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सुनीता राय
आजादी के आंदोलन की दशा और दिशा तय करने वाली चौरीचौरा की घटना की याद में प्रतिवर्ष होने वाले कार्यक्रम में बदलाव कर दिया गया है। अब इस आंदोलन में शहीद हुए किसानों को तो श्रद्धांजलि दी जाएगी, लेकिन अंग्रेजों के उन 23 पुलिसकर्मियों को नहीं, जिनकी थाने में लगाई आग में जल कर मौत हो गई थी। पहले इन पुलिसकर्मियों को भी अपनी ड्यूटी के लिए शहीद मानकर श्रद्धांजलि देने की परंपरा थी। अब इनको अंग्रेजी हुकूमत का मानकर इस पर रोक लगा दी गई है।
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर अपनी जान की कुर्बानी देने वाले अमर शहीदों को याद किया जाएगा। ऐसे में चौरीचौरा में पुलिस की गोली से शहीद होने वाले रणबांकुरों के अलावा उन 23 पुलिसकर्मियों का जिक्र होता है, जो ड्यूटी के दौरान शहीद हो गए थे। थाने के पास ही सभी पुलिसकर्मियों का स्मारक है। पूर्व में यहां हर चार फरवरी को थाने के पुलिसकर्मी, शहीद पुलिसकर्मियों को श्रद्धासुमन अर्पित करते थे। आजादी की वर्षगांठ पर भी उन्हें याद किया जाता था। लेकिन इसे अब बंद कर दिया गया है।
थाने के रजिस्टर नंबर आठ में दर्ज घटना
चौरीचौरा की घटना का पूरा विवरण थाने के रजिस्टर नंबर आठ में दर्ज है। इसमें बताया गया है कि चार फरवरी 1922, दिन शनिवार को चौरीचौरा के भोपा बाजार में सत्याग्रही जुटे थे। थाने के सामने से जुलूस के रूप में लोग निकले तो थानेदार ने इसे अवैध भीड़ घोषित कर दिया। इस दौरान एक सिपाही ने महात्मा गांधी की टोपी को पैरों तले रौंद दिया, जिससे लोग उग्र हो गए। इस दौरान पुलिस ने भीड़ पर गोली चला दी, जिससे 11 सत्याग्रही शहीद हो गए। गोली खत्म होने पर पुलिसकर्मी थाने में भागे तो लोगों ने उसमें आग लगा दी। इस दौरान एक सिपाही मुहम्मद सिद्दीकी किसी तरह से भागकर झंगहा थाना पर पहुंचा। वहां से कलेक्टर को सूचना दी गई।
इस दौरान थाना में थानेदार गुप्तेश्वर सिंह, एसआई पृथ्वीपाल सिंह, हेड कांस्टेबल वशीर खां, गदाबख्श खान, जमा खान, मगरू चौबे, रामबली पांडेय, कपिल देव, इंद्रासन सिंह, रामलखन सिंह, मरदाना खान, जगदेव सिंह, कपिलदेव सिंह, लखई सिंह, रघुवीर सिंह, विशेषर राम यादव, मुहम्मद अली, हसन खान, गदाबख्श खान, जमा खान, मगरू चौबे, रामबली पांडेय, कपिल देव, इंद्रासन सिंह, रामलखन सिंह, मरदाना खान, जगदेव सिंह, जगई सिंह के अलावा थाने पर मानदेय लेने गए चौकीदार बजीर, घिसई, जथई और कथई राम की मौत हो गई थी। इन पुलिसकर्मियों की याद में एक स्मारक थाना के बगल में बना है, जहां उनको श्रद्धासुमन अर्पित करने परंपरा चली आ रही थी, जिसे अब बंद कर दिया गया है।
पूर्व में पारंपरिक रूप से पुलिसकर्मियों को श्रद्धांजलि दी जा रही थी, लेकिन इसे बंद कर दिया गया है। उनको अब शहीद नहीं माना जाएगा। इसलिए इस साल कोई कार्यक्रम नहीं होंगे