के लिए सिफारिश और सौदेबाजी होती थी, लेकिन प्लॉट आवंटित होने के बाद वहां निर्माण कार्य शुरू नहीं होता था। कभी लोन नहीं मिलने का बहाना तो कभी लाइसेंस या किसी अन्य बहाने से जमीन खाली पड़ी रहती थी। जब कोई वास्तविक उद्यमी उस जमीन के लिए पहुंचता तो आवंटी दोबारा सौदेबाजी शुरू करते थे। आपसी सहमति बन जाने के बाद प्लॉट का आवंटन निरस्त कराने या दूसरे के नाम स्थानांतरित कराने का खेल होता था।

पिछले साल गीडा बोर्ड की बैठक में यह मामला उठा था। इसके बाद नोएडा व ग्रेटर नोएडा की तर्ज पर गीडा में भी प्लॉट आवंटन के नियमों में बदलाव किए गए। नए नियमों के अनुसार, प्लॉट आवंटन के लिए आवेदन के वक्त ही भूखंड की कीमत का 10 प्रतिशत धरोहर धनराशि जमा करनी होगी। प्लॉट आवंटित होने पर 20 प्रतिशत धनराशि अगले 60 दिनों के भीतर जमा करनी होगी।

इस प्रकार 30 प्रतिशत धनराशि जमा होने पर ही आवंटी को प्लॉट पर कब्जा मिलेगा। उसे तीन साल के अंदर उस पर अपनी फैक्टरी स्थापित करनी होगी। फैक्टरी चालू होने की तारीख से तीन साल बाद अगर वह चलने की स्थिति नहीं होता है, तभी बंद कर दूसरे व्यक्ति को जमीन दी जा सकती है। बदले हुए नियम के बाद इस बार जब करीब 240 प्लॉटों के लिए आवंटन की प्रक्रिया शुरू की गई तो आवेदक काफी कम हो गए।

तीन कैटेगरी में हो रहे हैं आवेदन
गीडा प्रशासन से मिली जानकारी के अनुसार, प्लॉटों की तीन कैटेगरी है। पहली कैटेगरी प्लास्टिक पार्क की है, इसमें अब तक केवल 40 आवेदन आए हैं। दूसरी श्रेणी रेडिमेड गारमेंट की है। इसमें केवल पांच आवेदन ही आए हैं। सामान्य श्रेणी में सभी प्रकार के उद्यम के लिए प्लॉट हैं, जिसमें अब तक 100 आवेदन आए हैं। इस प्रकार तीनों कैटेगरी मिलाकर केवल 145 आवेदन आए हैं। आवेदकों की कम संख्या को देखते हुए गीडा प्रशासन ने आवेदन की अंतिम तारीख 31 जुलाई से बढ़ाकर 10 अगस्त कर दी है।

रेडिमेड गारमेंट के लिए बेहद कम आए आवेदन
पूर्वांचल के बहुत सारे कारीगर व मजदूर देश के विभिन्न शहरों में रेडिमेड गारमेंटस के निर्माण इकाइयों से जुड़े हैं। इसे देखते हुए गीडा में भी रेडिमेड गारमेंटस की यूनिट स्थापित करने के लिए अलग से प्लॉट आवंटित करने का निर्णय लिया गया, लेकिन इस श्रेणी में कम आवेदन आए हैं। हालांकि, गीडा प्रशासन ने आवेदन की तारीख बढ़ाई है, लेकिन आवेदकों की संख्या बढ़ने की उम्मीद कम है। इसकी एक प्रमुख वजह यह बताई जा रही कि रेडिमेड गारमेंटस में कम पूंजी वाले उद्योगपति अधिक हैं। ये लोग महंगे प्लॉट खरीदने व इकाई स्थापित करने की बजाय किराए के मकान में अपना कारोबार करने में रुचि रखते हैं।

गीडा सीईओ पवन अग्रवाल ने कहा कि पहले प्लॉट आवंटन के लिए भीड़ जुटती थी, लेकिन उसके सापेक्ष उद्योग नहीं लगते थे। बाद में प्लॉट कैंसिल करने या दूसरे के नाम स्थानांतरित करने में तमाम दिक्कतें आती थीं। पिछले साल गीडा बोर्ड की बैठक में इस पर चर्चा की गई। तय किया गया कि नोएडा व ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी जैसे कोई सख्त नियम बनाए जाएं, जिससे वास्तविक उद्यमी ही प्लॉट के लिए आगे आएं। इसका असर भी हुआ है। इस बार जो प्लॉट आवंटित किए जा रहे हैं, उसके लिए उन्हीं लोगों ने आवेदन किया है, जो फैक्टरी लगाने के लिए उत्सुक हैं।

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